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सनातन धर्म पर उदयनिधि की टिप्पणी से बवाल, DMK और पेरियार का क्या है कनेक्शन?

Sanatan Dharm Conflict: उदयनिधि ने लिखा कि मैं किसी भी मंच पर पेरियार और अंबेडकर के लेखन को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिन्होंने सनातन धर्म और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गहन शोध किया.

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<div class="paragraphs"><p>सनातन धर्म पर उदयनिधि की टिपण्णी से बवाल, DMK और पेरियार का क्या है कनेक्शन? </p></div>
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सनातन धर्म पर उदयनिधि की टिपण्णी से बवाल, DMK और पेरियार का क्या है कनेक्शन?

(फोटो:X)

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डीएमके नेता और तमिलनाडु (Tamilnadu) के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) के बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय के खिलाफ है और इसलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए, ने राजनीतिक विवाद पैदा कर दिया है. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि अब यह स्पष्ट हो गया है कि हिंदू धर्म का "पूर्ण उन्मूलन" विपक्षी गठबंधन 'INDIA' का "प्राथमिक एजेंडा" है. डीएमके इसी एजेंडे का एक हिस्सा है.

सनातन का मतलब क्या है?

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि शनिवार (2 सितंबर) तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन की एक बैठक में सभा को संबोधित कर रहे थे. उस दौरान उन्होंने “सनातन का मतलब क्या है?” यह बतलाते हुए कहा कि यह शाश्वत है. अर्थात इसे बदला नहीं जा सकता. कोई भी कोई सवाल नहीं उठा सकता. उन्होंने कहा कि सनातन ने लोगों को जाति के आधार पर बांटा है.

उदयनिधि ने बाद में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा...

"मैं किसी भी मंच पर पेरियार और अंबेडकर के लेखन को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिन्होंने सनातन धर्म और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गहन शोध किया."

DMK और पेरियार का कनेक्शन

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) की जड़ें ईवी रामास्वामी 'पेरियार' द्वारा शुरू किए गए स्वाभिमान आंदोलन से जुड़ी हैं. 20वीं सदी के शुरुआती आंदोलन ने जाति और धर्म के विरोध का समर्थन किया और खुद को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक तर्कवादी आंदोलन के रूप में स्थापित किया. वर्षों से इन आदर्शों ने राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है. DMK और AIADMK दोनों पर इस आंदोलन की छाप दिखती है.

आत्म-सम्मान आंदोलन क्या था और तमिलनाडु के राजनीतिक दल इससे कैसे उभरे?

आत्मसम्मान आंदोलन के संस्थापक पेरियार जाति और धर्म के घोर विरोधी थे. उन्होंने जाति और लिंग से संबंधित प्रमुख सामाजिक सुधारों की वकालत की और तमिल राष्ट्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान पर जोर देते हुए हिंदी के वर्चस्व का विरोध किया.

1938 में, जस्टिस पार्टी (जिसके पेरियार सदस्य थे) और आत्म-सम्मान आंदोलन एक साथ आए. 1944 में नए संगठन का नाम द्रविड़ कषगम रखा गया. DK (द्रविड़ कषगम) का आंदोलन ब्राह्मण विरोधी, कांग्रेस विरोधी और आर्य विरोधी था. उन्होंने एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र के लिए आंदोलन चलाया. हालांकि, जनता के समर्थन की कमी के कारण यह विशेष मांग धीरे-धीरे धूमिल हो गई.

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सीएन अन्नादुरई पेरियार से अलग हो गए

आजादी के बाद पेरियार ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. 1949 में, पेरियार के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक, सीएन अन्नादुरई, वैचारिक मतभेदों के कारण उनसे अलग हो गए. अन्नादुरई की डीएमके चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो गई. पार्टी के मंच सामाजिक लोकतंत्र और तमिल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद थे.

1969 में, अन्नादुराई की मृत्यु के बाद, एम करुणानिधि ने DMK की कमान संभाली. 1972 में उनके और अभिनेता-राजनेता एमजी रामचंद्रन के बीच मतभेद के कारण पार्टी में विभाजन हो गया. एमजीआर ने अन्नाद्रमुक (AIADMK) का गठन किया.

1977 में एमजीआर सत्ता में आए और 1987 में अपनी मृत्यु तक अपराजित रहे. उन्होंने पार्टी की विचारधारा के रूप में लोक कल्याण को चुनकर डीके के मूल तर्कवादी और ब्राह्मण विरोधी एजेंडे को कुछ हद तक कमजोर कर दिया.

हिन्दू धर्म और जाति पर पेरियार के क्या विचार थे?

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक 'मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया' में लिखा है कि "तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में, "यह ब्राह्मण ही थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन का शुरुआती फायदा उठाया और नए शासकों की शिक्षक, वकील, डॉक्टर के रूप में सेवा करने के लिए अंग्रेजी सीखी." उभरती हुई कांग्रेस पार्टी में भी उनका अच्छा प्रतिनिधित्व था और उन्हें पारंपरिक रूप से समाज में उच्च सामाजिक दर्जा प्राप्त था."

गुहा ने लिखा कि...

"चाहे संयोगवश या जानबूझकर, राज की नीतियों ने उन्हें आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी प्रभावशाली बना दिया. यह जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मण आधिपत्य का खतरा था, जो ज्योतिराव फुले और बीआर अंबेडकर की सक्रियता के पीछे छिपा था. दक्षिण भारत में उनके समकक्ष ईवी रामास्वामी नामक एक उल्लेखनीय विचारक आयोजक थे."

उन्होंने बताया कि अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से, पेरियार ने अपने मूल विचार का प्रचार किया, जो समाज के कुछ वर्गों को हाशिए पर धकेलने वाली हिंदू धार्मिक प्रथाओं की तीखी आलोचना करते था.

गुहा की किताब में पेरियार का लेख क्या कहता है? 

डॉ. कार्तिक राम मनोहरन के लेख 'फ्रीडम फ्रॉम गॉड: पेरियार एंड रिलिजन' के अनुसार, शुरुआत में, पेरियार ने नास्तिकता और समाजवाद की वकालत करने वाले प्रमुख कार्यों के अनुवाद प्रकाशित किए, जैसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की 'द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो', भगत सिंह की 'क्यों' मैं नास्तिक हूं', बर्ट्रेंड रसेल की 'मैं ईसाई क्यों नहीं हूं'.

गुहा की किताब में पेरियार के कुछ लेख और भाषण भी शामिल हैं. 1927 के एक भाषण में उन्होंने कहा, “कोई भी अन्य धर्म उतना खर्च नहीं करता जितना हम करते हैं. अपने आगमन के कुछ ही समय में ईसाइयों ने हमारे लोगों को एकजुट किया, उन्हें शिक्षा दी और खुद को हमारा स्वामी बना लिया."

भाषण में आगे लिखा है कि लेकिन हमारा धर्म, जिसे भगवान द्वारा बनाया गया और लाखों-करोड़ों साल पुराना कहा जाता है, कहता है कि अधिकांश लोगों को ऐसा करना चाहिए. इसके धर्मग्रंथ नहीं पढ़े और यदि कोई इसका उल्लंघन करता है, तो अध्ययन करने वाले की जीभ काट देना, सुनने वाले के कानों में पिघला हुआ सीसा डालना और सीखने वाले का हृदय निकाल देना जैसे दंड दिए जाते हैं.

पेरियार ने समाज में कुछ जाति समूहों के प्रभुत्व पर भी सवाल उठाया

डॉ. मनोहरन के अनुसार, "पेरियार ने 7 जून 1931 को अपने पार्टी पेपर कुडियारासु में लिखा था कि गैर-ब्राह्मण और अछूत जातियां, गरीब और श्रमिक वर्ग अगर समानता और समाजवाद चाहते हैं, तो उन्हें पहले हिंदू धर्म को नष्ट करने की जरूरत है."

उन्होंने 1969 में अपने मिशन पर बात करते हुए कहा, "मैं मानव समाज का सुधारक हूं. मुझे देश, भगवान, धर्म, भाषा या राज्य की परवाह नहीं है. मैं केवल मानव समाज के कल्याण और विकास के बारे में चिंतित हूं."

मनोहरन ने लिखा, "पेरियार ने धर्म को सामाजिक शक्ति की एक संस्था के रूप में देखा, जिसने हिंदू ग्रंथों में महिलाओं और निचली जातियों की समानता और स्वतंत्रता की हानि के लिए ब्राह्मणों को एक विशिष्ट जाति समूह के रूप में विशेषाधिकार दिया." उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इसमें कोई सुधार होगा इसलिए उन्होंने धर्म को पूरी तरह खत्म करने का सुझाव दिया. पेरियार के सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से एक कहता है कि कोई भगवान नहीं है. जिसने भगवान को बनाया वह मूर्ख है. जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है. जो भगवान की पूजा करता है वह जंगली है.

नई पीढ़ी का इसपर क्या प्रभाव रहा?

सीएन अन्नादुराई धर्म के मामले में उदारवादी रुख अपनाते दिखें. उन्होंने कहा, "मैं न तो गणेश की मूर्ति तोड़ूंगा और न ही नारियल भेंट चढ़ाऊंगा." उनके शिष्य और बाद में मुख्यमंत्री एम करुणानिधि भी नास्तिक थे. एक कवि और पटकथा लेखक के रूप में, उन्होंने लोकप्रिय नाटकों और फिल्मों के माध्यम से ब्राह्मणों और धर्म की आलोचना की, जो बड़े दर्शकों तक पहुंचे और उनसे उनकी मूल भाषा में बात की.

शनिवार को अपने भाषण में उदयनिधि ने पेरियार द्वारा पहले कही गई बातों पर भी बात की और उन्हें डीएमके के राजनीतिक मंच से जोड़ा. उन्होंने कहा, “सनातन ने महिलाओं के साथ क्या किया? इसने उन महिलाओं को आग में धकेल दिया, जिन्होंने अपने पतियों को खो दिया था. इसने विधवाओं के सिर मुंडवा दिए और उन्हें सफेद साड़ी पहनाई. द्रविड़म (द्रमुक शासन द्वारा अपनाई गई द्रविड़ विचारधारा) ने क्या किया? इसने बसों में महिलाओं के लिए किराया-मुक्त यात्रा की सुविधा दी, छात्राओं को कॉलेज की शिक्षा के लिए 1,000 रुपये की मासिक सहायता दी."

उदयनिधि ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा कि आइए हम तमिलनाडु के सभी 39 संसदीय क्षेत्रों और पुडुचेरी के एक क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जीत हासिल करने का संकल्प लें. सनातन को गिरने दो, द्रविड़म को जीतने दो.

इनपुटः इंडियन एक्प्रेस

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