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यूपी में पंचायत चुनाव चल रहे हैं. लेकिन क्या आपको ये भी पता है कि यूपी के कई गांव ऐसे भी हैं, जो इन पंचायत चुनाव में पहली बार अपने गांव की सरकार चुनेंगे, अपने गांव में अपनी सरकार होगी? गोरखपुर के 5 और महाराजगंज के ये 18 गांव 'वनटांगिया गांव' हैं, जिनमें इस बार ये बदलाव देखने को मिलेगा.
गोरखपुर के इन 5 गांवों में 950 घर हैं वहीं महाराजगंज के 18 गांव में करीब 3,779 परिवार रहते हैं. इन गांवों को योगी सरकार के इस कार्यकाल मे 'राजस्व गांव' घोषित किया गया था. यूं तो इन गावों के लोगों ने 2015 के पंचायत चुनाव में भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था लेकिन 'राजस्व गांव' नहीं होने से सुविधाएं नहीं मिला करती थीं. इससे पहले अधिकारी भी इन गांवों में सरकारी योजनाएं नहीं लाते थे, पिछले कुछ सालों में स्थिति बदली है. स्कूल बने हैं, राशन कार्ड से राशन मिलने लगा. बिजली, सड़क, पानी, आवास जैसी सुविधाएं इन लोगों को मिलने लगीं. साथ ही पात्रों को वृद्धा, विधवा, दिव्यांग पेंशन योजनाओं का लाभ भी मिलने लगा. हर वो सुविधा जो गांवों में दी जाती थीं वो अब इन गांवों के लोग भी उसके हकदार हो गए.
वनटांगिया लोगों का इतिहास एक सदी पुराना है. 1920 के आसपास गोरखपुर और उसके आसपास के इलाकों में रेल की पटरियां बिछाने के लिए बड़े पैमाने पर अंग्रेजों ने जंगलों को कटवाएं. इसके बाद अंग्रेजों ने इन काटे गए जंगलों को फिर से उगाने, इनके संरक्षण के लिए और जो जगह खाली हैं इनपर खेती के लिए कुछ लोगों को यहां बसाया. गोरखपुर, महाराजगंज के अलावा बलरामपुर, गोंडा जैसे जिलों में वनटांगिया लोग रहते हैं.
म्यांमार के 'टॉन्गया ट्राइब' जो पद्धति जंगल तैयार करने के लिए इस्तेमाल करती थी. उसी तकनीक का इस्तेमाल यहां भी कराया जाने लगा और इसी नाम से 'वनटांगिया' शब्द बना, जिसका इस्तेमाल अबतक होता है.
ये सिलसिला आजादी के बाद भी चलता रहा. 80 के दशक में इन गांववालों से वनविभाग ने किनारा कर लिया, काम लेना बंद कर दिया. कुछ ही साल बाद इन्हें अतिक्रमणकारी की तरह पेश किया जाने लगा और जंगलों से हटाए जाने की बात होने लगी, नोटिस दिया जाने लगा. वनटांगिया गांव के लोगों को ये पसंद नहीं आया और उन्होंने विरोध शुरू कर दिया. अपनी समिति बनाकर अपने हक की लड़ाई लड़ने लगे.
90 के दशक में उन्हें वोट करने का अधिकार मिला. इस बीच वो लगातार राजस्व गांव की मांग करते आए थे. 2015 में पंचायत चुनाव में भी वनटांगिया गांव के लोगों ने हिस्सा लिया लेकिन 'राजस्व गांव' का दर्जा इन्हें योगी के कार्यकाल में ही मिला है.
हालिया बजट में योगी आदित्यनाथ वनटांगिया गांवों में दी जा रही सुविधाओं को उपलब्धि बताते नजर आए थे. मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही सीएम योगी का इस इलाके से रिश्ता रहा है. इलाके में सीएम योगी आदित्यनाथ को 'टॉफी वाला बाब' के नाम से भी लोग जानते हैं. मुख्यमंत्री पिछले कुछ सालों से वनटांगिया बच्चों के साथ दिवाली मना रहे हैं. वनटांगिया लोग पिछले साल 25 दिसंबर को तब सुर्खियों में आए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुबंध खेती का उदाहरण स्थापित करने के लिए एक एफपीओ 'महाराजगंज सब्जी उत्पादक कंपनी' के निदेशक राम गुलाब के साथ आभासी बातचीत की.
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