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‘अगले 24 घंटे में ठीक हो जाएगी यादव कुनबे में चाचा-भतीजे की कलह’

क्विंट हिंदी के फेसबुक लाइव में हुई यादव कुनबे के विवाद को लेकर चर्चा.

प्रशांत चाहल
पॉलिटिक्स
Published:
(फोटो:<b> द क्विंट</b>)
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(फोटो: द क्विंट)
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बीते 24 घंटे में यूपी में समाजवादी ‘चाचा-भतीजे’ फासीवादी रवैया अपनाते दिखे. दोनों ने आपसी संवाद नहीं, बल्कि एक्शन-रिएक्शन का रास्ता चुना.

समाजवादी पार्टी में इस विवाद को लेकर जो धमक सुनी गई, उसका असर दिल्ली में मुलायम सिंह यादव के बंगले पर भी दिखा. दिनभर चली बयानबाजी के बाद शिवपाल सिंह यादव ने दिल्ली आकर मुलायम के साथ मैराथन बैठक की.

इस बैठक में संभवत: क्या-क्या हुआ होगा, कैसे विवाद उठाए गए होंगे, इस बारे में क्विंट हिंदी ने वरिष्ठ पत्रकार विवेक अवस्थी के साथ फेसबुक लाइव पर बातचीत की.

चाचा-भतीजे के बीच रिश्ते कैसे हैं?

2012 में जब समाजवादी पार्टी को बढ़िया मेंडेट मिला, तो जीतकर आए ज्यादातर विधायकों का झुकाव अखिलेश की तरफ न होकर शिवपाल सिंह यादव की तरफ था. उनके ज्यादातर समर्थकों को यह लगने लगा था कि मुलायम सिंह के बाद समाजवादी पार्टी का उत्तराधिकार शिवपाल के पास ही आएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

क्योंकि जीत के बाद जब विधायकों की मीटिंग हुई, तो दूसरे चाचा रामगोपाल यादव ने सबके सामने अखिलेश यादव का नाम सीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया. इसे लेकर 2012 में ही विवाद हुआ था, जो 7 दिन चला भी. फिर शिवपाल को कुछ मंत्रालय देकर मना लिया गया. शिवपाल से कहा यह भी गया कि अखिलेश आखिर आप ही का भतीजा है. आप ही की गोद में खेलकर बड़ा हुआ है. इसके सीएम बनने से आपको कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन दोनों के रिश्तों में तभी से खटास रही है और यह उसी का सिला है.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (फोटोः facebook/Samajwadi Party)

लेकिन दोनों के झगड़े में आगे क्या हो सकता है?

इसमें विकल्प सीमित हैं. सुलह तभी हो सकती है, जब दोनों अपनी-अपनी जगह वापस आएं. शिवपाल को मंत्रालय मिलें. अखिलेश इस मामले में एक कदम पीछे हटें. साथ ही यूपी के अध्यक्ष पद पर अपना कब्जा जमाएं. पार्टी में सभी को पता है कि चुनाव बहुत नजदीक हैं. ऐसे में कोई भी मनमुटाव पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है.

इस पूरे मामले में अमर सिंह का क्या रोल समझा जाए?

अमर सिंह लंबे समय तक मुलायम सिंह को कोसते रहे हैं. लेकिन मुलायम सिंह को ‘यारों का यार’ माना जाता है. शायद इसी वजह से मुलायम ने अमर सिंह को माफ भी कर दिया. वो अमर सिंह समेत बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेताओं को भी पार्टी में वापस ले आए. लेकिन अमर सिंह ने वापसी करते ही अखिलेश सरकार के कामों में दखल शुरू किया. इस बात से अखिलेश हमेशा खफा रहे हैं.

साइकिल पर शिवपाल यादव और बगल में अखिलेश यादव (फोटो साभार: shivpalsinghyadav.com)

इस झगड़े का क्या असर होगा?

पार्टी की छवि खराब होगी. यह बात जाहिर है, क्योंकि विपक्षी इसी बात पर चोट करेंगे. अब यह बात जग जाहिर है कि सपा में गुटबाजी है. साथ ही भी कि कौन किस गुट में शामिल है. 2017 चुनाव के मद्देनजर सपा को इस झगड़े से बचना चाहिए था.

अखिलेश का यह कहना कि यह मसला फैमिली का नहीं है, बल्कि सरकार का है. इसे कैसे देखा जाए?

अखिलेश ने यह भी कहा कि यह बीज किसी बाहरी का बोया हुआ है. यह इशारा साफ तौर पर अमर सिंह की ओर था. अखिलेश ने साथ ही यह भी जताया कि उन्होंने जो कुछ अपने चाचा के साथ किया, वो सब मजबूरी में किया.

चुनाव में इस झगड़े का सबसे ज्यादा फायदा किसे होगा?

बीएसपी को इसका सबसे ज्यादा फायदा होगा. यह पार्टी के कंफ्यूजन को दिखाता है. ऐसे में मायावती कोशिश करेंगी कि वे इसे टारगेट बनाएं और इसका फायदा उठाएं. इससे उन्हें एक बार फिर बढ़िया वापसी करने का मौका मिला है.

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह (फाइल फोटो: IANS)
परिवार में आपसी संवाद की कमी है. इस झगड़े से यह साफ हो जाता है. बीते कुछ वक्त में कई फैसले ऐसे हुए जिनका मुलायम सिंह को भी नहीं पता था.

पार्टी टूटने के आसार हैं क्या?

नहीं. यह ‘वन मैन पार्टी’ है. सपा में आज भी चलता है- ‘न खाता न बही, जो नेता जी कहें, वही सही’. हर चीज मुलायम सिंह के पास आकर रुकती है. चाहें वो शिवपाल हों या फिर अखिलेश. इसलिए इसका टूटना संभव नहीं लगता.

अंतत: सॉल्यूशन क्या होगा?

सॉल्यूशन मुलायम सिंह निकाल चुके होंगे. कल सब एक जगह दिखाई देंगे. चाचा भी, भतीजा भी. कल मुलायम सिंह लखनऊ में होंगे और सारे मामले को समझौते वाली मुद्रा में लाकर बंद करवा देंगे.

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