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यूपी में आया चुनावी सीजन, किसके सिर पर सजेगा ताज?

यूपी चुनाव के लिए सात फेज में होने वाली वोटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू होकर पूर्वांचल में खत्म होगी.

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Updated:
(फोटो: द क्‍व‍िंट)
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(फोटो: द क्‍व‍िंट)
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नोटबंदी के असर और समाजवादी परिवार में मची सिरफुटव्वल की खबरों के बीच निर्वाचन आयोग ने 5 राज्‍यों में चुनाव तारीखों का एेलान कर दिया. इन राज्यों की कुल 690 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग 4 फरवरी से 8 मार्च के बीच होगी. नतीजे 11 मार्च को घोषित किए जाएंगे.

पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में चुनाव एक ही फेज में निपट जाएंगे, जबकि आर्थिक नाकेबंदी से जूझ रहे मणिपुर में वोटिंग दो फेज में होगी. लेकिन सबसे ज्यादा नजरें उत्तर प्रदेश पर लगी हैं, जिसे महीने भर की मैराथन चुनावी प्रक्रिया से गुजरना होगा. यूपी में चुनाव सात फेज में होंगे.

यूपी में चुनाव तो 2012 में भी सात फेज में ही हुए थे, लेकिन उस बार वोटिंग के इलाकों का चयन बिलकुल अलग था. पिछले विधानसभा चुनाव में वोटिंग पूर्वांचल से शुरू होकर बुंदेलखंड और अवध के रास्ते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खत्म हुई.

नतीजे कुछ इस तरह रहे:

लेकिन इसके बाद 2014 के आम चुनाव में निर्वाचन आयोग ने वोटिंग के पुराने रूट को पूरी तरह बदल दिया. इस बार वोटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़ जैसी खांटी मुस्लिम बेल्ट से शुरू होकर पूर्वांचल के गोरखपुर, आजमगढ़ और वाराणसी जैसे सवर्ण वोटरों के प्रभाव वाले इलाकों में खत्म हुई.

नतीजे वो रहे कि पूरा देश हैरान रह गया. मुस्लिम, दलित, ओबीसी, राजपूत, ब्राह्मण, यादव, कुर्मी, कोयरी और न जाने कितने हिस्सों में बिखरे यूपी के वोटर ने एकतरफा फैसला देते हुए बीजेपी को सिर-आंखों पर बिठा लिया. नतीजे थे:

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लिहाजा कहा जा सकता है वोटिंग का ‘पश्चिम से पूर्व’ वाला पैटर्न बीजेपी के पक्ष में रहा. निर्वाचन आयोग ने एक बार फिर आम चुनावों की तर्ज पर ही यूपी में वोटिंग करवाने का फैसला किया है.

अगले महीने विधानसभा चुनावों के लिए सात फेज में होने वाली वोटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू होकर पूर्वांचल में खत्म होगी. जानकारों के मुताबिक लोकसभा चुनावों के दौरान पश्चिम यूपी में बीजेपी के पक्ष में बंपर वोटिंग हुई थी. अगर इस बार भी ऐसा हुआ, तो बाकी के फेज में बीजेपी को फायदा हो सकता है.

हालांकि चुनावों के दौरान एग्जिट पोल और चुनावी सर्वे पर रोक रहेगी, लेकिन फिर भी खबरों के जरिये हवा तो फैलती ही है. तो क्या ये महज इत्तेफाक है कि निर्वाचन आयोग ने एक बार फिर वोटिंग पश्चिम यूपी से ही शुरू करवा रहा है.

(फोटो साभार: ट्विटर)
हालांकि 2014 के बाद से गंगा में बहुत पानी बह चुका है. आम चुनावों के वक्त नरेंद्र मोदी की लहर थी. वैसे भी लोकसभा चुनावों में वोटर की पसंद पर राष्ट्रीय राजनीति हावी रहती है, जबकि विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे.

केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर लोगों की क्या राय बनती है, यह अभी तय नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 जनवरी की लखनऊ महारैली में नोटंबदी का एक बार भी जिक्र न करके ये इशारा दे दिया कि ये मुद्दा बीजेपी के गले की फांस बना हुआ है.

समाजवादी पार्टी में मचे दंगल के बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यूपी की राजनीति में एक सितारे की तरह उभरे हैं. हालिया चुनावी सर्वे भी अखिलेश की अगुवाई वाली सपा को यूपी की नंबर एक पार्टी बता रहे हैं.

सर्वे के मुताबिक अगले मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यूपी के वोटर की पहली पसंद हैं. सपा जैसी ‘दबंगों’ की पार्टी पहली बार विकास का मॉडल दिखाकर वोट मांग रही है.

समाजवादी पार्टी का नारा- ‘जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है’ अब बदल गया है. ‘नया नारा है- जिसका पिता मुलायम है, उसका जलवा कायम है’.

उधर कभी ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाली मायावती साल 2007 की तर्ज पर ही सवर्णों के साथ सोशल इंजीनियरिंग का सफल प्रयोग दोहरा रही हैं. मौजूदा चुनावों में मायावती यूपी की 403 सीटों में से सबसे ज्यादा 113 टिकट ब्राह्मण और राजपूतों को दिए हैं, जबकि बीएसपी के कोर वोटर दलित के हिस्से सबसे कम 87 टिकटआए.

कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद बड़ी रेस से बाहर है. सितंबर महीने में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की 'किसान यात्रा' ने जो जोश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में भरा था, वो पूरी तरह काफूर हो चुका है. वैसे अखिलेश के साथ कांग्रेस का संभावित गठबंधन पार्टी की आशाएं कुछ जगा सकता है.

चुनाव आयोग ने तारीखों का एेलान करके चुनावी बिगुल फूंक दिया है. अब गेंद सियासी पार्टियों से निकलकर वोटर के पाले में आ चुकी है. 11 मार्च को नतीजे आने हैं. बेसब्री से इंतजार रहेगा कि जातियों के मकड़जाल में उलझी उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसके सिर ताज सजेगा और किस पर गाज गिरेगी.

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Published: 04 Jan 2017,07:05 PM IST

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