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नई दिल्ली, 25 दिसम्बर (आईएएनएस)| बहुमुखी प्रतिभा के धनी पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी न केवल एक प्रखर वक्ता थे, बल्कि शब्दों के अलबेले चितेरे भी थे। उनकी भाषण कला के लाखों मुरीद हैं, उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता थी कि राजनीति में पक्ष-विपक्ष और विभिन्न दलों के नेता वैचारिक विरोध के बाद भी उनसे मित्रवत व्यवहार करते थे। अटल जी प्रखर पत्रकार, सम्मानित नेता और शब्दों के चितेरे थे। उन्हें इसका मलाल भी रहता था कि राजनीतिक व्यस्तता की वजह से वह कविता लेखन के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। हालांकि वह अपने भाषणों में यदा-कदा कविताओं के अंश डालकर अपने कविता कौशल की बानगी पेश किया करते थे। एक बार एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, "राजनीति के रेगिस्तान में ये कविता की धारा सूख गई।"
अटल जी ने भारतीय समाज को अपने कविता के माध्यम से कई संदेश दिए हैं। आज जहां देशभर में धरना-प्रदर्शन का दौर जारी है और अलग-अलग मत के लोग पक्ष-विपक्ष में खड़े हैं, ऐसे में उनकी यह कविता मौजूं प्रतीत हो सकती है कि देश को आगे बढ़ाने के लिए..कदम मिलाकर चलना होगा..उनकी कविता का अंश..कदम मिला कर चलना होगा/ बाधाएं आती हैं आएं/ घिरें प्रलय की घोर घटाएं/पावों के नीचे अंगारे/सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं/निज हाथों में हंसते-हंसते/आग लगाकर जलना होगा/कदम मिलाकर चलना होगा।
आदमी का मन क्या है, मन छोटा बड़ा करने से क्या होता है और इन्हीं मन की भावनाओं को लेकर अटल ने कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया.. छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता/टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता/मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते/ न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं। आदमी की पहचान/ उसके धन या आसन से नहीं होती/उसके मन से होती है/ मन की फकीरी पर/कुबेर की संपदा भी रोती है।
अटल जी ने जिंदगी और मौत दोनों ही विषय पर कविताएं लिखीं। 'मौत से ठन गई' उनकी काफी चर्चित कविता है.. ठन गई!/ मौत से ठन गई!/ जूझने का मेरा इरादा न था/ मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था/ रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई/ यों लगा जि़न्दगी से बड़ी हो गई/ मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं/ जि़न्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
इसी तरह जिंदगी पर उनकी कविता है..मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं/ लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?/ तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ/ सामने वार कर फिर मुझे आजमा।..इसी तरह जिंदगी को लेकर उन्होंने लिखा.. हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा/काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं/गीत नया गाता हूं।
अटल जी ने आजादी को लेकर एक बार अपने संबोधन में कहा था.. इसे मिटाने की साजि़श करने वालों से कह दो कि चिंगारी का खेल बुरा होता है/औरों के घर आग लगाने का जो सपना/वो अपने ही घर में सदा खड़ा होता है।
अटल बिहारी वाजपेयी एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने जवाहर लाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री पद तीन बार संभाला। उनका जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर, 1924 को हुआ था। दिल्ली के एम्स अस्पताल में 16 अगस्त, 2018 को उनका निधन हो गया। उन्हें 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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