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UP चुनाव:अब ओवैसी ने की राजभर से मुलाकात,मतलब ‘रिश्ता नया-सोच वही’

ओवैसी सिर्फ राजभर से ही मुलाकात नहीं करने जा रहे, वो कई छोटी-छोटी पार्टियों के नेतृत्व से मिल सकते हैं

अभय कुमार सिंह
पॉलिटिक्स
Updated:
UP चुनाव:अब ओवैसी ने की राजभर से मुलाकात,मतलब ‘रिश्ता नया-सोच वही’
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UP चुनाव:अब ओवैसी ने की राजभर से मुलाकात,मतलब ‘रिश्ता नया-सोच वही’
(फोटो: क्विटं हिंदी)

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देश के सबसे बड़े सियासी राज्य उत्तर प्रदेश में यूं तो चुनाव करीब डेढ़ साल बाद है लेकिन पार्टियों ने कमर कसनी शुरू कर दी है. 15 दिसंबर को खबर आई कि आम आदमी पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो उसके अगले ही दिन AIMIM की तरफ से भी 'हलचल' शुरू हो गई है. पार्टी के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने 16 दिसंबर को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात की है. राजभर की पार्टी योगी सरकार में साथ भी रह चुकी है. ओवैसी सिर्फ राजभर से ही मुलाकात नहीं करने जा रहे, वो कई छोटी-छोटी पार्टियों के नेतृत्व से मिल सकते हैं, जिसमें शिवपाल की पार्टी प्रसपा का भी नाम है.

राजभर से मुलाकात के बाद ओवैसी ने सीएम योगी आदित्यनाथ पर इशारों-इशारों मे तंज भी कसा. ओवैसी ने कहा- 'मैं नाम बदलने नहीं, दिलों को जीतने आया हूं.' ओवैसी का कहना है कि वो राजभर के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार हैं.

बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साह में हैं ओवैसी!

'रिश्ता नया-सोच वही' क्यों कह रहे हैं? मतलब ये है कि बिहार चुनाव कुछ पार्टियों के गठजोड़- संयुक्त जनतांत्रिक सेक्यूलर गठबंधन बनाकर लड़ी AIMIM ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था और पांच सीटें हासिल की थीं. यूपी में वो भी ओवैसी उसी 'सोच' या कहे तो 'फॉर्मूले' के साथ आगे बढ़ेंगे, जिसकी पहली कड़ी है ओम प्रकाश राजभर और ओवैसी के बीच की ये मुलाकात.

ओवैसी और राजभर ने कमोबेश इस गठबंधन को शक्ल दे दी है. राजभर का कहना है कि यूपी में 2022 चुनाव में 8 पार्टियों की भागीदारी है, जिसमें ओवैसी की पार्टी भी शामिल हैं. इस मोर्चे का नाम है- भागीदारी संकल्प मोर्चा और देर-सवेर कुछ और छोटी पार्टियां इसका हिस्सा बन सकती हैं.

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इस नए गठबंधन के मायने क्या हैं?

आम आदमी पार्टी की एंट्री यूपी के चुनाव में हो ही चुकी है, अब इस नए गठबंधन में ओवैसी भी शामिल हो चुके हैं. यू़पी में पहले से ही विपक्ष में बीएसपी, कांग्रेस, एसपी जैसी बड़ी पार्टियां हैं, जो इस बार अलग-अलग ही चुनावों में उतरेंगी. क्योंकि एसपी-बीएसपी, एसपी-कांग्रेस का गठबंधन पहले ही बनकर ढह भी गया है. अब अखिलेश यादव किसी भी बड़ी पार्टी से गठबंधन करने से बचेंगे ही.

ऐसे में कुल मिलाकर विपक्ष बिखरा हुआ है और विपक्ष की तरफ सहानुभूति रखने वाले लोगों के लिए ये तय करना मुश्किल हो सकता है कि किसे वोट करें और किस आधार पर करें.

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Published: 16 Dec 2020,03:57 PM IST

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