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गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के तलाला कस्बे से ऊना शहर की तरफ जाने वाली सड़क गिर के घने जंगलों से गुजरती है. उसी सड़क पर करीब 12 किलोमीटर चलने के बाद गुजराती में लिखा एक बोर्ड दिखता है- जांबूर ग्राम पंचायत आपका हार्दिक स्वागत करती है.
गांव के अंदर घुसते ही माहौल आपको जैसे अफ्रीका में पहुंचा देता है. पुराने खंडहरों से दिखने वाले पत्थर और गारे से बने घर, चबूतरों पर बैठे युवा, बुजुर्ग अफ्रो-इंडियंस के जत्थे और किसी अजनबी की मौजूदगी से सहमते-कुनमुनाते बच्चे.
आपका सम्मोहन तब टूटता है, जब अचानक कोई शरारती बच्चा आपकी शर्ट खींचकर गुजराती में पूछता है, तमे कौन छो.. त्मे क्यां ती आओ छो? (आप कौन हो.. कहां से आए हो?)
ये जांबूर है- गिर सोमनाथ जिले में अफ्रीकी मूल के लोगों का गांव, जो अब पक्के गुजराती बन चुके हैं. सिद्दी जनजाति के इन लोगों को स्थानीय लोग सिद्दी बादशाह कहकर पुकारते हैं.
सिद्दियों को अपना इतिहास ठीक से याद नहीं. 52 साल के परमार हाशिम ने मुझे बताया कि भारत में बसे सिद्दी जमालुद्दीन याकुत के वंशज हैं.
याकुत दिल्ली पर राज करने वाली रजिया सुल्तान का गुलाम था, जिससे रजिया को मोहब्बत हो गई थी. रजिया बेगम ने दिल्ली पर साल 1236 से साल 1240 तक शासन किया था. परमार के मुताबिक,
कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि करीब 300 साल पहले जूनागढ़ के नवाब गिर के जंगलों में फैले शेरों पर काबू पाने के लिए साउथ अफ्रीका से कुछ लोगों को लाए थे. ये लोग उन्हीं के वंशज हैं.
बुनियादी सुविधाओं से बेजार जांबूर गांव में रोजगार सबसे बड़ी समस्या है. कुछ लड़कों को अस्थायी तौर पर गिर में सिक्योरिटी गार्ड का काम मिल जाता है. लेकिन ज्यादातर युवा ऑटो चलाने, सब्जी बेचने जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं.
ये लोग अफ्रीका के धमाल डांस के जरिये गिर में आने वाले टूरिस्टों का मनोरंजन भी करते हैं, लेकिन उससे होने वाली कमाई भी बेहद कम है.
परमार के मुताबिक:
गांव में दसवीं तक का एक स्कूल है. कमाई के लिए लड़कियां पढ़ाई के साथ सिलाई-कढ़ाई का काम करती हैं. मेरी मुलाकात नौवीं में पढ़ने वाली अलफीजा और दसवीं में पढ़ने वाली आजेबू से हुई.
उन्होंने बताया:
सिद्दियों में ज्यादातर मुस्लिम हैं. गुजरात में इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, लेकिन लोगों का कहना है कि नौकरियों में रिजर्वेशन का कोई फायदा नहीं मिलता. ये लोग अपने समुदाय में ही शादी करते हैं. अफ्रीकी मूल का होने की वजह से ये लोग खेलों में कुदरती तौर पर अच्छे हैं, लेकिन वहां भी मौका नहीं मिलता.
23 साल के असलम से बात करते वक्त उसकी भिंची मुट्ठियों में बेबसी और गुस्सा मैं साफ महसूस कर रहा था.
क्या हमारे नेता सुन रहे हैं..?
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