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इंदिरा-सोनिया की खिलाफत-क्रिकेट में भी 'बॉस', पवार साहेब की 'अब तक 56' की कहानी

Sharad Pawar ने राजनीति के साथ क्रिकेट प्रशासका का भी जिम्मा संभाला. वो MCA, BCCI और ICC के भी अध्यक्ष रहे.

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>इंदिरा-सोनिया की खिलाफत-क्रिकेट में भी 'बॉस', पवार साहेब की 'अब तक 56' की कहानी</p></div>
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इंदिरा-सोनिया की खिलाफत-क्रिकेट में भी 'बॉस', पवार साहेब की 'अब तक 56' की कहानी

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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83 वर्षीय शरद गोविंदराव पवार (Sharad Govindrao Pawar) भारतीय राजनीति के आज भी अजातशत्रु बने हुए हैं. अपने छह दशक से अधिक लंबे राजनीतिक जीवन में शरद पवार ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की. पद्म विभूषण से सम्मानित शरद पवार के जीवन में कई ऐसे मौके आये, जब उनकी राजनीतिक कुशलता और चतुरता दोनों दिखी.

इस आर्टिकल में हम आपको शरद पवार के शुरुआती जीवन, राजनीतिक उभार, सियासी कद, चतुराई, ताकत, पॉलिटिकल डिप्लोमेसी और प्रासंगिकता से लेकर अंतिम ऐलान के बारे में बतायेंगे. इसके साथ ही, ये भी बतायेंगे कि आखिर पवार के इस्तीफे के क्या राजनैतिक मायने हैं? और उनकी अब तक '56 की कहानी' (1967-2023) क्या है?

शुरुआती जीवन

12 दिसंबर 1940 को गोविंदराव और शारदाबाई के यहां जन्मे शरद पवार ने 1958 से 2023 के बीच, राजनीतिक की वो तमाम सीढ़ियां चढ़ी, जिससे हर कोई सफल राजनीतिज्ञ चढ़ना चाहता है. 65 वर्ष के समाजिक जीवन में शरद पवार ने राजनीति से लेकर क्रिकेट तक अपना सिक्का मनवाया और आज भी वो महाराष्ट्र के 'जनता राजा' बने हुए हैं.

11 भाई-बहनों में से एक शरद पवार स्कूल के दिनों से ही राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते थे. उन्होंने पढ़ाई के दौरान 1956 में 'गांव इंडिपेंडेंस' को लेकर प्रोटेस्ट मार्च निकाला था. 1958 में उन्होंने यूथ कांग्रेस ज्वाइन किया था और बाद (1962) में वो इसके जिला अध्यक्ष और प्रदेश महासचिव (1964) भी बने.

शरद पवार की पुरानी तस्वीर

(फोटो-शरद पवार/ फेसबुक)

राजनीतिक उभार?

शरद पवार को यशवंतराव चव्हाण (महाराष्ट्र के बड़े नेता और मुख्यमंत्री रहे) का राजनीतिक शिष्य माना जाता था. वो 1967 में पहली बार (तब 27 साल के थे) कांग्रेस के टिकट पर बारामती सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल कर विधायक बने. उसके बाद से आज तक शरद पवार ने जो भी चुनाव लड़ा, उन्हें कभी हार नहीं मिली.

शरद पवार की पुरानी तस्वीर.

(फोटो-शरद पवार/ फेसबुक)

इंदिरा गांधी के खिलाफ की बगावत

शरद पवार के लिए 1978 का साल बहुत महत्वपूर्ण था. दरअसल, देश में आपातकाल के बाद पवार ने इंदिरा गांधी से बगावत कर कांग्रेस छोड़ दिया था और 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र सरकार (पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार) का गठन किया और प्रदेश के मुख्यमंत्री (महज 38 साल की उम्र) बने.

हालांकि, 1980 में जब इंदिरा गांधी की सरकार वापस आयी तो उन्होंने सरकार (शरद पवार की सरकार) को बर्खास्त कर दिया. लेकिन 1983 में उन्होंने सोशलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर महाराष्ट्र में अपनी सियासी पकड़ को मजबूत कर लिया.

शरद पवार इंदिरा गांधी के साथ.

(फोटो-सोशल मीडिया)

कांग्रेस में दोबारा की वापसी

साल 1987 में शरद पवार एक बार फिर कांग्रेस में वापस आ गए और राजीव गांधी के करीब हो गए. उन्हें साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया.

प्रधानमंत्री बनने से चूके

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, शरद पवार के पास 1991 में- राजीव गांधी की हत्या के बाद, एक बार प्रधानमंत्री बनने का भी मौका था, लेकिन वो हकीकत में नहीं बदल पाया और नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री और पवार के खाते में देश के रक्षा मंत्री का पद आया.

सोनिया का विरोध, NCP की स्थापना

शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से बगावत की और 1999 में पीएम संगमा के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया. उसके बाद से आज तक-लगातार 24 साल, पवार NCP के अध्यक्ष रहे.

शरद पवार और सोनिया गांधी

(फोटो-सोशल मीडिया)

सियासी कद

शरद पवार विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा, राज्यसभा सदस्य (वर्तमान में), महाराष्ट्र सरकार में मंत्री, नेता प्रतिपक्ष, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक रह चुके हैं. वो वर्तमान में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (क्षेत्रीय गठबंधन जिसमें कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना उद्धव गुट शामिल है) के अध्यक्ष हैं.

ये उनके राजनीतिक कद का ही करिश्मा है कि आज भी पीएम मोदी और बीजेपी सीधे तौर पर उनका नाम लेकर हमला नहीं करती है. खुद पीएम मोदी भी कई बार पवार की तारीफ कर चुके हैं और कहते हैं कि वो कई मसलों पर उनकी (शरद) सलाह लेते हैं.

2017 में, भारत सरकार ने उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था.

शरद पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित करते हुए तात्कालिक राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी

(फोटो-शरद पवार/ फेसबुक)

राजनीतिक चतुराई

एनसीपी नेता शरद पवार की कई मौकों पर राजनीतिक विद्वता देखने को मिलती रही है. इसे उनके सियासी समझ को भी समझा जात सकता है. 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी बड़ा दल बनकर उभरा लेकिन शिवसेना ने सीएम पद की मांग कर विवाद खड़ा दिया, जिसके बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

इसके बाद अचानक, अजित पवार (उनके भतीजे) बीजेपी के साथ सरकार बना लेतें हैं. इस सरकार में देवेंद्र फडणवीस सीएम और अजित पवार डिप्टी सीएम बने. लेकिन सदन में अजित पवार अपने समर्थन में विधायकों को एकजुट नहीं कर पाये और सरकार गिर गयी. कहा जाता है कि उस वक्त पवार की चतुराई की वजह से ऐसा हुआ और बाद में MVA की सरकार बनी.

शरद पवार, अजित पवार और सुप्रिया सुले.

(फोटो-सोशल मीडिया)

सबसे अहम यह था कि उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना ने अपनी मूल विचारधारा के खिलाफ जाकर गठबंधन किया था.
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राजनीतिक ताकत

राजनीति के जानकार कहते हैं कि सत्ता किसी की भी हो, पवार की 'पावर' हमेशा बरकरार रहती है. 2019 में महाराष्ट्र सहकारी बैंक के कथित घोटाले में नाम सामने आने के बाद शरद पवार ने ED ऑफिस जाने का फैसला किया था, तो उस वक्त उनको मनाने के लिए प्रदेश के पुलिस कमिश्नर तक को जाना पड़ा था, तब जाकर पवार ने जाने से मना किया था.

क्विंट हिंदी से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने कहा, "शरद पवार की राजनीति की यह सबसे बड़ी खासियत रही है कि वो चौंकाने वाले फैसले लेते रहे हैं. अगर उनकी राजनीतिक कार्यशैली पर ध्यान दें तो वो अपने हित तो प्राथमिकता देते रहे हैं. लेकिन किसी को यह नहीं लगने दिया कि वो स्वार्थ की राजनीति कर रहे हैं."

पवार को जब उन्हें इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत करनी पड़ी तो महाराष्ट्र बचाने का नारा लगा दिया. सोनिया गांधी की मुखालफत की लेकिन कांग्रेस के साथ भी जाने से परहेज नहीं किया. जब अजित पवार एक दिन के डिप्टी सीएम बने तो लगा कि NCP पर पवार की पकड़ ढीली पड़ चुकी है. लेकिन अपने रणनीतिक कौशल से यह साबित कर दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति में उनसे बड़ा धुरंधर खिलाड़ी कोई नहीं.
ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार

पॉलिटिकल डिप्लोमेसी

एनसीपी प्रमुख की कई बार पॉलिटिकल डिप्लोमेसी भी देखने को मिली. फिर चाहे कांग्रेस का विरोध करने के बावजूद उसके साथ देने की बात हो या फिर बीजेपी की खिलाफत करने के साथ पीएम मोदी के साथ उनकी निकटता हो या हाल ही में अडानी मामले और उससे जुड़े मसले को विपक्ष से सवाल, हर जगह अपनी पॉलिटिकल डिप्लोमेसी से पवार ने सबको चित कर दिया और ये साबित किया कि वो आज भी राजनीति के 'दादा' हैं.

प्रासंगिकता

शरद पवार 65 साल से अधिक समय से राजनीतिक में हैं. उनका राज्यसभा का कार्यकाल 2026 में समाप्त होगा लेकिन इतने लंबे समय के सार्वजनिक जीवन में वो भी राजनीति में प्रासंगिक बने हैं. फिर चाहे वो गैर बीजेपी-गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट करने की बात हो या फिर समन्वय स्थापित करना हो. शरद पवार की प्रासंगिकता हमेशा बरकरार रही. यही कारण है कि उनके इस्तीफे के ऐलान के बावजूद, उनसे फैसला वापस लेने की अपील की जा रही है.

एक कार्यक्रम के दौरान शरद पवार.

(फोटो-शरद पवार/ फेसबुक)

राजनीति में रहकर 'खेला' क्रिकेट

शरद पवार पॉलिटिक्स के बॉस रहने के साथ क्रिकेट के भी 'बादशाह' बने रहे. 2005 से 2008 तक पवार BCCI के अध्यक्ष और 2010 से 2012 तक ICC के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. वह अक्टूबर 2013 से जनवरी 2017 तक मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के भी अध्यक्ष थे.

NCP चीफ का पद छोड़ चौंकाया

वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने कहा, "एनसीपी अध्यक्ष से इस्तीफे का फैसला अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि वो पहले भी इस तरह के संकेत दे चुके थे कि पार्टी की कमान अब किसी युवा के हाथ में होनी चाहिए. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पहली पसंद बेटी है या भतीजा है."

राजनीति के जानकार कहते हैं कि, शरद पवार ने अजित को हमेशा अपने बेटे की तरह माना है, इसलिए अजित चाहकर भी कभी खुलकर उनकी बगावत नहीं कर पाये हैं. ताजा फैसला भी, इससे जुड़ा बताया जा रहा है. एनसीपी से जुड़े एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, " अजित पवार अपना राजनैतिक भविष्य मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं, वो बीजेपी के संपर्क में थे, ये बात सबको पता है, लेकिन वो पवार की वजह से ही कुछ बड़ा नहीं कर पा रहे थे."

शरद पवार और अजित पवार

(फोटो-सोशल मीडिया)

नेता ने कहा, "शरद पवार ने इस्तीफा देकर एक तीर से दो निशाने किये. पहला पार्टी में बगावत को शांत करने की कोशिश की और दूसरा अजित पर मानसिक दबाव बना दिया."

हालांकि, शरद पवार पहले भी कई मौकों पर अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं. उनके फैसले का दूरगामी का असर क्या होगा, ये कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना तय है कि शरद पवार ने जो भी फैसला किया है, उसके पीछे उनकी कोई बड़ी सोच जरूर है. क्योंकि ठीक 9 महीने पहले (10 सिंतबर, 2022) उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था और अचानक उन्होंने पद छोड़ने का ऐलान कर दिया. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि वो समाजिक जीवन में काम करते रहेंगे. उनका अभी राज्यसभा का तीन साल का कार्यकाल बाकी है.

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