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उत्तर प्रदेश में दो फेज के वोट पड़ चुके हैं. विधानसभा की 28% सीटों पर प्रदेश की 26% जनता ने अपना मत दे दिया. पहले चरण में 60% और दूसरे में 64.42% मतदान हुआ. वोटिंग के ये पैटर्न प्रदेश की राजनीति के 5 ऐसे फैक्टर सामने रख रहे हैं, जो शायद यूपी के अगले पांच चरणों के मतदान में भी देखने को मिले.
पहले दो फेज में जिन 20 जिलों में वोट पड़े, उनमें 6 जिले ऐसे हैं जहां प्रदेश का सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर है. पहले चरण में 60% वोट पड़े, लेकिन शामली के कैराना में सबसे ज्यादा 75% वोट पड़े. अभी तक इतनी वोटिंग किसी भी सीट पर नहीं हुई. दूसरे फेज में कुल 9 जिले थे, जिनमें सबसे ज्यादा वोट पड़ने वाले टॉप 6 जिले अमरोहा, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद और बरेली हैं. यानी 9 में से 6 मुस्लिम आबादी वाले जिलों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई.
उत्तर प्रदेश में BJP के लिए सबसे टफ पहला और दूसरा फेज माना जा रहा था. वजह थी कि दोनों जगहों पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है. साल 2014, 2017 और 2019 में पश्चिमी यूपी में बीजेपी इसलिए फायदे में रही कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वोटों का ध्रुवीकरण हो गया. फिर कैराना में पलायन का मुद्दा भी सुर्खियों में रहा. अबकी बार RLD चीफ जयंत चौधरी ने कई जगहों पर जाट-मुस्लिम भाईचारा सम्मेलन किया.
BJP के भाषणों को देखें तो उन्होंने अपने 5 साल के विकास के काम शुरुआती कुछ दिनों में तो गिनाए, लेकिन जैसे ही चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ. अमित शाह ने कैराना से रैली की शुरुआत की. मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र किया. योगी आदित्यनाथ ने गर्मी शांत करने जैसे बयान दिए. चुनाव में ऐसे बयानों से ध्रुवीकरण होने की संभावना बढ़ जाती है. 2017 में तीसरे चरण के आसपास फतेहपुर में कब्रिस्तान का बयान दिया गया था, लेकिन अबकी बार पहले चरण से ही ऐसे बयान आने लगे. लेकिन अबकी बार दोनों चरणों में ध्रुवीकरण कम दिखा. क्योंकि ऐसा होता तो शायद वोटों के प्रतिशत कम नहीं होते, बल्कि मोदी लहर और उसके बाद के चुनावों में जैसे बढ़े थे. वैसे ही नजर आते.
पहले चरण में नोएडा और गाजियाबाद ऐसी जगहें थीं, जहां सबसे कम वोट पड़े. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों जैसे, मुजफ्फरनगर, बागपत, शामली में वोट प्रतिशत बढ़ा. दूसरे चरण में शाहजहांपुर, बदायूं जैसी जगहों पर मतदान का उत्साह कम दिखा. औसत देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 60-65 फीसदी वोट दिखते हैं वहीं शहरों में 55-60 फीसदी. करीब 5-10 फीसदी वोटों का अंतर. यानी करीब 30-40 हजार वोट कम पड़ रहे हैं. मोटेतौर पर शहरी वोटर BJP का माना जाता है. ऐसे में अगर वोटर घर से बाहर नहीं निकल रहा है तो सत्ता पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
साल 2014, 2017 और 2019 में गैर यादव ओबीसी और ब्राह्मण वोटर ने BJP को बंपर जीत दिलाई. लेकिन अबकी बार गैर यादव वोटर बंटता हुआ दिख रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर जैसे चेहरे BJP से टूटकर SP में आ गए. ये ओबीसी के बड़े चेहरे माने जाते हैं. ग्राउंड पर मौजूद पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि ब्राह्मण वोटर तो BJP के साथ दिख रहा है. कुछ ही जगहों पर बंटा है. लेकिन कुर्मी वोटों का बंटवारा हुआ है. BJP से कुछ टूटे हैं. कुछ जगहों पर मौर्य, सैनी, शाक्य, कुशवाहा के वोटों का बंटवारा हुआ दिखता है. लोधी वोट अभी भी BJP के साथ है. प्रजापति वोट अभी भी BJP के पास है. लेकिन ओबीसी की गैर यादव बिरादरी में SP सेंध लगाने में सफल दिख रही है.
यूपी के दो चरणों में जाट और मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में थे. ये दोनों बीजेपी से नाराज माने गए. ऐसे में पार्टी को मुश्किल का सामना करना पड़ा. वहीं आरएलडी के आने से जाट और मुस्लिम वोट एसपी गठबंधन को मिलने की उम्मीद ज्यादा दिखी. माहौल बना की 10 और 14 फरवरी को हुए मतदान में एसपी गठबंधन फायदे में रही. पिछले कुछ चुनावों में यही पैटर्न दिखा कि जो पार्टी शुरुआती चरणों में प्लस कर ले जाती है वह आगे तक रहती है.
आगे का ट्रेंड क्या हो सकता है: चुनाव में जीत का नैरेटिव सेट होने से एक बड़ा फायदा ये होता है कि जो फ्लोटर वोटर है, वह हवा देखकर जीतने वाली पार्टी को ही वोट कर देता है. यानी जिस वोटर ने तय नहीं किया कि किसे वोट करेगा. वह नैरेटिव के जरिए अपनी लाइन क्लियर कर लेता है. यानी आगे के चरणों में SP को कुछ जगहों पर फायदा मिलता दिख सकता है.
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Published: 16 Feb 2022,05:04 PM IST