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शिवसेना (Shivsena) के मुखपत्र सामना के संपादकीय में बीजेपी को खुली चुनौती दी गई है. 'बोलो, आजमाओगे क्या?' इस शीर्षक से शिवसेना ने बीजेपी पर अटैक किया है. बीजेपी के विधान परिषद सदस्य प्रसाद लाड ने बीजेपी कायकर्ताओं की एक बैठक में दिए बयान के बाद सेना और बीजेपी आमने सामने आ गए है. प्रसाद लाड ने बैठक में कहा था कि, "
इसपर शिवसेना नेताओं सहित एनसीपी और कांग्रेस पार्टियों के नेताओं ने भी कड़ी निंदा की. जबकि विपक्ष के नेता देवेंद्र फड़णवीस ने ये कहते हुए पल्ला झाड़ा की तोड़ फोड़ करना हमारी संस्कृति नही, लेकिन कोई हमला कर तो हम चुप भी नहीं बैठेंगे. जिसके बाद प्रसाद लाड़ ने भी बयान जारी कर इस विषय पर पर्दा डालने की कोशिश की. बता दें कि कुछ दिनों पहले ही बीजेपी और शिवसेना के कार्यकर्ता दादर के शिवसेना भवन के सामने भिड़ गए थे.
इसी बयान को लेकर सामना ने बीजेपी को चुनौती दी है है. सामना में लिखा है कि
सामना में आगे लिखा है कि 'भारतीय जनता पार्टी किसी समय निष्ठावान, जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की पार्टी थी, एक विचारों से भरी हुई हिंदुत्ववादी विचारोंवाली पीढ़ी इस पार्टी में थी. बाहरी, पतित लोगों को यहां स्थान नहीं था, लेकिन, अब मूल विचारों वाले लोग कबाड़ और पतित लोगों को पालकी में बैठाकर नाच रहे हैं, इसलिए इस पार्टी का अंतकाल करीब आ गया है,
शिवसेना की स्थापना के समय से सर्वाधिक तकलीफ, पीड़ा किसी ने दी होगी तो अपने ही धर्मभ्रष्ट लोगों ने. धर्मभ्रष्ट लोग थोड़ा ज्यादा ही जोर से बांग देते हैं और हम ही कितनी बड़े निष्ठावान हैं इसके लिए ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं. इस प्रयास में वो जीभ के रास्ते गटर खोलकर सर्वत्र बदबू फैलाते हैं.
इस दुर्गंध के कारण आज कमल की पवित्रता मांगल्य साफ कुम्हला गया है, जनता पार्टी के दौर में भी कुछ लोगों ने इसी तरह उत्पात मचाया था, शिवतीर्थ पर एक सभा की आड़ में शिवसेना भवन पर पत्थर मारने का प्रयास किया, तब उनके पार्सल किस अवस्था में घर और अस्पताल पहुंचे इसका इतिहास बीजेपी के धर्मभ्रष्टों को समझ लेना चाहिए. शिवसेना भवन से पंगा लेने पर उनकी वह जनता पार्टी भविष्य में औषधि के लिए भी शेष नहीं बची.'
आखिर में बीजेपी को चेतावनी दी है कि 'शिवसेना भवन से पंगा लेने की बात छोड़ ही दो… ऐसा इंसान अभी पैदा होना बाकी है, धर्मभ्रष्ट और शिखंडियों की टोलियों से हाथ मिलाकर मराठी अस्मिता पर शराब का गरारा कोई करता होगा तो भूमिपुत्र उन राजनीतिक बेवड़ों का सटीक इंतजाम किए बिना नहीं रहेंगे! फिर भी आजमाना होगा तो आ जाओ, अर्थात उतनी मर्दानगी जिस्म में होगी तो! लेकिन एक बात याद रखो शिवसेना भवन तक तुम अपने पांव पर चलकर आओगे, परंतु जाते समय कदाचित ‘कंधे’ पर ही जाना पड़ेगा, इसके लिए आते समय ‘कंधा’ देनेवाले भी लेकर आना. महाराष्ट्र के अस्तित्व पर आनेवालों को कंधे पर ही जाना पड़ता है, यह इतिहास ही है!'
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