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उत्तराखंड राज्य को 6 महीने में तीसरा मुख्यमंत्री मिलने वाला है. राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. दिल्ली में पार्टी हाईकमान से मुलाकात के बाद तीरथ सिंह रावत देहरादून पहुंचे, मीडिया के सामने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश किया और राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा दे दिया. पिछले 20 साल में उत्तराखंड में सिर्फ 1 मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया है. लेकिन तीरथ सिंह रावत को कुछ महीने पहले ही पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया था, तो फिर पार्टी ने अपने कदम क्यों वापस ले रही है?
मुख्यमंत्री का तर्क हो सकता है कि वो सीएम पद पर इसलिए बने नहीं रह सकते क्यों कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 151 के तहत फिलहाल चुनाव संभव नहीं हैं. लेकिन क्या सिर्फ यही कारण है?
जब तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया तब वो सांसद थे, विधायक नहीं थे. मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधायक होना जरूरी होता है. चूंकि उत्तराखंड में विधान परिषद नहीं है, इसलिए रावत को उपचुनाव लड़ना और जीतना जरूरी था.
फिलहाल उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्दवानी दो विधानसभा सीटें खाली हैं. गंगोत्री सीट से बीजेपी विधायक गोपाल सिंह रावत का कोरोना वायरस की वजह से निधन हो गया, वहीं हल्दवानी से कांग्रेस विधायक का निधन हो गया.
लेकिन यहां पर नियम ये है कि अगर विधानसभा चुनाव को एक साल से कम का वक्त बचा है तो उपचुनाव नहीं कराए जा सकते.
अगर कोई संवैधानिक संकट आता है तो ऐसी परिस्थिति में उपचुनाव कराए जाने का भी प्रावधान है. अगर मुख्यमंत्री बिना विधायक रहते हुए सीएम पद पर बने रहना चाहते हैं तो विधानसभा चुनाव से पहले भी उपचुनाव कराए जा सकते हैं.
लेकिन ऐसा लगता है कि बीजेपी उपचुनाव का रास्ता अख्तियार नहीं करना चाहती है और वो तीरथ सिंह रावत को हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है.
तीरथ सिंह रावत का बतौर मुख्यमंत्री खराब प्रदर्शन और कोरोना को ठीक तरह से मैनज न कर पाना भी उन्हें हटाए जाने का एक बड़ा कारण हो सकता है. इसके अलावा उनकी उटपटांग बयानबाजी से भी बीजेपी की आए दिन किरकिरी होती रहती थी. लेकिन गंगोत्री में बीजेपी विरोध का सामना कर रही थी. अगर तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ते भी तो उन्हें कांग्रेस तगड़ी टक्कर देती और शायद हरा भी सकती थी.
हल्दवानी सीट कुमाऊं क्षेत्र में आता है, जबकि रावत गढ़वाल इलाके से आते हैं. इसलिए उनका इस सीट से चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं उठता था. इस सीट पर कांग्रेस के लिए बढ़त मानी जाती है. दूसरे विकल्प के तौर पर गंगोत्री था. अगर रावत को चुनाव जीतना था तो गंगोत्री उनके लिए संभावित सीट हो सकती थी जहां से वो चुनाव लड़ना पसंद करते.
उत्तराखंड में जो रहा है उसके लिए सिर्फ उत्तराखंड ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि बंगाल का भी असर है. बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से चुनाव हार गई हैं, ऐसे में उन्हें भी 6 महीने के अंदर विधायक बनना जरूरी होगा.
अगर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार उत्तराखंड में उपचुनाव कराती हैं, तो उस पर बंगाल में भी उपचुनाव कराने का दबाव होगा और ऐसे में ममता बनर्जी के लिए मुख्यमंत्री बने रहना आसान हो जाएगा.
इसलिए भी बीजेपी और केंद्र सरकार चाहेगी कि उत्तराखंड में उपचुनाव करवाकर वो ममता बनर्जी को मौका ना दें.
बीजेपी मौजूदा विधायकों में ही अगला मुख्यमंत्री चुन सकती है. इसके लिए सबसे बेहतर विकल्प धन सिंह रावत या सतपाल महाराज हो सकते हैं. दोनों बीजेपी के दिग्गज नेता हैं और दोनों रावत की तरह ही ठाकुर समुदाय से आते हैं. इसके अलावा ये भी गढ़वाल क्षेत्र से आते हैं.
अगर बीजेपी किसी गैर विधायक को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है तो उनके पास अनिल बलूनी और रमेश पोखरियाल 'निशंक' विकल्प के तौर पर मौजूद हैं.
उत्तराखंड की राजनीति में अस्थिरता का आलम ये है कि यहां पर 20 साल में सिर्फ 1 ही मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाया है. मार्च में उत्तराखंड के 9वें सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को विधायकों के विरोध की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद ही तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के 10वें मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उन्हें अब 6 महीने से भी कम के कार्यकाल के बाद इस्तीफा देना पड़ा है.
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Published: 02 Jul 2021,10:54 PM IST