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त्रिपुरा: माणिक सरकार पर एंटी इंकम्बेंसी बेअसर,BJP लगा पाएगी सेंध?

त्रिपुरा में हुए पिछले 3 विधानसभा चुनावों का सटीक विश्लेषण, ट्रेंड क्या कहते हैं

अभय कुमार सिंह
पॉलिटिक्स
Published:
त्रिपुरा में हुए पिछले 3 विधानसभा चुनावों का सटीक विश्लेषण, ट्रेंड क्या कहते हैं
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त्रिपुरा में हुए पिछले 3 विधानसभा चुनावों का सटीक विश्लेषण, ट्रेंड क्या कहते हैं
(फोटो: ट्विटर\@cpimspeak)

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त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. 18 फरवरी को राज्य में चुनाव होने वाले हैं. राज्य के पिछले कई विधानसभा चुनावों में खाता नहीं खोल सकी बीजेपी भी इस बार पूरे जोरशोर के साथ चुनाव में है. फिलहाल, 19 राज्यों में बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA सरकार है. लेकिन इस बार उसका सामना 4 बार की विजेता CPI(M) से हैं, जिसके पास माणिक सरकार जैसे सीएम हैं जो पिछले 2 दशकों से राज्य के सीएम पद पर काबिज हैं

सत्ता विरोधी 'लहर' का क्या है हाल?

एंटी इंकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी 'लहर' की बात करें तो ये माणिक सरकार की 'लहर' से धीमी दिखती है. इसकी बानगी राज्य में हुए पिछले विधानसभा चुनाव भी करते हैं.  त्रिपुरा विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं.

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां CPI(M) ने 48.11 फीसदी वोट शेयर के साथ 49 सीटों पर जीत हासिल की थी.

कांग्रेस को यहां 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वहीं बीजेपी का खाता नहीं खुल सकता था.

साल 2008 विधानसभा चुनाव के नतीजे इससे कुछ खास अलग नहीं थे. माणिक सरकार की पार्टी CPI(M) ने 48.01 फीसदी वोट शेयर के साथ 46 सीटें हासिल की थी, कांग्रेस को उस वक्त भी 10 सीटें मिली थीं और बीजेपी का नतीजा शून्य का रहा था.

साल 2003 विधानसभा चुनाव में CPI(M) ने 46.82 फीसदी वोट शेयर के साथ 38 सीटें हासिल की थी. कांग्रेस को तब 13 सीटें मिली थी. बीजेपी का खाता नहीं खुला था.

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ट्रेंड क्या कहते हैं?

इन चुनावों के ट्रेंड बता रहे हैं कि चुनाव-दर-चुनाव माणिक सरकार की पार्टी का वोट शेयर बढ़ रहा है. 2003 से 2013 के बीच CPI(M) की 11 सीटें बढ़ गईं और करीब 2 फीसदी के वोट शेयर का फायदा हुआ है. राज्य में कांग्रेस का प्रदर्शन करीब-करीब एक जैसा बना हुआ है.

बीजेपी के लिए खोने को कुछ नहीं!

त्रिपुरा में चुनावी जंग हमेशा से कांग्रेस और वाम मोर्चे की बीच होती आ रही है. लेकिन इस बार बीजेपी यहां जीतने तो नहीं, लेकिन वाम के गढ़ में सेंध लगाने की जुगत में जुटी हुई है. आदिवासी इलाकों पर CPI(M) की मजबूत पकड़ को देखते हुए बीजेपी ने चुनिंदा सीटों के लिए ही अपना प्लान तैयार किया है. ऐसे सीट जहां पर CPI(M) पिछले चुनाव कमजोर दिखी थी.

बीजेपी के लिए फायदे की बात ये भी है कि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है अगर पार्टी यहां कुछ सीटें जीतने में कामयाबी होती है तो ये निश्चित तौर पर माणिक सरकार की लिए चिंता की बात होगी.

हेमंत बिस्वा सरमा कर रहे हैं बीजेपी की अगुवाई

कांग्रेस से बीजेपी में आए हेमंत बिस्वा सरमा त्रिपुरा में पार्टी के चुनाव प्रभारी हैं. राज्य में चुनाव की रूपरेखा उन्होंने तैयार कर ली है. सबसे बड़ा आकर्षण है पीएम की रैली और रोड शो. रिपोर्ट्स के मुताबिक, त्रिपुरा में 8 फरवरी और 15 फरवरी दो बार पीएम मोदी पहुंचेगे, इस बीच कई मंत्रियों का भी त्रिपुरा दौरा होगा. ऐसे में बीजेपी के लिए इस चुनाव की अहमियत को आंका जा सकता है.

माणिक सरकार से पार पाना आसान नहीं

अपनी सादगी के लिए मशहूर माणिक सरकार देश के सबसे 'गरीब' सीएम हैं. हर कुछ दिनों के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ न कुछ खबर देश की मीडिया में होती है. पोलित ब्यूरो के मेंबर माणिक सरकार, अपना पूरा वेतन और भत्ता पार्टी को दान कर देते हैं, पार्टी उन्हें खर्च चलाने के लिए हर महीने 5 हजार रुपये देती है.

उनके हलफनामे के मुताबिक, 69 साल के नेता के पास 1520 रुपये हैं, जबकि 2410 रुपये उनके बैंक अकाउंट में हैं. इसके अलावा कोई और रकम बैंक में जमा नहीं है.

ये बातें इसलिए जानना जरूरी है कि ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भारत या किसी दूसरे देश में कम ही देखने को मिलता है. त्रिपुरा के लोगों को इस बात की अहमियत और माणिक सरकार की जरूरतों का अहसास है तभी उन्हें पिछले 2 दशक से लगातार सीएम की कुर्सी पर बिठाए हुए हैं.

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