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मछलीशहर, मेरठ, श्रावस्ती... 2019 में UP की सबसे कम मार्जिन की जीत वाली सीटों पर कौन भारी?

Lok Sabha Election: 2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की मछलीशहर सीट पर हार-जीत का अंतर मात्र 181 वोट था.

मोहन कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2024</p></div>
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उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2024

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की सरगर्मियां चरम पर हैं. उम्मीदवारों के ऐलान के साथ ही पार्टियां प्रचार में जुटी हैं. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) सभी 80 सीटें जीतने का दावा कर रही है, तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (SP) बड़े उलटफेर की बात कह रही है.

चलिए आपको बताते हैं कि यूपी की उन सीटों के बार में जहां 2019 में हार-जीत का मार्जिन 20 हजार वोटों से कम रहा था.

2019 में इन सीटों पर हार-जीत का मार्जिन 20 हजार से कम

  • मछलीशहर- 181 वोट

  • मेरठ- 4,729 वोट

  • श्रावस्ती- 5,320 वोट

  • मुजफ्फरनगर- 6,526 वोट

  • कन्नौज- 12,353 वोट

  • चंदौली- 13,959 वोट

  • सुल्तानपुर- 14,526 वोट

  • बलिया- 15,519 वोट

  • बदायूं- 18,454

इन 9 सीटों में से 8 सीटों पर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी. वहीं श्रावस्ती सीट पर बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने बीजेपी को हराया था.

सबसे कम वोटों के अंतर से सांसद बने थे बीपी सरोज

2019 लोकसभा चुनाव में जौनपुर के मछलीशहर (SC) सीट पर बीजेपी के बीपी सरोज को मात्र 181 वोटों से जीत मिली थी. बीपी सरोज को जहां 4,88,397 वोट मिला था, वहीं बीएसपी उम्मीदवार त्रिभुवन राम के खाते में 4,88,216 वोट आया था. हालांकि अब त्रिभुवन राम भाजपाई हो गए हैं. 

इस सीट पर पिछले दो बार से बीजेपी और बीएसपी के बीच मुकाबला देखने को मिला है. 2014 में बीजेपी के राम चरित्र निषाद ने जीत दर्ज की थी. तब बीपी सरोज ने बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

दलित और पिछड़ा बहुल मछलीशहर लोकसभा सीट पर इस बार भी बीजेपी ने बीपी सरोज पर ही भरोसा जताया है. इस लोकसभा क्षेत्र में सरोज जाति के मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. बीजेपी ने इसी को ध्यान रखते हुए दोबारा यह दांव खेला है. वहीं एसपी और बीएसपी ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया है.

मेरठ में 'टीवी के राम'

पश्चिमी यूपी की मेरठ लोकसभा सीट पर इस बार भी रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है. बीजेपी, एसपी और बीएसपी- तीनों प्रमुख पार्टियों ने नए उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. बीजेपी ने टीवी धारावाहिक रामायण में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल को अपना प्रत्याशी बनाया है. पार्टी उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहती है. वहीं समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर दो बार उम्मीदवार बदलकर तीसरी बार में मेरठ की पूर्व मेयर सुनीता वर्मा को टिकट दिया है. बीएसपी ने देववृत त्यागी को प्रत्याशी घोषित किया है.

गौरतलब है कि इस सीट पर 2019 में हार-जीत का अंतर 4,729 वोट रहा था. बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने बीएसपी के हाजी मोहम्मद याकूब को हराया था.

मेरठ के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर 65 फीसदी हिंदू हैं और 36 प्रतिशत मुस्लिम हैं. 2019 में बीएसपी और एसपी ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, तब भी बीजेपी को हरा नहीं पाई थी. वहीं 2014 और 2009 में दोनों पार्टियां अकेले मैदान में थी, जिससे वोट बंटा था और बीजेपी को सीधे तौर पर फायदा हुआ था.

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श्रावस्ती सीट बचा पाएगी बीएसपी?

2019 में बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर 5,320 वोटों से जीत दर्ज की थी. बीएसपी के राम शिरोमणि वर्मा (4,41,771 वोट) ने बीजेपी के दद्दन मिश्रा (4,36,451 वोट) को हराया था.

बीजेपी ने इस बार दद्दन मिश्रा का टिकट काटकर साकेत मिश्रा पर दांव गया है. बता दें कि साकेत मिश्रा राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा के बेटे और पूर्व नौकरशाह हैं. वहीं अभी तक इस सीट पर एसपी-बीएसपी के प्रत्याशियों का इंतजार है.

माना जाता है कि श्रावस्ती में क्षत्रिय 5 प्रतिशत के करीब हैं. 10 प्रतिशत से ज्यादा दलित वोटर हैं. 15 प्रतिशत के करीब यादव और करीब 20-20 फीसदी मुसलमान और कुर्मी हैं. सबसे ज्यादा ब्राह्मण 30 प्रतिशत के करीब हैं. ऐसे में ब्राह्मण वोट हार-जीत तय करती है.

मुजफ्फरनगर में सम्मान की लड़ाई

मुजफ्फरनगर में लोकसभा चुनाव को दो सीनियर जाट नेता के बीच सम्मान की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी के दो बार के सांसद संजीव बालियान और समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक आमने-सामने हैं. 2019 के चुनावों में, बालियान ने राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के खिलाफ 6500 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी.

मुजफ्फरनगर को लेकर कहा जाता है कि जाट मतदाता नतीजों पर असर डालते हैं. हालांकि जाट कुल मतदाता आधार का लगभग 18 फीसदी हैं. वोटों का बहुमत हिस्सा मुस्लिम समुदाय का है, जो 39 फीसदी है. लगभग 14 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दलित वोट बैंक भी इलाके में अहम रोल अदा करता है. इसके अलावा, गुर्जर और ठाकुर समुदायों में से प्रत्येक के पास लगभग 10 फीसदी वोट हैं.

समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर RLD नेता जयंत चौधरी ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया है. अब देखना होगा कि बदले समीकरण से किसे कितना फायदा होता है.

कन्नौज, चंदौली, सुल्तानपुर में बीजेपी का पुराने चेहरों पर भरोसा

कन्नौज, चंदौली, सुल्तानपुर ऐसी सीटे हैं जहां पिछले चुनाव में हार-जीत का अंतर 15 हजार वोटों से कम था. बीजेपी ने तीनों सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी ने एक बार फिर मौजूदा सांसदों पर ही भरोसा जताया है.

कन्नौज और चंदौली में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी. एसपी ने कन्नौज सीट पर अपना पत्ता नहीं खोला है. वहीं चंदौली से संजय चौहान का टिकट कट गया है. उनकी जगह पार्टी ने वीरेंद्र सिंह पर भरोसा जताया है. सुल्तानपुर में बीजेपी सांसद मेनका गांधी के सामने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी भीम निषाद ताल ठोक रहे हैं. पिछले चुनावों में दूसरे नंबर पर रही एसपी ने अपने अभी तक अपने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है.

वहीं बलिया और बदायूं में हार जीत का अंतर 20 हजार वोटों से कम था. इन दोनों सीटों पर बीजेपी जीती थी. पार्टी ने बलिया सीट पर वीरेन्द्र सिंह की जगह इस बार नीरज शेखर को टिकट दिया है. नीरज शेखर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे हैं और बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा हुआ है.

वहीं बदायूं से संघमित्रा मौर्य की जगह पार्टी ने  दुर्विजय सिंह शाक्य को चुनाव मैदान में उतारा है. दुर्विजय सिंह का मुकाबला समाजवादी पार्टी के दिग्गज शिवपाल सिंह यादव से होगा.

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