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नोटबंदी के बाद यूपी चुनाव को लेकर बीजेपी की चिंता बढ़ती जा रही है. 17 और 18 दिसंबर को लखनऊ में हुई आरएसएस की समन्वय बैठक में इसके संकेत मिले हैं.
विश्वस्त सूत्रों की मानें, तो बैठक से पहले आरएसएस सहित संघ परिवार के सभी सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधियों से इस बारे में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था.
सूत्रों ने बताया कि बैठक में संघ ने बीजेपी से कहा कि इन हालात में पार्टी के लिए चुनाव में जीत सुनिश्चित करना संभव नहीं है. ऐसे में पार्टी या तो जल्द से जल्द नोटबंदी के बाद पैदा हुई परेशानियों को खत्म करे या फिर चुनाव की तारीख आगे बढ़े. यही राय वीएचपी, एबीवीपी और भारतीय मजदूर संघ की भी थी.
संघ से जुड़े एक बड़े प्रचारक ने बताया कि नोटबंदी के फैसले के तुरंत बाद दो चीजें पार्टी के पक्ष में माहौल बना रही थीं. इनमें एक थी- कालेधन पर लगाम लगने का भरोसा. दूसरी- गरीब और अमीर के बीच का अंतर कम होने की उम्मीद. लेकिन जब 30 दिन बाद भी कैश की किल्लत खत्म नहीं हुई, तो जनता में निराशा बढ़ी.
इससे पहले इस बारे में कुछ बीजेपी सांसद भी पार्टी आलाकमान को आगाह कर चुके हैं. पार्टी के सूत्रों ने बताया कि पिछले दिनों एक सांसद ने पार्टी अध्यक्ष को स्थिति से अवगत कराया था. इस दौरान यूपी से कई अन्य सांसद भी वहां मौजूद थे.
खासतौर पर चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश के सांसदों और अन्य लोगों ने अमित शाह से कहा कि अगर जल्द स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो चुनाव में पार्टी को झटका लग सकता है.
नोटबंदी के बाद जिस तरह पीएम अपनी रैलियों में कैशलेस सोसायटी के लिए लोगों को आगे आने के लिए कह रहे हैं, वह यूपी में तो संभव होता नहीं दिख रहा है. इसके पीछे 2 फैक्टर हैं.
पहला: शिक्षा का अभाव
देश के बाकी राज्यों के मुकाबले यूपी में शिक्षा का अभाव काफी ज्यादा है. ऐसे में लोगों को कैशलेस सिस्टम के लिए तैयार करना एक लंबी प्रक्रिया होगी. यहां अब भी ऐसे लोग हैं, जिनके पास फोन तो है, लेकिन उसके इस्तेमाल के लिए वे अब भी दूसरों की मदद लेते हैं.
दूसरा: नेटवर्क की कमी
भले ही कंपनियां पूरे देश में सबसे तेज नेटवर्क का दावा करती हों, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लोग दूरदराज के इलाकों में लोग अब भी कनेक्टिविटी की समस्या से जूझते हैं.
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो नोटबंदी से पहले बीजेपी प्रदेश में नंबर 1 की रेस में दौड़ रही थी, लेकिन अब जिस तरह का माहौल बना है, उससे यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि पार्टी इस रेस में काफी पिछड़ी है. संघ, पार्टी और पार्टी के शुभचिंतकों के बयान साफ इशारा कर रहे हैं कि प्रदेश में बीजेपी की परेशानी बढ़ने वाली है.
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