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UP चुनाव: नतीजों से पहले मोदी लहर और BJP की हवा क्यों नहीं दिखी?

क्या साल 2017 के उत्तर प्रदेश में आपको बीजेपी की इस जबरदस्त जीत का अंदाजा पहले से था?

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Published:
दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के बाहर पीएम मोदी और अमित शाह की होर्डिंग. (फोटो: PTI)
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दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के बाहर पीएम मोदी और अमित शाह की होर्डिंग. (फोटो: PTI)
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क्या साल 2017 के उत्तर प्रदेश में आपको बीजेपी की इस जबरदस्त जीत का अंदाजा पहले से था? अब कुछ पॉलिटिकल पंडित और सर्वे एजेंसियां भले ही वोटर का मूड पहले से भांप लेने का दावा कर रहे हों लेकिन असलियत ये है कि नतीजों ने हर अदांजे को फेल साबित कर दिया. बीजेपी ने अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर रिकॉर्ड 325 सीटें झटकीं जो आजादी के बाद से आज तक उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी का सबसे बढ़िया प्रदर्शन है. अगर वोट प्रतिशत और वोट संख्या पर नजर डालें तो यूपी की तस्वीर कुछ ऐसी दिखती है.

(डेटा: चुनाव आयोग)

चुनाव आयोग के इन आधिकारिक आंकड़ों से साफ है कि बीजेपी अपने विरोधियों से मीलों आगे रही. लेकिन हैरानी की बात है कि चुनावों से पहले बीजेपी को नंबर एक पार्टी तो माना जा रहा था लेकिन 325 सीट वाले बंपर बहुमत की कल्पना तो खुद पार्टी नेताओं ने भी नहीं की थी. ऐसे में सवाल ये है कि पहले बीजेपी की कोई लहर नजर क्यों नहीं आई.

क्यों नहीं दिखी लहर?

  • उत्तर प्रदेश में वोटरों की कुल तादाद है 13 करोड़ 85 लाख.
  • इनमें से करीब 60 फीसदी वोटरों ने ईवीएम मशीन का बटन दबाया.
  • बीजेपी को कुल वोट मिले करीब 3 करोड़ 44 लाख वोट जो कि कुल वोट का करीब 24 फीसदी है.

यानि सिक्के का दूसरा पहलू ये कि 100 में से 76 लोगों ने या तो वोट नहीं दिया या फिर बीजेपी के खिलाफ दिया. ऐसे में लोगों की नब्ज टटोल रहे पत्रकारों या सर्वे एजेंसियों की बातचीत उस 76 फीसदी तबके से हुई होगी तो उन्हें जाहिर तौर पर गलत तस्वीर दिखी होगी.

बीएसपी को 2017 विधानसभा चुनाव में सिर्फ 19 सीटों से संतोष करना पड़ा.(फोटो: PTI)

हालांकि यूपी में बीजेपी का वोट प्रतिशत तो साल 2014 के लोकसभा में भी 42.63 फीसदी ही रहा था लेकिन तब तो पार्टी की लहर नजर आ रही थी. शायद इस बार बीजेपी के वोटर ने लोकसभा चुनावों के उलट साइलेंट वोटिंग की और सड़क पर बीजेपी की मौजूदगी ज्यादा नजर नहीं आई.

कम अंतर वाली सीटें

बनारस में रोड शो करते पीएम मोदी. (फोटो: PTI)

403 में से 74 सीटों पर जीत का अंतर 10,000 से कम रहा. इनमें से 45 सीटों पर तो ये पांच हजार से भी कम था. जीत के इतने कम अतंर से साफ है कि कम से कम उन सीटों पर किसी की लहर नहीं थी और आखिरी वक्त में ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता था.

दोस्ती उतनी गहरी नहीं थी?

बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करते राहुल गांधी और अखिलेश यादव. (फोटो: PTI)

चुनाव पूर्व गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी कांग्रेस 14 सीटों पर एक दूसरे के खिलाफ लड़े. इनमें से 11 बीजेपी ने जीती. लेकिन हैरानी की बात है कि 4 सीटों पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को मिलाकर बीजेपी से ज्यादा वोट मिले. यानी अगर वो साथ लड़ते तो बीजेपी के हिस्से वो चार सीटें ना आती.

AIMIM फैक्टर

कुल 38 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली असदउद्दीन औवेसी की पार्टी के हिस्से महज 0.2 फीसदी वोट आए लेकिन उसने बीएसपी और गठबंधन का खेल कई सीटों पर बिगाड़ा. AIMIM महज एक सीट पर नंबर दो की पोजिशन पर रही. ज्यातार सीटों पर वो चौथी, पांचवी से लेकर नौवीं, दसवीं पोजिशन पर रही और उसे 10000 से भी कम वोट मिले.

लेकिन चार सीटें ऐसी हैं जिनमें AIMIM को मिले वोट दूसरे नंबर पर रही बीएसपी या एसपी के साथ जोड़ दिये जाएं तो बीजेपी वो सीट हार जाएगी.

‘महागठबंधन’ होता तो....

बीजेपी ने भले ही अपने नजदीकी विरोधी सपा-कांग्रेस गठबंधन से करीब एक करोड़ वोट ज्यादा पाए हों लेकिन अगर मायावती की बीएसपी का वोट भी उसमें जोड़ दिया जाए तो ये मिलकर बीजेपी के कुल वोट शेयर से (19281352+ 18923689+5416324- 34403039) करीब 92 लाख ज्यादा हो जाता है.

मतलब अगर विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की तर्ज पर यूपी में भी जिस महागठबंधन की चर्चा थी वो हो जाता तो ना सिर्फ वोट संख्या बल्कि सीटों के मामले में भी बीजेपी को पछाड़ सकता था.

बीजेपी का इम्तेहान

बीजेपी कार्यकर्ता जीत का जश्न मनाते हुए. (फोटो: PTI)

खैर... ये तो चुनावों के बाद की चीरफाड़ है. फिलहाल सत्ता की कुंजी बीजेपी के हाथ में है. लेकिन पार्टी को तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत देने वाले लोगों ने उससे उम्मीदें भी उसी अंदाज में लगाई होंगी. उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे में विकास, रोजगार, कानून-व्यवस्था, बिजली, साफ पानी और शिक्षा जैसे मोर्चों पर उन उम्मीदों को पूरा कर पाना बीजेपी के लिए किसी कड़े इम्तेहान से कम नहीं होगा.

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