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जब मनमोहन सिंह ने इंदिरा गांधी को गलत भाषण पढ़ने से रोका..

पूर्व प्रधानमंत्री की लाइफ में क्या क्या एक्सीडेंटल हुआ

अरुण पांडेय
पॉलिटिक्स
Updated:
इंदिरा गांधी के वक्त मनमोहन सिंह योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन रहे 
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इंदिरा गांधी के वक्त मनमोहन सिंह योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन रहे 
(फाइल फोटो)

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इंदिरा गांधी ने 1980 में सरकार संभालते ही देश के लोगों को संबोधित करने का फैसला किया. भाषण तैयार था, लेकिन फिर भी उन्होंने 'भूल-चूक लेनी-देनी' के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह को दिखाया और डॉक्टर साहब ने कहा:

मैडम, इस भाषण में एक बात पूरी तरह गलत है. इसे भाषण से हटा दीजिए, वरना बड़ी किरकिरी हो जाएगी. इंदिरा गांधी ने अपने भाषण से वो हिस्सा हटाया और फिर देश को संबोधित किया.

ऐसी क्या बात थी, जो आयरन लेडी इंदिरा गांधी ने सरदार साहब के कहने पर अपने भाषण से हटा दी? खुद पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने खोला ये राज.

इंदिरा गांधी को गलत तथ्य बोलने से रोका था मनमोहन ने

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुताबिक, इंदिरा गांधी के भाषण में जनता पार्टी सरकार की तमाम गलतियों और उसकी वजह से देश में आए संकट का जिक्र था. लेकिन एक बात उस वक्त आर्थिक सलाहकार रहे मनमोहन सिंह को खटक गई कि जनता पार्टी सरकार ने देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली कर दिया.

मनमोहन सिंह ने उन्हें बताया:

‘’मैडम, विदेशी मुद्रा भंडार बहुत अच्छी हालत में है, इसलिए अगर भाषण में ये बात आई, तो बड़ी किरकिरी हो जाएगी. जनता सरकार से आपकी भले जो भी शिकायतें हों, पर ये बात सच है कि वो भरपूर विदेशी मुद्रा भंडार छोड़ गए हैं.’’ 

डॉक्टर सिंह बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने उनकी सलाह तुरंत मान ली.

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी किताब के लॉन्च के मौके पर भारत के सामने आई चुनौतियां और अपने साथ हुए कई ऐसे रोचक किस्से बताए, जिन्होंने भारत का इतिहास बदल दिया.

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तबादला मत कीजिए, पेंशन नहीं मिलेगी

मनमोहन सिंह ने एक और रोचक किस्सा सुनाया कि इंदिरा गांधी ने जब उन्हें योजना आयोग (अब नीति आयोग) जाने को कहा, तो उन्‍होंने मना कर दिया. पूर्व प्रधानमंत्री गांधी ने इसकी वजह पूछी, तो मनमोहन ने उनसे कहा:

‘’मैडम, मैं ब्यूरोक्रेट हूं. अगर योजना आयोग जाता हूं, तो मुझे सिविल सर्विस छोड़नी पड़ेगी और रिटायरमेंट की पेंशन नहीं मिलेगी.’’ 

आखिरकार इंदिरा गांधी ने उस वक्त के कैबिनेट सेक्रेटरी से इसका तरीका निकालने का आदेश दिया.

वित्तमंत्री भी एक्सीडेंट से बने

पूर्व प्रधानमंत्री ने बताया कि उन्हें भले 'एक्सीडेंटल पीएम' कहा जाता है, लेकिन वो 'एक्सीडेंटल वित्तमंत्री' भी हैं.

मनमोहन सिंह ने बताया कि जब ये प्रस्ताव उनके पास आया, तब वो यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन के चेयरमैन थे. वो कहते हैं:

''मैं पीएम नरसिंह राव की पहली पसंद नहीं था. पहले ये प्रस्ताव डॉक्टर आई जी पटेल के पास गया था. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद नरसिंह के प्रिंसिपल सेक्रेटरी डॉक्टर एलेक्जेंडर पेशकश के साथ मेरे घर आए.''

अगले दिन पीएम नरसिंह राव ने मुझे तलाशना शुरू किया और यूजीसी के दफ्तर में मुझे पकड़ लिया. मुझे मिलने बुलाया और पूछा- क्या एलेक्जेंडर ने तुमको मेरा ऑफर नहीं बताया. मैंने जवाब दिया- बताया तो था, पर मैंने उनको सीरियसली नहीं लिया.
नरसिंह राव से गुफ्तगू करते मनमोहन सिंह (फोटो: Twitter)

नरसिंह राव की शर्त

मनमोहन सिंह के मुताबिक, उन्होंने प्रधानमंत्री नरसिंह राव के सामने शर्त रखी कि देश गहरे वित्तीय संकट में है, इसलिए कठोर फैसले लेने होंगे. इस पर राव ने कहा:

‘’मंजूर है. मैं आपको फ्री हैंड देता हूं, लेकिन ध्यान रखिए अगर सब ठीक-ठाक रहा, तो क्रेडिट हम लेंगे. अगर फेल हुए, तो जिम्मेदार आपको ठहराएंगे.’’

रुपए का दूसरा डीवैल्युएशन भी एक्सीडेंटल था

मनमोहन सिंह ने खुलासा किया कि रुपए के डीवैल्यूएशन में भी एक एक्सीडेंट हुआ. हुआ यूं कि जैसे ही माहौल टेस्ट करने के लिए पहले दौर का डीवैल्युएशन किया गया, तो भारी हंगामा मच गया.

‘’पहले चरण में हमने मामूली डोज दिया. लेकिन इतना हंगामा हुआ कि पीएम राव भी नर्वस हो गए और उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि दूसरे चरण का डीवैल्युएशन रोक दो. मैंने रिजर्व बैंक में सी रंगराजन को फोन करके पीएम का फरमान बताया. लेकिन वो बोले, अब कोई फायदा नहीं, मैंने तो इसका ऐलान कर भी दिया है. मतलब दूसरे दौर का डीवैल्युएशन एक्सीडेंट से हो गया.’’
मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह ने अपनी किताब में राजनीतिक और ब्यूरोक्रेट जीवन के अनुभव और देश के सामने आए संकट, चुनौतियों और इकनॉमिस्ट के तौर पर अपने तमाम रिसर्च और प्रैक्टिकल अनुभव बताए हैं.

पूर्व पीएम ने कहा कि आर्थिक सुधारों में तरह-तरह की चुनौतियां आईं, पर एक बार जो सुधार हो गए फिर 25 सालों से नहीं रुके.

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Published: 20 Dec 2018,08:04 PM IST

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