Home News Politics यूपी पंचायत चुनाव: आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद क्या बदलेगा?
यूपी पंचायत चुनाव: आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद क्या बदलेगा?
उत्तर प्रदेश में होने जा रहे पंचायत चुनाव के लिए योगी सरकार ‘नई सीट आरक्षण नीति’ लेकर आई थी.
अभय कुमार सिंह
पॉलिटिक्स
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यूपी पंचायत चुनाव: आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद क्या बदलेगा?
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उत्तर प्रदेश में होने जा रहे पंचायत चुनाव के लिए योगी सरकार 'नई सीट आरक्षण नीति' लेकर आई थी. लेकिन 15 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने योगी सरकार को निर्देश दिए हैं कि 2015 के नियमों के हिसाब से ही आरक्षण को लागू किया जाए.
यूपी सरकार की तरफ से नया आदेश जारी करने के बाद से ही इसपर खूब चर्चा थी. इसका नफा-नुकसान गिनाया जाने लगा था. कुछ जानकार इसे विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति बता रहे थे, ऐसा कहा जा रहा था कि जिन सीटों पर सालों साल किसी एक तबके का कब्जा था, उसे बदला जाएगा.
ऐसे में समझते हैं-
आखिर ये फैसला क्या है?
2015 का सीट आरक्षण नियम क्या था ?
योगी सरकार द्वारा जारी सीट आरक्षण नियम क्या है?
क्या-क्या बदलेगा?
आपत्तियां क्या थीं?
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सीट आरक्षण में 2015 के नियमों को लागू किया जाए- हाईकोर्ट
दरअसल, अजय कुमार नाम के एक शख्स ने जनहित याचिका दायर की थी कि मौजूदा योगी सरकार ने सीटों के आरक्षण के लिए जो आदेश दिया है वो सितंबर, 2015 के आदेश का उल्लंघन है.
11 फरवरी को यूपी सरकार की तरफ से जारी सरकारी आदेश में पंचायत चुनाव में आरक्षित सीटों को रोटेट करने के लिए 1995 को आधार वर्ष माना गया था.
सितंबर, 2015 में तत्कालीन अखिलेश सरकार ने पिछले पंचायत चुनावों के लिए आधार वर्ष 2015 ही तय किया था.
अब इलाहाबाद हाइकोर्ट के जस्टिस ऋतुराज अवस्थी और मनीष ठाकुर की बेंच ने योगी सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि यूपी पंचायत चुनाव प्रक्रिया 25 मई तक पूरी हो जाए. और 2015 के आरक्षण नियमों के हिसाब से सीट आरक्षण तय हों.
योगी सरकार द्वारा जारी सीट आरक्षण नियम क्या है?
योगी सरकार ने जो आदेश पारित किया था उसके मुताबिक, पंचायत चुनाव में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की सर्वाधिक आबादी वाले जिला, क्षेत्र और ग्राम पंचायतों को रोटेशन में आरक्षित किया जाएगा.
लेकिन 1995, 2000, 2005, 2010 और 2015 में जो पंचायतें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित थीं, वे इस बार अनुसूचित जाति के लिए आवंटित नहीं की जाएंगी. जो पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित रह चुकी हैं, उन्हें पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित नहीं किया जाएगा.
1995 से लेकर 2015 तक पांच चुनावों में अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित रही सीटें इस बार उस कैटेगरी के लिए आरक्षित नहीं की जाएगी.
अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार ने बताया था कि इस रोटेशन पॉलिसी का सबसे अहम सिद्धांत ये है कि जो ग्राम, क्षेत्र या जिला पंचायतें अभी तक किसी कैटेगरी के लिए आरक्षित नहीं हुई हैं, उन्हें सबसे पहले उसी कैटेगरी के लिए आरक्षित किया जाएगा. मनोज कुमार ने आरक्षण की प्राथमिकता को कुछ इस तरह बताया है:
सबसे पहले अनुसूचित जनजाति महिला, फिर अनुसूचित जनजाति, फिर अनुसूचित जाति महिला, पिछड़ा वर्ग महिला, अनुसूचित जाति पुरुष, जनरल कैटेगरी महिला और फिर जनरल कैटेगरी.
2015 का सीट आरक्षण नियम क्या था ?
प्रदेश में ग्राम पंचायतों का सामान्य पुनगर्ठन और परिसीमन साल 1991 की जनगणना के आधार पर साल 1995 में हुआ था. अखिलेश सरकार का कहना था कि इसके बाद 2001, 2011 में जनगणना के आंकड़े प्रकाशित किए गए थे. ऐसे में 2011 की जनगणना के आधारआधार पर 2014-15 में ग्राम पंचायतों के सामान्य पुनर्गठऩ और परिसिमन की कार्यवाही की गई थी. हजारों नई ग्राम पंचायते गठित हुई थीं.
ऐसे में उस वक्त सरकार ने संशोधन करते हुए 2015 को आधार वर्ष माना, इसी साल को सीट आरक्षण नए सिरे से किया गया. उसके पहले हुए 1995, 2000, 2005 और 2010 में हुए आरक्षण को जीरो कर दिया. अब हिसाब से 2020 (मौजूदा साल) के बाद 2025 के चुनाव में 2021 की जनगणना के हिसाब से आरक्षण तय किया जाएगा और 2015 और 2020 में हुए आरक्षण की स्थिति को जीरो मान लिया जाएगा.
पंचायती राज,यूपी
क्या-क्या बदलेगा?
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद
राज्य में अब नई आरक्षण लिस्ट आएगी
पंचायत चुनाव थोड़े और देरी से होंगे. कोर्ट ने अब योगी सरकार से कहा है कि चुनाव की प्रक्रिया 25 मई तक पूरी हो जाए. इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुसार, पंचायत चुनाव 13 जनवरी, 2021 को या उससे पहले हो जाना चाहिए था.
जो प्रत्याशी योगी सरकार की आरक्षण नीति के हिसाब से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे, उन्हें झटका लगेगा. जो पैसे खर्च किए गए होंगे, उसका नुकसान उठाना होगा.
कई शिकायतें भी आईं थी सामने
याचिकाकर्ताओं की तरफ से ये भी दलील दी जा रही थी कि मौजूदा सरकार के नियमों के मुताबिक, 1995 से 2015 तक जिन सीटों पर आरक्षण हुआ है उनको छोड़ कर जो आरक्षित नहीं हुई हैं उन सीटों को आरक्षित किया जा रहा था. ऐसे में कई सीटों पर समीकरण ऐसे बैठ रहे थे कि अनुसूचित जाति की कम आबादी वाली सीटों या जहां अनुसूचित जाति है ही नहीं ऐसी सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थीं. क्विंट हिंदी को बिजनौर जिले में ऐसे कई कई पंचायत सीटें दिखी हैं. उदाहरण के तौर पर बिजनौर का 2400 वोटों वाला 'अमीपुरसुधा' गांव है. इस गांव के प्रधान प्रतिनिधि शौकत अली का कहना है कि गांव में एक भी SC घर नहीं हैं न ही वोटर हैं. ऐसे में हमारे गांव को कैसे SC के लिए आरक्षित कर दी गई.