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उत्तर प्रदेश में मिली करारी शिकस्त के बावजूद क्या कांग्रेस पार्टी गुजरात चुनाव में भी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपना सारथी बनाएगी? आजकल राजनीतिक गलियारों में ये सवाल चर्चा का मुद्दा है. गुजरात में इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं. इसके लिए भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी पहले ही ताल ठोक चुकी हैं.
क्विंट हिंदी को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी प्रशांत किशोर और उनकी आईपैक टीम के भरोसे ही गुजरात की चुनावी जंग में उतरना चाहती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हाथ जला चुके प्रशांत इस बार किसी जल्दबाजी के मूड में नहीं हैं.
ये जानकारी आपको जरा अटपटी लग सकती है. यूपी चुनाव में 105 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी ने महज 7 सीटें जीती थीं, जो उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. प्रशांत किशोर पार्टी के ‘चुनावी चाणक्य’ थे, लिहाजा हार का ठीकरा एक हद तक उन्हीं के सिर फोड़ा गया. कहा गया कि लोकल नेताओं और कार्यकर्ताओं की मर्जी के खिलाफ कांग्रेस आलाकमान ने प्रशांत के हाथ में चुनावी बागडोर सौंपी, जिसका खामियाजा हार की शक्ल में भुगतना पड़ा.
ऐसे में आप सोच रहेंगे कि आखिर कांग्रेस पार्टी दोबारा प्रशांत पर ही भरोसा क्यों जताना चाहती है. उससे भी अहम ये कि एक ‘नाकाम रणनीतिकार’ कोई सौदेबाजी करने की हालत में भला कैसे हो सकता है. तो जनाब इस कहानी में जरा ट्विस्ट है.
गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला ने 22 मार्च को कहा था कि गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी प्रशांत किशोर को दोबारा अपना रणनीतिकार बना सकती है. इसके बाद वाघेला और गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी प्रशांत किशोर से मुलाकात कर चुके हैं.
लेकिन इस बारे में आखिरी फैसला अहमदाबाद को नहीं, दिल्ली को करना है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस आलाकमान भी प्रशांत के पक्ष में है. यहां तो यूपी की तरह प्रदेश इकाई का विरोध भी नहीं है. लेकिन पेच प्रशांत किशोर के लेवल पर ही फंसा है.
प्रशांत किशोर के करीबी एक सूत्र के मुताबिक:
यूपी के चुनाव प्रचार में प्रियंका गांधी को बड़े स्तर पर प्रचार में उतारना प्रशांत का ब्रह्मास्त्र था. सूत्रों के मुताबिक, शुरुआत में कांग्रेस आलाकमान इस बात के लिए पूरी तरह राजी था, लेकिन चुनाव पास आते आते पार्टी ने हाथ पीछे खींच लिए. ये प्रशांत के प्लान को लगा बड़ा झटका था, जिसकी भरपाई आखिर तक नहीं हो पाई.
बात इतनी भर ही नहीं रही. सूत्रों का कहना है कि प्रियंका की खबर तो फिर भी मीडिया में आ गई, लेकिन उसके अलावा प्रशांत के ऐसे कई सुझाव थे, जिन्हें आखिरी मौके पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन भी इतनी ना-नुकर के बाद हुआ कि दोनों ही पार्टियां उसका पॉलिटिकल डिविडेंड नहीं ले पाईं. टिकट बंटवारे के वक्त ओबीसी वोटरों को ध्यान में रखने का सुझाव भी कांग्रेस पार्टी ने सीरियसली नहीं लिया. सूत्रों के मुताबिक, ऐसे कई सुझाव थे, जिनकी मलाई बीजेपी सिर्फ इसलिए खा पाई, क्योंकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उन्हें गैरजरूरी समझा.
अब सवाल ये है कि अगर प्रशांत किशोर ग्रीन सिग्नल नहीं दिखा रहे हैं, तो कांग्रेस पार्टी ही भला क्यों अपनी गाड़ी उस रास्ते पर ले जाने को तुली है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, इसकी कई ठोस वजह हैं:
टीम पीके से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक:
सौ बात की एक बात ये है कि इस बार ढुलमुल आश्वासनों पर प्रशांत किशोर नहीं मानेंगे. इस बार उन्हें सॉलिड गारंटी चाहिए, जो कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के स्तर पर ही मिल सकती है. फैसला जो भी हो, लेकिन सवाल ये है कि राहुल उसे कितनी जल्दी लेते हैं. क्योंकि देर से हुए फैसले नतीजों के लिए अच्छे नहीं होते.
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Published: 06 Apr 2017,04:09 PM IST