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उद्धव Vs शिंदे: राज्यपाल का यह निष्कर्ष गलत था कि उद्धव बहुमत खो चुके हैं- SC

सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को सभी पक्षों की दलीलें पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

क्विंट हिंदी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Uddhav Thackeray Vs Eknath Shinde: Supreme Court Verdict</p></div>
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Uddhav Thackeray Vs Eknath Shinde: Supreme Court Verdict

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार, 11 मई को उद्धव ठाकरे गुट और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 2016 का नबाम रेबिया मामले कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में एक बड़ी पीठ के संदर्भ की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने ये बात 16 विधायकों की अयोग्यता मामले में कही है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए.

फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता- SC

गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था. आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.
सुप्रीम कोर्ट

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपने पद से स्तीफा नहीं देते तो, आज कुछ और बात होती.

Live Law की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वह उद्धव ठाकरे सरकार की बहाली का आदेश नहीं दे सकता क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था. हालांकि फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल का फैसला गलत था और शिंदे समूह का व्हिप नियुक्त करने में स्पीकर गलत थे.

पिछले साल शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से बगावत करके बीजेपी का हाथ थामा था और सीएम पद हासिल करते हुए सरकार बनाई थी. मामले पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.

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बता दें कि 17 फरवरी को बेंच ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की याचिकाओं पर सुनवाई की थी. इसके बाद 21 फरवरी से कोर्ट ने लगातार 9 दिनों तक इस केस पर सुनवाई की. 16 मार्च को सभी पक्षों की दलीलें पूरी होने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

कहां से शुरू हुआ था विवाद?

  • उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच विवाद तब शुरू हुई, जब जून 2022 में शिंदे ने 40 विधायकों के साथ उद्धव के खिलाफ बगावत का ऐलान किया.

  • विवाद होने के बाद बागी विधायक असम चले गए और फिर शिंदे ने बीजेपी की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया.

  • उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक नहीं लगाई, जिसके आदेश तत्कालीन राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने दिए थे. 4 जुलाई को एकनाथ शिंदे ने फ्लोर टेस्ट जीता.

  • शिंदे खेमे में गए विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

  • चुनाव आयोग ने अपनी ओर से शिंदे गुट को बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का मूल धनुष और तीर चिन्ह दिया. उद्धव के गुट को एक धधकती मशाल का चुनाव चिह्न और नया नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे दिया गया.

  • उद्धव बाला साहेब ठाकरे के सांसद संजय राउत ने अपने बयान में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला तय करेगा कि देश में लोकतंत्र जिंदा है या नहीं.

  • महाराष्ट्र के मौजूदा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे क्योंकि फैसला शिंदे के पक्ष में होगा. “शिंदे अपना इस्तीफा क्यों सौंपेंगे? किसी तरह के कयास लगाने की जरूरत नहीं है.

  • सुप्रीम कोर्ट में उद्धव ठाकरे का प्रतिनिधित्व कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने किया जबकि शिंदे खेमे के वकील हरीश साल्वे, एनके कौल और महेश जेठमलानी थे. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तत्कालीन राज्यपाल बीएस कोश्यारी का प्रतिनिधित्व किया.

  • सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कोश्यारी की भूमिका पर सवाल उठाया और कहा कि एक राज्यपाल को किसी भी क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जो सरकार के पतन का कारण बनता है.

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