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राजस्थान (Rajasthan) सरकार पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. इससे प्रदेश के हर व्यक्ति पर कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है. सरकार के वित्त विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2023 तक के चार साल में प्रति व्यक्ति कर्ज का भार 20,481 रुपए से बढ़ गया है और अब राजस्थान में हर व्यक्ति पर 65,541.53 रुपए के कर्ज का बोझ है.
सरकार का यह कर्ज सामाजिक योजनाएं, महंगाई और निर्माण कार्यों की बढ़ती लागत को पूरा करने के लिए सरकार कर्ज लेती है. राजस्थान देश में पंजाब के बाद दूसरा ऐसा राज्य है जहां प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ इतना ज्यादा है.
देश में ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) 40 प्रतिशत से ज्यादा पहुंच गई है. राजस्थान में मार्च, 2023 तक 39.80 प्रतिशत GSDP अनुमानित है. हालांकि वित्त विभाग का दावा है कि सरकार केन्द्र के तयशुदा मापदंड में रहकर ही कर्ज ले रही है. प्रदेश में मार्च तक 5,31,050 करोड़ रुपये का कर्जभार अनुमानित माना जा रहा है.
राजस्थान में 2019-20 में प्रति व्यक्ति कर्ज 45060.47 था. जो साल करीब सात हजार रुपए के हिसाब से बढ़ रहा है. राजस्थान में फ्री सामाजिक योजना का दायरा भी तेजी से बढ़ा है. मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य सुविधा सहित अन्य सामाजिक सुरक्षा पर सरकार जमकर खर्च कर रही है. राज्य सरकार पहले से लिए गए कर्ज पर कुल प्राप्त राजस्व का 18.76 फीसदी चुका रही है. यह आंकड़ा 2023 की मार्च तक 19 फीसदी पार करने का अनुमान है.
केंद्र के हिसाब से देखें तो देश के हर नागरिक पर अभी करीब एक लाख के कर्ज का अनुमान है. आरबीआई की हाल में जारी स्टेट फाइनेंस-ए स्टडी ऑफ बजट कहती है कि भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर करीब 70 लाख करोड़ का कर्ज है. इसकी वजह सामाजिक योजनाएं हैं.
राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजीव सक्सेना बढ़ते हुए कर्ज को लेकर कहते हैं कि सरकार गरीबों को संबल दे. लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते आर्थिक भार उतना ही उड़े जितना कि सहन कर पाए. श्रीलंका का उदाहरण सबके सामने है. सरकार या तो अपने राजस्व के साधन को बढ़ाएं या फिर खर्च पर नियंत्रण रखें. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो यह कर्ज सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जाएगा.
इनपुट क्रेडिट- पंकज सोनी
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