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बिहार से अलग होकर झारखंड को राज्य बने करीब दो दशक गुजर गए. इस दौरान कई सरकारें आईं और कई सरकारें गईं, कई मुख्यमंत्री बने और कई मुख्यमंत्री सत्ता से दूर हुए, लेकिन नक्सलवाद की समस्या तब भी थी और आज भी है. हालांकि, सभी सरकारें इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इसे खत्म करने का वादा जरूर करती रहीं.
कई राजनीतिक दल नक्सलवाद को खत्म करने के वादे के साथ सत्ता तक पहुंच भी गए, लेकिन लोगों के लिए यह समस्या आज भी बनी हुई है.
झारखंड में नक्सलवाद की समस्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जेएमएम नेता हेमंत सोरेन की अगुवाई में जिस दिन सरकार बनने जा रही थी, एक प्रकार से चुनौती देते हुए प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नक्सलियों ने अड़की थाना क्षेत्र के सेल्दा में विस्फोटकों के जरिए सामुदायिक भवन को उड़ा दिया था.
झारखंड में कई नक्सली संगठन हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय हैं. सबसे ज्यादा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने जहां 67 नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया है, वहीं तृतीय प्रस्तुति कमिटी (टीपीसी) ने 27, पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) ने 22, झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) ने 13 घटनाओं को अंजाम दिया है.
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले साल राज्य में नक्सलियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ की 36 घटनाएं हुईं, जिसमें 24 नक्सलियों को मार गिराया गया. नक्सलियों द्वारा पिछले साल अलग-अलग जिलों में 22 लोगों की हत्या की गई, जबकि आगजनी की 26, अपहरण की 2, विस्फोट की 13 घटनाओं को अंजाम दिया गया. नक्सलियों ने इस दौरान पुलिस टीम पर 4 बार हमले भी किए.
पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि नक्सलियों के सफाए को लेकर रणनीतियां बनती रहती हैं, पिछली सरकार ने भी नक्सलियों के खिलाफ कई रणनीतियां बनाई थीं. पिछले एक साल में 12 नक्सलियों ने आत्ममर्पण किया.
पिछली सरकार भी नक्सलियों को खत्म करने के दावा करती रही, लेकिन नक्सली घटनाओं को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराते रहे. ऐसे में अब भविष्य में ही पता चलेगा कि नक्सलवाद से निपटने में झारखंड की नई सरकार कितनी सफल होती है.
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