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समाजवादी नेताओं की पंक्ति में आगे खड़े रहने वाले और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव (Sharad Yadav Death) अपने अनंत सफर पर निकल पड़े, जहां से कोई कभी वापस नहीं लौटता. अपने राजनीतिक जीवन में शरद यादव भले ही किंग नहीं बन पाए हों, लेकिन बिहार से लेकर केंद्र में किंग मेकर की भूमिका में वे जरूर रहे.
तीन दशकों तक बिहार की राजनीति में छाए रहने वाले लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
समाजवादी नेता और राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी भी कहते हैं कि शरद यादव बिहार आए और बिहार के ही होकर रह गए. वे कहते हैं कि बिहार में भले ही लालू प्रसाद यानी राजद की सरकार रही हो या नीतीश कुमार की सरकार रही हो, लेकिन इन सरकारों में अधिकांश समय तक केंद्र बिंदु में शरद यादव ही रहे हैं.
माना भी जाता है कि लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में बहुत बड़ा योगदान शरद यादव का रहा है. तिवारी कहते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं में से कुछ लोग रामसुंदर दास को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. रघुनाथ झा भी मैदान में आ गए. ऐसे में शरद यादव के कारण ही लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बन पाए. उस दौर में खंडित जनादेश के बाद भी सरकार बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया.
शरद यादव की इच्छा राजनीति में सबको एक साथ जोड़कर रखने की रही है. शरद एनडीए के संयोजक भी रहे और इस पद का दायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया. बिहार में जब समाजवादी नेता दो धड़ों में बंट गई तब शरद यादव ने नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ आ गए.
लालू प्रसाद से जब शरद यादव की ठन गई तो मधेपुरा से शरद ने लालू को 1999 के लोकसभा चुनाव में शिकस्त दे दी. 2005 में नीतीश की सत्ता में लाने में उन्होंने अहम योगदान दिया. लेकिन, कालांतर में नीतीश से भी उनका मनमुटाव हो गया और शरद यादव ने 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया.
बहरहाल, शरद यादव के निधन की खबर से बिहार की राजनीति में शोक की लहर है. सभी दल के नेता उनके निधन से गमगीन हैं. आज सभी यही कह रहे हैं कि भले ही शरद यादव का जन्म बिहार में नहीं हुआ हो, लेकिन सही अर्थों में वे बिहारी थे.
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