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बिहार. कोरोनावायरस से निपटने के लिए देश की इस तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में क्या तैयारी है? बिहार में अबतक कोविड-19 से एक मौत दर्ज की गई है. संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है. लेकिन फिलहाल बिहार को इस महामारी के साथ और भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
24 मार्च की रात पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया गया था. इससे दूसरे राज्यों में बिहार के कई प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं, जिनकी रोजी-रोटी ठप पड़ी हुई है. बिहार सरकार ने उन मजदूरों के लिए 100 करोड़ रुपये का फंड जारी किया है.
लॉकडाउन की वजह से बीते सप्ताह दिल्ली और अन्य राज्यों से मजदूरों का हुजूम बिहार लौटने के लिए पैदल निकल पड़ा था. मजदूरों के कोरोनावायरस कैरियर होने की आशंका थी और ये राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनौती थी. बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने क्विंट से बातचीत में बताया-
उनके मुताबिक 30-31 मार्च से 1 अप्रैल के बीच, 2 दिनों के भीतर 40,000 मजदूर बाहर से राज्य में पहुंचे. आपदा राहत केंद्र से मजदूरों को उनके गांवों में भेजने का इंतजाम किया गया. अलग-अलग गांवों में करीब 3,000 स्कूलों में क्वॉरन्टीन की व्यवस्था की गई है. करीब 26-27 हजार लोगों को स्कूलों में क्वॉरन्टीन किया गया है. वहां उन्हें खाना दिया जा रहा है. बाकी लोगों को होम क्वॉरन्टीन किया गया है. उनके घरों पर पोस्टर लगाया गया है. साथ ही उन्हें ‘गरुड़ ऐप’ के जरिये ट्रैक किया जा रहा है.
कई क्वॉरन्टीन सेंटर के खराब होने की शिकायतों पर उन्होंने प्रतिक्रिया दी कि “हमारे राज्य का बॉर्डर सबसे बड़ा है. आबादी ज्यादा है और हम एक गरीब राज्य हैं. इसके बावजूद हम इस लड़ाई को लड़ रहे हैं और सफलतापूर्वक लड़ेंगे. क्वॉरन्टीन को सफल करना हमारा लक्ष्य है. हमलोग लगातार प्रयत्नशील हैं, कोशिश कर रहे हैं.”
बता दें, सीएम नीतीश कुमार भी 1 अप्रैल को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कह रहे थे कि “हम एक गरीब राज्य हैं, राज्य सरकार की जितनी हैसियत है, जो भी है उसके माध्यम से मदद करने की कोशिश कर रहे हैं.”
पिछले साल 150 से ज्यादा बच्चों की जान लेने वाला AES- एक्यूट एंसिफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार ने भी दस्तक दे दी है. इससे राज्य में एक बच्चे की मौत दर्ज की जा चुकी है. COVID-19 के बीच चमकी बुखार की दस्तक बड़ी चुनौती है.
इस बारे में क्विंट से बातचीत में बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार कहते हैं कि कोरोनावायरस लॉकडाउन की वजह से AES के इलाज का एपिसेंटर कहे जाने वाले मुजफ्फरपुर में अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के काम में दिक्कतें आ रही हैं. इसे तय समय पर पूरा होने में देरी होगी.
बता दें, AES पीड़ितों की संख्या जून के आसपास बढ़ जाती है. अगर लॉकडाउन की अवधि राज्य में बढ़ गई तो राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा सकती है, जिसे संभालना काफी मुश्किल होगा.
जून 2019 में छपी नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक 21 राज्यों की लिस्ट में बिहार हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में 20वें स्थान पर है.
COVID-19 के संदर्भ में बात करें तो आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल एंड रिसर्च) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक जांच के मामले में बिहार सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल है. वहीं कोरोनावायरस मॉनिटर के मुताबिक इसकी 1.20 मिलियन आबादी के लिए, फिलहाल 4 COVID-19 टेस्ट सेंटर हैं. तीन पटना और एक दरभंगा जिले में है.
24 मार्च को पटना के एम्स के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती तीन मरीजों की मौत हो गई थी. उनकी जांच रिपोर्ट मौत के बाद निगेटिव आई. जांच रिपोर्ट में देरी को लेकर सवाल उठे थे. पटना एम्स के नोडल अधिकारी डॉक्टर नीरज अग्रवाल ने हमसे कहा-
दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से निकले सैकड़ों लोगों ने हर राज्य में कोरोना की दहशत को और बढ़ा दिया है. इसका असर बिहार में भी है.
कुल मिलाकर कोरोना का प्रकोप बिहार के लिए परीक्षा की घड़ी है. लचर अर्थव्यवस्था, ढीली स्वास्थ्य सेवाएं और चमकी बुखार का डर...इन सब ने मिलकर बिहार को मुश्किल समय में डाल दिया है. ये वक्त ये भी फैसला करने का है कि राज्य को अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करना ही होगा.
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