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20 सितंबर को द क्विंट ने एक बड़ी स्टोरी ब्रेक करते हुए बताया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) ने हाल में 5 "ख्यात" मुस्लिमों के साथ एक बंद कमरे में बैठक की थी. इनमें दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी जमीरउद्दीन शाह और बिजनेसमैन-फिलेंथ्रोपिस्ट सईद शेरवानी शामिल थे.
आरएसएस की तरफ से सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल भी मोहन भागवत के साथ मौजूद थे. इस स्टोरी के प्रकाशित होने के बाद हमने शाहिद सिद्दीकी के साथ विस्तार से बात की थी कि उन्होंने किस वजह से मोहन भागवत से मुलाकात की, उस बैठक में क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है.
सिद्दीकी ने कहा कि यह समूह दरअसल एक पूरे साल तक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन "अलायंस फॉर एजुकेशन एंड इक्नॉमिक डिवेल्पमेंट ऑफ अंडर प्रिवलेज्ड" के तहत काम कर एक साथ आया था.
सिद्दीकी ने द क्विंट को बताया, "हम शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए साथ आए थे. हमने पहले ही कई परियोजनाओं में काम किया है. लेकिन एक वक्त पर हमें महसूस हुआ कि सिर्फ शिक्षा ही अकेली काफी नहीं है. हम देश में फैली सांप्रदायिक नफरत को लेकर बेहद चिंतित थे और हमें महसूस हुआ कि हमें इस बारे में कुछ करना चाहिए."
उन्होंनें बताया कि उन्हें यह पूरा एहसास नुपुर शर्मा विवाद के दौरान हुआ. तब हमने मोहन भागवत से मिलने के लिए वक्त मांगा. लेकिन हमें एक महीने बाद वक्त दिया गया और यह बैठक अगस्त के आखिरी में हुई.
जब हमने उनसे पूछा कि उन्होंने बैठक के लिए आरएसएस चीफ को ही क्यों चुना. तो उन्होंने कहा, "मैं जानता था कि यह सवाल जरूर उठेगा. क्यों नरेंद्र मोदी नहीं? क्यों मोहन भागवत? समझिए कि यह मुद्दा मुस्लिम और सरकार के बीच में नहीं है. इसका समाधान सामुदायिक स्तर पर करना होगा. हमें मानना होगा कि मोहन भागवत एक ऐसे संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका हिंदुओं की एक बड़ी संख्या में प्रभाव है. इसलिेए हमने उनसे संपर्क किया."
सिद्दीकी ने बताया कि यह पहली बार नहीं है जब वे मोहन भागवत से मिले हों, सांसद रहते हुए 2007 में भी उन्होंने भागवत से मुलाकात की थी, फिर 2016 में एक और मुलाकात हुई थी.
सिद्दीकी ने कहा, "देखिए हम दुश्मन नहीं हैं."
हिंदु और मुस्लिम दुश्मन नहीं हैं. हम कई सदियों से साथ रहते आ रहे हैं. हमें यह समझना होगा."
लेकिन उन्होंने माना कि दोनों पक्षों के बीच आज बहुत गलतफहमियां हैं, जिन्हें ठीक किया जाना जरूरी है.
बैठक के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि "मुस्लिम और इस्लाम भारत का अंतर्निहित हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें हिंदुओं को काफिर कहना बंद करना होगा." इसके जवाब में एक सदस्य ने कहा, "काफिर शब्द का उपयोग कुछ विशेष पृष्ठभूमि में हुआ था और इसका मतलब आज के हिंदू नहीं हैं."
बैठक के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद, नुपुर शर्मा विवाद, मदरसों और जनसंख्या से जुड़े मुद्दों का भी जिक्र किया गया.
सिद्दीकी ने कहा कि यह सिर्फ बातचीत की शुरुआत भर है. "हम दूसरे हिंदू नेताओं और दूसरे धर्म के नेताओं से भी बातचीत करेंगे. हम मुस्लिम समुदाय से भी बातचीत करेंगे."
आरएसएस प्रमुख ने संघ परिवार के चार सदस्यों को मुस्लिम प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने के लिेए भी नियुक्त किया है.
22 सितंबर को भागवत ने ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इल्यासी से भी मुलाकात की थी. बाद में उन्होंने दिल्ली के आजाद मार्केट में एक मदरसे की यात्रा भी की.
यह सब तक हुआ है जब बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में मदरसों का एक सर्वे किया जा रहा है और असम सरकार मदरसों को ढहा रही है.
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