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महाराष्ट्र की माया अपरंपार है. 3 पार्टियां कई दिन लगाकर भी साथ में सरकार बनाने पर सहमति नहीं बना पाई हैं...? मीडिया में बार-बार, कई बार खबर चल चुकी है कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस में कॉमन मिनमम प्रोग्राम पर सहमति बन चुकी है. लेकिन अब तक ये पार्टियां राज्यपाल के पास नहीं पहुंची हैं. आखिर क्यों?
इस गुत्थी के साथ एक गुत्थी और है. 11 नवंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल ने जब रात 8.30 बजे तक का वक्त NCP को दिया था, तो फिर क्यों दोपहर में ही राष्ट्रपति शासन की सिफारिश दिल्ली भेज दी. अब तक इस बारे में आपको जो बताया गया है वो सही जवाब नहीं है. जीहां, राष्ट्रपति शासन लागू करने की हड़बड़ी राज्यपाल ने नहीं, बल्कि एनसीपी ने दिखाई.
दरअसल, एनसीपी ने सुबह 11.30 बजे ही राज्यपाल को बता दिया था कि समर्थन जुटाने के लिए उसे और समय चाहिए. इसी के बाद राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश केंद्र को भेज दी.
अब सवाल ये है कि आखिर एनसीपी को इतनी हड़बड़ी क्या थी? तो वजह हम बताते हैं, क्योंकि अगर एनसीपी दिए गए वक्त यानी रात 8.30 बजे तक रुक जाती तो पीएम विदेश यात्रा के लिए निकल जाते और फिर कैबिनेट की बैठक में राष्ट्रपति शासन पर मुहर का लगना टल जाता, उसे और समय मिल सकता था?
हमें नहीं मालूम NCP ने ऐसा क्यों किया? आप गेस कर पाएं तो हमें भी बताइएगा.
अब जरा नितिन गडकरी के बयान पर गौर कीजिए. गडकरी कह रहे हैं, ‘राजनीति क्रिकेट मैच की तरह है. जब आपको लग रहा होता है कि आप मैच हार रहे हैं तो नतीजे बदल जाते हैं.’ बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 119 विधायक हैं और बिना बीजेपी के राज्य को स्थिर सरकार कोई नहीं दे सकता. तो सवाल ये है कि कहीं बीजेपी में भी तो सरकार बनाने की खिचड़ी नहीं पक रही? और अगर खिचड़ी पक रही है तो उसकी हांडी में आंच कौन दे रहा है?
अब लौटिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के चिराग पर, जिसके जलते ही कहते हैं कि महाराष्ट्र में सरकार बन जाएगी. कहते हैं कि ये चिराग जल चुका है...शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस में सहमति बन चुकी है. लेकिन सूत्रों ने क्विंट को बताया है कि अब तक तीनों दलों में सरकार बनाने का या साथ आने का कोई फैसला नहीं हुआ है.
समस्या सिर्फ सहमति की नहीं है, कुछ मुद्दों को लागू कैसे किया जाएगा, इसपर भी डेडलॉक है. जिस कॉमन मिनिमन प्रोग्राम के तहत तीनो दलों के नेता सरकार बनाने की कवायद में हैं, उसमें सबसे बड़ा मुद्दा है किसानों की कर्ज माफी का. इसे लेकर तीनो दलों का एक मत है लेकिन सवाल ये है कि किसानो की कर्ज माफी के लिए जितनी रकम की जरुरत फिलहाल सरकार को है, वो कहां से आएगी?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिलहाल राज्य पर 20,293 करोड़ का बोझ है .
इतना ही नहीं पावर शेयरिंग को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है. एनसीपी के नवाब मलिक ने कहा कि हम पांच साल शिवसेना का सीएम बनाएंगे. लेकिन थोड़ी ही देर बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने नागपुर में कहा कि सीएम पद पर कोई फैसला नहीं हुआ है. साथ ही पवार ने ये भी कहा है कि अगर किसी की सीएम पद की मांग है तो उस पर चर्चा हो सकती है. इशारा साफ है कि 5 साल शिवसेना के सीएम पर अभी सहमति नहीं बनी है. अजीत पवार का बैठकों से गायब रहना भी चौंकाता है.
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Published: 15 Nov 2019,10:42 PM IST