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गया (बिहार) की रहने वाली 50 वर्षीय सुमन देवी ₹20 में फल्गु नदी का एक डिब्बा पानी बेच रहीं है. वहीं, बंगाल राज्य के सिलिगुड़ी से आए बबलू कुमार तर्पण (पूर्वजों की पूजा) के उद्देश्य से तीन डिब्बा पानी के लिए 10 वर्षीय शुभम को 50 रुपए देते हैं. बबलू बताते हैं, "तर्पण के लिए पंडित जी बालू और पानी की व्यवस्था करने के लिए बोले थे. बालू की तो कमी नहीं हैं, लेकिन पानी दूर-दूर तक नहीं है. किसी ने कहा कि थोड़ा बालू हटाने पर पानी मिल जाता है. हमने प्रयास भी किया, लेकिन नहीं मिलने पर पानी खरीदना पड़ा."
सूचना जनसंपर्क विभाग के मुताबिक, 334 करोड़ रुपये की लागत से गया जिला स्थित फल्गु नदी पर बना रबड़ डैम भारत का सबसे लंबा रबड़ डैम है. इसकी लंबाई 411 मीटर और चौड़ाई 95 मीटर है. सरकार के द्वारा रबड़ डैम का नामकरण 'गया जी डैम' किया गया है.
फल्गु नदी पर बन रहे बिहार के पहले रबड़ डैम के लोकार्पण के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि गया में विष्णुपद मंदिर के पास रबड़ डैम का निर्माण किया जा रहा है, जिसके बाद सालभर कम से कम 2 फिट पानी उपलब्ध रहेगा. आईपीआरडी बिहार के मुताबिक, गया डैम के मुख्य अभियंता अश्विनी कुमार ने भी कहा था कि तर्पण और पिंडदान के लिए फल्गु नदी में पानी हमेशा उपलब्ध रहेगा. इसके अलावा डैम के जरिए श्रद्धालु देवघाट में कर्मकांड करने के बाद सीथे सीताकुंड पिंडवेदी का दर्शन करने जा सकते हैं.
नदी विशेषज्ञ दिनेश मिश्र के मुताबिक, बिहार में लगभग 200 से अधिक छोटी–बड़ी नदियां बहती हैं, जिसमें गाद और अतिक्रमण की शिकार अधिकांश नदियां खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. इसमें धनौती, गजना, चांदन और रमजानी नदी की तरह ही गया की फल्गु नदी भी शामिल है. जबकि जल संसाधन विभाग के मुताबिक, मार्च 2023 में गया जी डैम को 'जल संसाधन के सर्वोत्तम कार्यान्वयन' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इस सम्मान के मिलने पर खुशी की बजाय पंडा, पर्यटक और स्थानीय लोग असमंजस की स्थिति में हैं.
गया के स्थानीय निवासी अशोक सिंह बताते हैं, "रबड़ डैम बने आठ महीने हो गया. शुरू में 3-4 महीना तो पानी रहा, फिर अचानक कम होता गया. अभी की स्थिति देखिए तो बहुत कंफ्यूजन है. पता नहीं करोड़ों खर्च होने के बाद भी कब से पानी रहेगा. पूरे गया में फल्गु नदी की स्थिति बहुत ही खराब है. सिर्फ विष्णुपद मंदिर के पास रबड़ डैम बनने की शुरुआत में स्थिति थोड़ी अच्छी हुई थी. अवैध बालू की निकासी, प्रदुषण, जलवायु परिवर्तन की वजह से मोक्षदायिनी फल्गु नदी का अस्तित्व संकट में है. सरकार को पूरी नदी के जीर्णोद्धार पर ध्यान देना चाहिए."
पिंडदान कराने वाले आचार्य अभिनाश बताते हैं," मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भागीरथ बनने का प्रयास किए, लेकिन विफल रहे. बरसात के मौसम में जो पानी आया था, वह रबड़ डैम के जरिए रोका गया, लेकिन समय के साथ सारा पानी खत्म हो गया. फिर से प्रयास जारी है. अगर पानी आया तो हम लोगों के लिए बहुत राहत होगी. पता नहीं अभी किस उपलब्धि के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, क्योंकि स्थिति तो अभी जस की तस बनी हुई है."
राजस्थान से पूर्वजों का तर्पण करने आई 55 वर्षीय सुधा गोस्वामी ने कहा, "मैं तीन से चार बार यहां आ चुकी हूं. कुछ महीने पहले हमने मोबाइल पर देखा था कि फल्गु नदी में पानी भरा रहेगा. इसके बाद बनारस आने का प्रोग्राम बना तो गया भी आ गई तर्पण करने. यहां जो कुछ देखा, सब उल्टा है. सोचा था कि जाऊंगी तो नौका विहार जरूर करूंगी फल्गु में. हालांकि हमने कहानियां में यही पढ़ा था कि फल्गु नदी में पानी नहीं मिलता है."
औरंगाबाद के रहने वाले संजय सज्जन सिंह 22 अगस्त 2021 फल्गु नदी के जीर्णोद्धार के काम में लगे हुए हैं. इससे पहले वह निरंजना नदी के जीर्णोद्धार का प्रयास कर चुके हैं, जिसमें काफी हद तक सफल भी रहे. झारखंड और बिहार में बहने वाली निरंजना नदी गया के पास मोहाना नदी से संगम करती है, जिसके बाद इसे फल्गू नदी के नाम से जाना जाता है.
निरंजना रीवर रिचार्ज मिशन के संयोजक संजय जी बताते हैं, "फल्गु नदी सिर्फ बारिश के वक्त बहती है. पूरी नदी राज्य के अधिकांश नदियों की तरह विलुप्त होती जा रही है. रबड़ डैम फल्गु नदी के जीर्णोद्धार से संबंधित नहीं है. यह सिर्फ पर्यटन के दृष्टिकोण से बनाया गया है, जिससे विष्णुपद मंदिर के अगल-बगल फल्गु नदी का पानी धरती के ऊपर जमा रहेगा."
ग्रामयुग अभियान के संयोजक लेखक और विचारक विमल कुमार सिंह बताते हैं, "235 किलोमीटर के पूरे फल्गु नदी में सिर्फ कुछ किलोमीटर में पानी रहे, इसलिए करोड़ों खर्च करके नीतीश सरकार ने रबड़ डैम बनवाया है, जबकि यह पूरी नदी अपने अस्तित्व को खो रही है. वास्तव में यह नदी में बना एक तालाब है. कंक्रीट की बुनियाद पर बने इस डैम में बरसात और बोरिंग का पानी जमा किया जा रहा है. नीतीश कुमार ने जिस रफ्तार के साथ तीर्थयात्रियों की समस्या का का समाधान ढूंढा है, लोग ‘अचंभित’ हैं. सरकार को भूजल के न्यूनतम दोहन और वर्षा जल के अधिकतम संचयन के साथ-साथ प्राकृतिक खेती और सघन वनसंपदा पर काम करना चाहिए. जब पूरी नदी ही विलुप्त हो जाएगी तो रबड़ डैम का क्या काम?"
तिलका मांझी यूनिवर्सिटी भागलपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर रुचि श्री, बिहार की कई नदियों पर काम कर चुकी हैं. वो बताती हैं, "सरकार के द्वारा पर्यावरण को नहीं, बल्कि विकास को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाई जाती हैं. आधुनिकता के दंभ पर नदी में पानी सुखाया जा रहा है फिर 12 महीने रखने की बात हो रही है. परिणाम इससे उल्टा होता है. देखिए जितना अधिक बांध और तटबंध बनाया जा रहा है, उतना ही बाढ़ और सुखार की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. हम नदी को अपने अनुरूप ढालना चाहते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि प्रकृति पर कोई कंट्रोल नहीं कर सकता है."
वहीं, गया के सृजन, सन्नी नदी पर रिसर्च कर रहे हैं. वो कहते हैं, "फल्गु नदी मिट्टी के अंदर बहने वाली नदी है. रबड़ लाइनिंग के माध्यम से फल्गु नदी के पानी को ऊपर किए जाने का प्रयास किया जा रहा है. इससे पानी का रिसाव बालू के अंदर नहीं हो पाएगा, जिसका परिणाम गया शहर के जलस्तर में कमी होगी."
लघु जल संसाधन विभाग बिहार सरकार के मुताबिक, 2020 में मॉनसून से पहले 10.07 मीटर और मॉनसून के बाद 7.13 मीटर से भी अधिक गहराई पर उपलब्ध था. 2021 में मॉनसून से पहले 9.98 मीटर और मॉनसून के बाद 6.63 मीटर से भी अधिक गहराई पर उपलब्ध था.
सीनियर इंजीनियर कृष्णन अभी रबड़ डैम से संबंधित काम करवा रहे हैं. वो कहते हैं,"रबड़ डैम के पानी को निकाला गया है. पिछले दो-तीन महीने में रबड़ डैम के आसपास पूरी नदी की सफाई की जाएगी. साथ ही डैम से संबंधित कुछ काम किया जा रहा है. इसके बाद बरसात का पानी और फल्गु नदी के पानी को संग्रहित कर हम लगातार 12 महीने पानी को संग्रहित करेंगे."
विष्णुपद मंदिर के पास शवदाहग्रह बनाया गया है, इसके बावजूद नदी में ही अंतिम संस्कार किया जा रहा है. अंतिम संस्कार के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तु बेचने वाले पल्लव यादव बताते हैं, "गया के फल्गु नदी के किनारे शवों को जलाने की मनाही है. इसके बावजूद भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग नदी के पास ही अंतिम संस्कार करते है. अभी यहां पानी नहीं है तो थोड़ी दूर में करना पड़ता है. दो-तीन महीने पहले तक विष्णुपद घाट पर ही अधिक लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था."
फल्गु नदी का पानी बहुत ही पवित्र माना जाता है. बौद्ध धर्म मानने वाले लोग फल्गु का पानी लेकर अपने घर जाते हैं, लेकिन हालात यह है कि उन्हें अभी रेत लेकर जाना पड़ता है. बौद्ध धर्म की भांति ही हर साल लाखों हिंदू और जैन श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस नदी कि भौगोलिक संरचना ऐसी है कि इसमें पानी का ठहराव नहीं होता. यह नदी ऐसी है जहां बालू रेत के करीब 25 फुट नीचे पानी का बहाव है.
गया के विपुल आचार्य बताते हैं,"पिंडदान और तर्पण के लिए पुराणों में गया को सबसे पवित्र भूमि बताया गया है. इस वजह से सीता माता ने भी राजा दशरथ का पिंडदान गया में किया था. जब राम को इस बात पर यकीन नहीं हुआ तो सीता मां ने गवाह के रूप में फल्गु नदी को सच बताने कहा, तब फल्गु नदी मुकर गई. फिर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि, फल्गु नदी, जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा. फल्गु नदी के अलावा अक्षय वट, ब्राह्मण, गाय और तुलसी को भी मां सीता ने श्राप दिया था."
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