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आखिरकार 23 मार्च को शपथ लेने के 101 दिन बाद शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार करने में कामयाब हो गए. मुख्यमंत्री की इस नई टीम के तौर पर 28 मंत्रियों ने पद और गोपनियता की शपथ ली. लेकिन क्या शिवराज वाकई इस टीम को अपनी टीम कह सकते हैं? क्या इस टीम में उनकी मर्जी के सिपहसालार शामिल किए गए हैं? जवाब है- नहीं.
2 जुलाई को शपथ लेने वालों में 20 कैबिनेट मंत्री और 8 राज्यमंत्री हैं. मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की छाप साफ दिखाई दे रही है. अगर इन 28 विधायकों को खेमों के मुताबिक देखें तो,
कैबिनेट मंत्रियों में इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, महेन्द्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव और राज्य मंत्रियों में भारत सिंह कुशवाहा, ब्रजेन्द्र यादव, गिर्राज डण्डौतिया, सुरेश धाकड़ और ओपीएस भदौरिया, सिंधिया खेमे से हैं. बीजेपी के 16 विधायकों में भी सिर्फ 7 पुराने मंत्रियों को ही मौका मिल पाया. 9 नए चेहरे शामिल किए गए हैं.
शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले कैबिनेट विस्तार के लिए चली लंबी माथापच्ची के सवाल पर कहा था कि,
ये एक भारी बयान था. वो साफ कह रहे थे कि अपनी नई टीम के इस बंटवारे से वो खुश नहीं हैं. तो क्या वजह है कि बीजेपी आलाकमान ने नई लिस्ट को हरी झंडी देते हुए चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज को ही तरजीह नहीं दी? वजह हैं- ज्योतिरादित्य सिंधिया.
मध्य प्रदेश की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों के मुताबिक, सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से बीजेपी की अंदरूनी राजनीति का संतुलन बिगड़ गया है.
29 दिन तक शिवराज ने अकेले ही सरकार चलाई. 21 अप्रैल को पांच सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन हुआ, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के दो मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत शामिल थे.
इस दौरान शिवराज ने दिल्ली के चक्कर भी लगाए, लेकिन सहमति नहीं बनी. आखिरकार लंबे मंथन के बाद नए नामों की लिस्ट फाइनल हो पाई.
नए मंत्रिमंडल में एक तिहाई मंत्री ग्वालियर-चंबल बेल्ट से हैं. ये वो इलाका है जहां आने वालों दिनों उप-चुनाव होने हैं.
उपचुनावों में जरा भी ऊंच-नीच हुई तो जोड़तोड़ से बनी शिवराज सरकार संकट में आ जाएगी. ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया के लोगों को जगह देना बीजेपी की सियासी मजबूरी है.
खैर... मंत्रिमंडल विस्तार तो हो गया. अब उपचुनावों में 10 से ज्यादा सीटें जीतकर विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा पाना शिवराज की बड़ी चुनौती है और उससे भी बड़ी चुनौती है मजबूरियों और नाराजगी के बीच बने इस नए मंत्रिमंडल में संतुलन बनाकर रखना.
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