advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में जेल में बंद गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी . जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया, कोर्ट ने 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था. इस याचिका की टाइमलाइन की बात करें तो 12 जुलाई 2020 को नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) कोर्ट ने एक आदेश पारित नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. 19 फरवरी को इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट होते हुए नवलखा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
पुलिस के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में यलगार परिषद की सभा के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके चलते जिले में अगले दिन (एक जनवरी 2018) को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था. एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, हेनी बाबू समेत कई वकील और कलाकार इस केस का हिस्सा हैं.
69 साल के नवलखा 25 अप्रैल, 2020 से तलोजा सेंट्रल जेल में कैद हैं. गौतम नवलखा इस आधार पर डिफॉल्ट बेल मांग रहें हैं कि नियम कहते हैं कि अगर 90 दिन के अंदर NIA चार्जशीट दायर नहीं करती है तो आरोपी जमानत दी जा सकती है. गौतम नवलखा का कहना है कि चार्जशीट दायर करने की समयसीमा में 2018 के उन 34 दिनों को भी शामिल करना चाहिए था, जिस वक्त वो गैर-कानूनी हिरासत में रहे हैं.
सुनवाई में इसी बात पर चर्चा हुई कि दिल्ली से मुंबई लेकर जाने वाले दो दिन के ट्रांसिट पीरियड को और हाउस अरेस्ट के दिनों को 90 दिन के रिमांड पीरियड में जोड़ा जाना चाहिए या नहीं.
सीनियर एडवोकेट कपिल सिबल, जो गौतम नवलखा की तरफ से आए थे, उनका तर्क था कि पुलिस के पास पूछताछ का पूरा वक्त था, जब नवलखा हिरासत में थे. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की तरफ से जारी अंतरिम सुरक्षा के आदेश का ये मतलब नहीं था कि नवलखा से पूछताछ नहीं की जा सकती थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की पीठ ने 8 फरवरी को जमानत याचिका खारिज कर दिया था. आदेश में कहा गया था कि अगर किसी आरोपी को अवैध हिरासत में रखा जाता है तो उसे डिफॉल्ट बेल की समयसीमा के लिए जोड़े जाने वाले 90 दिनों में काउंट नहीं किया जा सकता.
बता दें कि हाल ही में कवि और एक्टिविस्ट वरवर राव को मेडिकल आधार पर जमानत दी गई है, उन्होंने तलोजा जेल में स्वास्थ्य सुविधाओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, राव ने कोर्ट में पेश अपनी एफिडेविट में लिखा था कि जेल में स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं को देखने के लिए सिर्फ आयुर्वेद से जुड़े लोग हैं. जेल में कोई स्टाफ नर्स, फार्मासिस्ट, मेडिकल स्पेशलिस्ट नहीं है जो तलोज जेल के कैदियों का सही से इलाज कर सकें.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)