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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोवा के साथ एक गहरा रिश्ते रखते हैं. इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं कि पार्टी के बड़े नेता राज्य में जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई भी तरीका नहीं छोड़ रहे हैं.
ये रैलियां गोवा में बीजेपी के चेहरे और लगभग तीन महीनों से अपने गृहनगर में रह रहे रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की दर्जनभर रैलियों से भी ज्यादा हैं.
बीजेपी को एक तरफ अपने पूर्व सहयोगी और दूसरी तरफ आक्रामक विरोधियों से कड़ी चुनौती मिल रही है. पार्टी ने भी यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है क्योंकि उसे पता है कि पीएम मोदी इस राज्य से तीन कारणों के चलते गहरा जुड़ाव रखते हैं.
साल 2002 के दंगों के बाद मोदी पर गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने का भारी दबाव था. ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को बाहर करना चाहते थे. वहीं, आडवाणी अपने शिष्य को बचाना चाहते थे लेकिन विरोधियों और सहयोगी दलों के दबाव के चलते पीएम के साथ बहस नहीं कर सकते थे. तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरुण शौरी ने बाद में इसका खुलासा किया कि मोदी को निकालने का फैसला तब किया गया था जब वाजपेयी और आडवाणी साल 2002 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के लिए गोवा आए थे.
जब पणजी में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू हुई थी, मोदी ने पद छोड़ने की घोषणा कर दी थी लेकिन हॉल में बैठे अन्य लोगों ने शोर मचाकर उन्हें ऐसा नहीं करने दिया और चुप करा दिया. शौरी का कहना है कि वह नहीं जानते कि यह हंगामा करवाया गया था या सहज ही हुआ था. लेकिन, मोदी को गोवा बैठक में मिले भारी समर्थन ने वाजपेयी को फैसला वापस लेने और उन्हें पद पर बनाए रखने के लिए मजबूर किया था.
11 साल बाद, बीजेपी ने गोवा में एक और राष्ट्रीय सम्मेलन किया था और फिर से इसका केंद्र नरेंद्र मोदी थे, जो उस समय तक अपने गुरु एलके आडवाणी को चुनौती देने के लिए काफी मजबूत हो गए थे.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी राष्ट्रीय स्तर तक उठना चाहते थे. आडवाणी ने उन्हें रोकने की हर संभव कोशिश की. यहां तक कि वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से भी अलग रहे.
साल 2013 के गोवा सम्मेलन में आडवाणी, सुषमा और उनके सहयोगियों के दबाव के बावजूद नरेंद्र मोदी को बीजेपी की चुनावी रणनीति समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उस वक्त मोदी के 'राजतिलक' के बारे में उनके सहयोगियों का कहना था कि अब पार्टी के पीएम उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम की घोषणा होना महज औपचारिकता भर रह गया है.
यह सभी जानते हैं कि विभिन्न दलों के राजनेता अंधविश्वासी हैं. बीजेपी और कांग्रेस के कुछ नेताओं का विश्वास है कि गोवा में जीतने वाली पार्टी अगला लोकसभा चुनाव भी जरूर जीतती है.
बीजेपी ने गोवा में साल 2012 का चुनाव जीता था और 2014 के लोकसभा चुनावों में भी विजेता बनकर उभरी थी. इससे पहले, कांग्रेस साल 2007 में गोवा में जीती थी और 2009 के लोकसभा चुनावों में फिर से अपनी सफलता दोहराई थी.
इससे पहले दशक में गोवा के दलबदल और अस्थिरता की स्थिति से गुजरने के कारण इतिहास थोड़ा उलझा हुआ है. अब भी, काफी हद तक गोवा राष्ट्रीय रुझान को दर्शाता है, वैकल्पिक तौर पर कांग्रेस या बीजेपी के नेतृत्व या सहयोग वाली सरकारों के बीच चुनने में.
इसलिए, स्थानीय बीजेपी नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि अगर बीजेपी गोवा जीतने में कामयाब हो जाती है, तो मोदी को 2019 में फिर से चुना जाएगा.
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Published: 02 Feb 2017,10:32 PM IST