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(एडिटर - मोहम्मद इब्राहिम)
"करीब शाम के 7 बजे रहे होंगे, ये 8 मई की बात है, मैं अपने घर में थी और इफ्तार के लिए फल काट रही थी. मेरे पति भी उसी कमरे में बेड पर मेरी एक साल की बच्ची के साथ खेल रहे थे. तभी कुछ पुलिसवाले आए और उन्हें घर से उठाकर बाहर ले जाकर उनकी बेरहमी से पिटाई की." गुजरात मेंअहमदाबाद के शाहपुर अड्डा में रहने वाली रेहाना ने अपनी कहानी कुछ इस तरह बयां की.
रेहाना ने पुलिसवालों से कहा कि पहले उसके पति को एक बूंद पानी पीकर रमजान का व्रत तोड़ने दिया जाए. लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी. लेकिन अहमदाबाद के शाहपुर अड्डा में सिर्फ रेहाना ही अकेली ऐसी महिला नहीं है, जिसने गुजरात पुलिस पर मुस्लिमों को टॉर्चर और उनके साथ क्रूरता के आरोप लगाए हैं. 8 मई को हुई इस हिंसा में 29 लोगों को हिरासत में लिया गया.
इस पूरे इलाके में पुलिस पर क्रूरता का आरोप लगाने वालों में एक गर्भवती महिला, एक 62 साल के बुजुर्ग और एक दिव्यांग बच्चा भी शामिल है.
अपने चेहरे पर उंगलियों के लाल निशान दिखाते हुए सुलेमा ने बताया, मैं घर से बाहर अपने पिता और अपने भाई को बचाने गई, जिन्हें पुलिस लेकर जा रही थी. लेकिन मेरे जाते ही उन्होंने मुझे थप्पड़ मारने शुरू कर दिए.
एक और महिला रहीमा ने आरोप लगाया कि पुलिस जब उसके पति को लेने पहुंची तो उस दौरान उसके दिव्यांग बच्चे को भी घर से बाहर घसीटकर ले गए. रहीमा ने बताया, "उन्होंने दरवाजा खोला और मेरे पति को घर से बाहर ले जाने लगे. जब मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने मेरे बेटे को भी घसीटा और घर से बाहर ले गए. जो बिना सहारे के चल भी नहीं सकता है. मैंने और उसकी बहन ने पुलिस को उसे ले जाने से रोका."
गुजरात पुलिस का आरोपों से इनकार
गुजरात पुलिस ने इन सभी आरोपों को नकार दिया. डीसीपी जोन-2 धर्मेंद्र शर्मा ने कहा, "पुलिस पर क्रूरता, महिलाओं को टॉर्चर करने और घर में तोड़फोड़ करने के सभी आरोप बेबुनियाद हैं. हां जिन लोगों ने भागने की कोशिश की हमने उन्हें पकड़ा, इनमें से कुछ लोगों ने घरों में छिपने की भी कोशिश की, इसीलिए हमें उन्हें घर से बाहर निकालकर गिरफ्तार करना पड़ा."
अहमदाबाद में लगातार बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए पिछले हफ्ते लॉकडाउन को और सख्त कर दिया गया. फलों और सब्जियों की दुकानें बंद करवा दी गईं, सिर्फ दूध और मेडिकल शॉप को ही खोलने की इजाजत थी. अहमदाबाद का शाहपुर सांप्रदायिक तौर पर एक सेंसिटिव एरिया है. जिसे कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया था.
8 मई को जब इस मुस्लिम बहुल इलाके की कुछ महिलाएं रोजा तोड़ने के लिए दूध लेने घर से बाहर निकलीं. लेकिन इलाके में पेट्रोलिंग कर रही पुलिस ने उन्हें रोक लिया. धीरे-धीरे बहस बढ़ती गई और पुलिस पर पथराव हुआ. जिसके बाद पुलिस की तरफ से भी आंसू गैस के गोले दागे गए.
डीसीपी, जोन-2 धर्मेंद्र शर्मा ने कहा,
शर्मा ने आगे कहा, जब इनमें से कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पुलिस थाने लगा गया तो कई लोग इस प्रतिबंधित इलाके में सड़कों पर निकल गए. तभी एक घर से पत्थरबाजी शुरू हुई, जिसमें हमारा एक अधिकारी घायल हो गया. इसके बाद पूरे इलाके से पत्थरबाजी शुरू हो गई. जिसके बीच पुलिस फंस गई.
इसके बाद करीब 29 लोगों को हिरासत में लिया गया और कई मामलों के तहत उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया. सब इंस्पेक्टर एचबी चौधरी की तरफ से एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें 17 लोगों का नाम शामिल था. इसमें लिखा गया था कि इंस्पेक्टर आरके अमीन को मिलाकर कुल 3 पुलिसकर्मी पत्थरबाजी में घायल हुए. इसमें ये भी लिखा गया है कि हिंसा के दौरान भीड़ को वहां से हटाने के लिए 40 टियर गैस और एक रबर बुलेट फायर की गई.
भले ही पुलिस का कहना है कि उन्होंने हालात को देखते हुए एक्शन लिया, लेकिन कई वीडियो ऐसे भी हैं जिनसे पुलिस के इस एक्शन पर सवाल खड़े होते हैं. एक वीडियो क्लिप में दिख रहा है कि पुलिस भीड़ की तरफ कुछ फेंक रही है. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस की तरफ से भी पत्थरबाजी हो रही थी. हालांकि डीसीपी शर्मा ने इस दावे को भी खारिज किया और कहा कि, "ये स्टन ग्रेनेड या फिर थ्री वे शेल हो सकते हैं यह साफ नहीं है."
एक दूसरे वीडियो में पुलिसकर्मियों को कुछ फेंकते हुए, टियर गैस फायर करते हुए और सड़क पर पार्क हुई गाड़ियों में तोड़फोड़ करते हुए देखा गया. इनमें से लाठी लिए कुछ लोग वर्दी में भी नहीं थे. डीसीपी ने इस वीडियो को लेकर पूछे गए सवाल का अभी तक जवाब नहीं दिया है. जवाब आते ही खबर में अपडेट किया जाएगा.
इसके अलावा एक वीडियो ऐसा भी सामने आया था, जिसमें कुछ पुलिसवाले मिलकर एक मुस्लिम युवक को सड़क पर बुरी तरह पीटते दिख रहे हैं.
इस पूरे मामले को लेकर गुजरात के सामाजिक संगठनों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से एक स्वतंत्र जांच की मांग की है. उनका कहना है कि गुजरात पुलिस पर लगे इन सभी आरोपों की जांच होनी चाहिए.
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