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मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) का कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) नामीबिया से आए 8 चीतों का नया घर है. देश में 70 साल बाद चीतों को फिर से यहां बसाया गया है. शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चीतों को कुनो नेशनल पार्क में रिलीज किया. इस दौरान उन्होंने अपने रिकॉर्डेड भाषण में कहा कि, "चीता हमारे मेहमान हैं और नई जगह से अनजान हैं. इसलिए इन्हें देखने के लिए थोड़ा धैर्य रखें."
देश में एक तरफ चीतों की चर्चा हो रही है. तो वहीं दूसरी तरफ कुनो नेशनल पार्क का नाम भी इतिहास में दर्ज हो गया है.
विंध्याचल की शान कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में है. 750 वर्ग किलोमीटर में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और यहां रहने वाले जानवरों के लिए फेमस है. चीतों के आने से इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.
कुनो नेशनल पार्क में एक समय शेरों को बसाने की योजना थी. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सर्वे में कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को शेरों को बचाने के लिए सर्वोत्तम जगह पाया गया था.
कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी विशेष है. अरावली और माधव राष्ट्रीय उद्यान के बीच में कुनो एक राजमार्ग की तरह है. राजस्थान के रणथंभौर और मुकंदरा टाइगर रिजर्व के जानवर भी यहां आते-जाते रहते हैं. करथई और खेर के इस जंगल में आते ही हर तरफ जंगली जानवर दिखाई देते हैं. यहां के घास मैदान अफ्रीकन सवाना की तरह हैं और इसमें से तो कई घास के मैदान कान्हा और बांधवगढ़ के मैदानों से भी बड़े हैं. करथई के बारे में कहा जाता है कि बारिश आने से पहले हवा की नमी से ही यह पेड़ हरा भरा होने लगता है.
कुनो राष्ट्रीय उद्यान केवल एक जंगल नहीं है. यह खुद में 500 सालों का इतिहास को समेटे हुए है. पालपुर घड़ी, कुनो नदी के किनारे बना किला कभी चंद्रवंशी राजा बल बहादुर सिंह की राजधानी था. उन्होंने यहां लगभग 1666 में अपना साम्राज्य स्थापित किया था. आमेट का किला अब तो लगभग पूरी ही तरह से जंगल की आगोश में समा गया है.
इस क्षेत्र की लोककला और संस्कृति को आज भी थोरेट बाबा सिद्ध वाले और बाबा रणजीत सिंह जी के दरबार ने जीवित रखा है.
कुनो राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने वाले 24 गांवों के 1500 लोगों को 1998 से 2005 के बीच विस्थापित किया गया. इनमें से ज्यादातर सहारिया समुदाय के लोग थे. इन लोगों ने जंगल की भलाई के लिए अपना घर छोड़ दिया.
सहरिया आदिवासी पिछले कुछ सालों से कुपोषण की वजह से सुर्खियों में रहा है. रोजगार की कमी और आय के सीमित स्रोतों की वजह से सहरिया आदिवासियों के नवजात बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं.
कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के आने से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को संबल मिलेगा. स्थानीय लोगों का बाहर के लोगों से मेलजोल बढ़ेगा. इसके साथ ही आय के नए स्रोत खुलेंगे जिससे स्थानीय सहित सहरिया आदिवासियों के जीवन में भी सुधार की उम्मीद है.
कहा जा रहा है कि अफ्रीका के चीतों का श्योपुर आना अमृत के समान है. अभी तक यह क्षेत्र केवल पिछड़ेपन और कुपोषण की वजह से ही चर्चा में था. अब अपनी प्राकृतिक विशेषताओं और चीतों की वजह से सुर्खियों में है.
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