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आखिर रेड्डी की पदयात्रा से क्यों डरते हैं चंद्रबाबू नायडू

आंध्र प्रदेश में पदयात्रा का क्या है इतिहास, क्यों नेताओं को लगता है इससे डर

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आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पर राजनीति तेज
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आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पर राजनीति तेज
(फोटोः Altered By Quint)

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आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से आंध्र में सियासी हलचल तेज है. अपनी मांगों को लेकर पहले वाईएसआर कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव की घोषणा की. वाईएसआर कांग्रेस के इस दांव से टीडीपी दबाव में आ गई और उसने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस जारी कर दिया.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, टीडीपी के इस फैसले के पीछे वाईएसआर प्रमुख जगनमोहन रेड्डी की पदयात्रा की अहम भूमिका रही है. रेड्डी की पदयात्रा ने वहां के सीएम चंद्रबाबू नायडू को हिला कर रख दिया. और उन्हें एनडीए से अलग होने को मजबूर कर दिया.

रेड्डी की धमकी से हिले नायडू

2019 चुनाव की तैयारी के लिए और आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिलाने की मांग को लेकर नवंबर 2017 में जगनमोहन रेड्डी ने पदयात्रा की शुरुआत की थी. 13 फरवरी 2018 को नेल्लोर में अपनी पदयात्रा के दौरान रेड्डी ने ऐलान किया कि अगर केंद्र ने आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया तो उनकी पार्टी के सांसद 6 अप्रैल को अपने पद से इस्तीफा दे देंगे. उनके 6 सांसद (5 लोकसभा सदस्य और एक राज्यसभा सदस्य) ही हैं, इस वजह से देश की राजनीति में उनकी इस घोषणा को खास तवज्जो नहीं दी गई.

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लेकिन रेड्डी की इस धमकी ने टीडीपी प्रमुख और आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू को डराकर रख दिया. रेड्डी ने आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए ऐसा पास फेंका कि उसमें नायडू बुरी तरह फंस गए.
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राज्य का विशेष दर्जा वोट में हो सकता है तब्दील

खुद को एक दूसरे से बेहतर दिखाने की रेस में रेड्डी और नायडू को ये पता है कि वहां के लोगों के लिए राज्य का विशेष दर्जा काफी मायने रखता है. और चुनाव में ये वोट में बदलने का काम करेगा. अगले साल राज्य में होनेवाले चुनाव को देखते हुए नायडू को जल्दी ही फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा.

2019 चुनाव की तैयारी को देखते हुए जगनमोहन पदयात्रा पर(फोटोः PTI)
आंध्र की राजनीति में पदयात्रा का कुछ ऐसा इतिहास रहा है कि वहां के राजनेता इसे काफी गंभीरता से लेने को मजबूर हो ही जाते हैं.

पदयात्रा से पहले भी गिर चुकी है नायडू की सरकार

साल 2004 में नायडू अपनी सत्ता पदयात्रा की वजह से गंवा चुके हैं. उस समय उनकी हार का कारण बनी थी जगनमोहन रेड्डी के पिता वाईएसआर रेड्डी की पदयात्रा. 1995 से 2004 तक आंध्र प्रदेश की सत्ता पर चंद्रबाबू नायडू का शासन रहा. उन्होंने दो बार लगातार जीत हासिल की. राज्य में विकास पुरुष के रूप में उनकी पहचान थी बावजूद इसके उनकी करारी हार हुई थी.

2004 के विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले 2003 में कांग्रेस नेता वाईएसआर रेड्डी ने कड़ी गर्मी में किसानों के सपोर्ट में 1600 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की. और किसान और आम लोगों के बीच हीरो बन गए. 
2003 में वाईएसआर रेड्डी ने पदयात्रा कर नायडू को सत्ता से बेदखल करने का किया काम(फोटोः Youtube)

विधानसभा चुनाव में रेड्डी ने कांग्रेस को शानदार जीत दिलाई और सत्ता पर काबिज हुए. वहीं लोकसभा में भी उन्होंने कांग्रेस को 27 सीटें दिलाने में कामयाबी हासिल की.

2014 में इसी पदयात्रा का सहारा लिया चंद्रबाबू नायडू ने. उन्होंने करीब 2400 किलोमीटर की पदयात्रा की. चुनाव परिणाम में इसका फायदा उन्हें मिला और सत्ता में उन्होंने वापसी कर ली.

इन सबसे पहले 1989 में चन्ना रेड्डी भी आंध्र प्रदेश में पदयात्रा कर चुके हैं और इस पदयात्रा ने उन्हें भी सत्ता तक पहुंचाने का काम किया. आंध्र में पदयात्रा राजनीतिक रूप से काफी सफल रही है.

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