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त्रिपुरा ने बीजेपी का नारा चलो पलटाई दिया और माणिक की सरकार पलट गई, कमल खिल गया है. त्रिपुरा भगवा रंग में रंग गया. बीजेपी के लिए सही मायने में शनिवार को होली का जश्न रहा है.
25 सालों का लेफ्ट का गढ़ ढह गया है. 19 राज्यों में विजय हासिल करने के बाद बीजेपी का विजय रथ पूर्वोतर के राज्यों में भी पहुंच गया है. पहले असम और अब त्रिपुरा, जिस राज्य में बीजेपी कभी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाती थी, वहां बीजेपी ने 43 सीटें जीत लीं. वाकई बीजेपी ने वो करिश्मा कर दिखाया है, जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा.
त्रिपुरा 1972 में राज्य बना और उसके बाद सिर्फ 10 साल ही ऐसा हुआ जब लेफ्ट की सरकार नहीं थी. 1993 से तो लगातार लेफ्ट की सरकार ही यहां चली आ रही थी. पहले दशरथ देव और 1998 से लगातार 20 साल से माणिक सरकार मुख्यमंत्री थे.
बीजेपी का सिर्फ बहुमत ही नहीं दो तिहाई बहुमत हासिल करना सबसे बड़ी टर्नअराउंड चुनाव स्टोरी है. चुनावी पंडित हैरान हैं क्योंकि 2013 में बीजेपी को सिर्फ 1.54% वोट मिले थे और एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. 60 सीटों में 49 सीटों पर लेफ्ट ने जीत हासिल की थी, लेकिन जीरो से सीधे हीरो बन गई बीजेपी. पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में चुनाव अभियान चला.
पीएम ने चुनाव प्रचार के दौरान के एक रैली में कहा था कि त्रिपुरा के लोगों को माणिक नहीं अब हीरा चाहिए, चुनाव के नतीजे बताते हैं कि त्रिपुरा के लोगों ने माणिक को छोड़कर हीरे को अपना लिया है.
बीजेपी ने माणिक सरकार को विकास और बेरोजगारी के मुद्दे पर खूब घेरा. विकास के एजेंडे पर माणिक सरकार कमजोर ही साबित हुई है, इस बात को बीजेपी ने खूब भुनाने की कोशिश की. खुद पीएम मोदी अपनी रैलियों में माणिक सरकार को विकास विरोधी बताते रहे. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के चुनाव के तर्ज पर त्रिपुरा में भी विकास का फॉर्मूला अपनाया और लोगों को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार बनेगी तो राज्य का विकास होगा.
वहीं बेरोजगारी से जूझ रहे नौजवानों को बीजेपी ने रोजगार देने का भी वादा किया. इसके अलावा त्रिपुरा में खस्ताहाल पड़ी सड़कों के पुनर्निमाण कराने का दावा भी बीजेपी ने किया.
1993 से त्रिपुरा में लेफ्ट की सरकार है, जबकि 1996 से 2 लोकसभा सीटों पर भी लेफ्ट का ही कब्जा है. अगले लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने सियासी समीकरण बदल दिए हैं.
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त्रिपुरा में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत राज्य में आईपीएफटी से उनका चुनावी गठबंधन है. आईपीएफटी त्रिपुरा के जनजातीय लोगों का प्रतिनिधित्व करती है. त्रिपुरा विधानसभा में 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. दरअसल, IPFT त्रिपुरा की जनजातियों की मुख्य पार्टी है, जो अलग त्रिपुरा लैंड की मांग के साथ ही बनी है. हालांकि बीजेपी के लिए ये मुश्किल हो सकता है, क्योंकि बीजेपी अलग राज्य के सपोर्ट में नहीं है.
बीजेपी त्रिपुरा के चुनाव में भी सीएम उम्मीदवार का नाम सामने नहीं लाई, यहां पीएम मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा गया. क्योंकि बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था, जो माणिक सरकार के मुकाबले खड़ा होता हो. माणिक अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते रहे हैं.
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Published: 03 Mar 2018,12:51 PM IST