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कर्नाटक विधानसभा चुनाव देशभर में विपक्षी एकता के साथ ही साथ यूपी की विपक्षी पार्टियों के लिए भी सबक है. इस चुनाव ने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाले मतों के विभाजन को रोकने की जरूरत विपक्ष को महसूस कराया है. पार्टी नेताओं का कहना है कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों का तर्क है कि ये बीजेपी विरोधी मतों का बंटवारा ही था जिस कारण से कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया, “ आने वाले चुनावों में एक ऐसी रणनीति तैयार करने की बहुत जरूरत है जो ये सुनिश्चित करे कि बीजेपी विरोधी मत बंटे नहीं ,जिससे उसे किसी तरह का फायदा मिले.'' उन्होंने कहा कि चुनावों को अब रणनीतिक तरीके से लड़ने की जरूरत है. चौधरी ने कहा कि ये सफलता एकजुटता से हासिल की जा सकती है जिसका उदाहरण फूलपुर और गोरखपुर में बखूबी देखने को मिला जहां एसपी ने बीएसपी की मदद से बीजेपी का सामना किया.
कांग्रेस प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी भी इस दलील से सहमत नजर आते हैं, उनका कहना है कि कर्नाटक के नतीजों को देखते हुए ये बहुत जरूरी हो गया है कि चुनाव न सिर्फ चुनाव जीतने के लिए बल्कि संवैधानिक निकायों को बचाने के लिए भी एकजुट होकर लड़े जाएं. त्रिपाठी ने कहा , “ सबसे अहम है बीजेपी को सत्ता से दूर रखना और संविधान को बचाना. ''
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रवक्ता अनिल दूबे ने कहा कि उनकी पार्टी का हमेशा से मानना था कि समान विचारों वाली सभी गैर-बीजेपी पार्टियों को बीजेपी को रोकने के लिए एक मंच पर आना चाहिए.
लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के पूर्व प्रमुख और राजनीतिक विश्लेषक रमेश दीक्षित कहते हैं कि कर्नाटक चुनाव से ये सबक सीखना होगा कि केवल एक एकजुट विपक्ष ही बीजेपी को रोक सकता है और पिछले आंकड़े इस बात को साबित करते हैं.
(इनपुट: एजेंसी)
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