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कश्मीर के सदियों पुराने सेब उद्योग के लिए तबाही का संकेत बन चुके ईरानी सेब के अफगानिस्तान के जरिए भारतीय बाजारों में प्रवेश को लेकर स्थानीय फल उत्पादकों ने इसकेअवैध प्रवेश को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) संधि के तहत शून्य शुल्क का लाभ उठाने के लिए भारतीय बाजारों में ईरानी सेबों को अफगानिस्तान के रास्ते भारत भेजा जा रहा है।
साफ्टा आठ दक्षिण एशियाई देशों के बीच एक समझौता है। अफगानिस्तान और भारत साफ्टा के सदस्य हैं और इसलिए, एक दूसरे से कुछ आयातों पर शुल्क नहीं लगाते हैं। ईरान साफ्टा का हिस्सा नहीं है, लेकिन वहां से सेब आयात शुल्क को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान के रास्ते भारत पहुंचते हैं।
इसका परिणाम यह है कि जहां अच्छी गुणवत्ता वाले कश्मीरी सेब के एक डिब्बे की कीमत टर्मिनल बाजारों में 1,200 रुपये है, वहीं ईरानी सेबों की कीमत सिर्फ 700 रुपये प्रति बॉक्स है।
कश्मीरी फल उत्पादकों ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि कई फल व्यापारी हमारे देश में अफगानिस्तान / दुबई से आने वाले ईरानी सेबों का आयात और डंपिंग करते हैं और इस स्थिति ने हमारे पूरे फल कारोबार को तबाह कर दिया है। जम्मू-कश्मीर (यूटी) और हिमाचल प्रदेश दोनों में अब सेब उद्योग बहुत ही अनिश्चित स्थिति में हैं क्योंकि इसने बाजार में हमारे हिस्से को बुरी तरह प्रभावित किया है।
इसमें कहा गया है हमारे देश में ईरानी सेबों की यह अवैध और गैरकानूनी डंपिंग न केवल जम्मू-कश्मीर (यूटी) / हिमाचल प्रदेश के छोटे और सीमांत उत्पादकों के लिए विनाशकारी है, बल्कि इससे राज्य के राजस्व को भी भारी नुकसान होता है। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि हमारे देश में अफगानिस्तान / दुबई के माध्यम से ईरानी सेब के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए ताकि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के बागवानी उद्योग को बचाया जा सके।
स्थानीय फल उत्पादकों का कहना है कि घाटी में तीन करोड़ से अधिक पैक किए गए सेब के डिब्बे बिना बिके रखे हुए हैं, जिनमें से 1.5 करोड़ विभिन्न कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं में हैं।
कानूनी रूप से ईरानी सेब साफ्टा के तहत शून्य शुल्क के दायरे के योग्य नहीं हैं,और इसे देखते हुए कश्मीर के फल उत्पादकों ने इन पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की मांग की है।
उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के एक सेब उत्पादक अब्दुल राशिद लोन कहते हैं ईरानी सेबों को अफगानी सेबों के नाम पर यहां लाया जाना एक अपराध है। लेकिन इससे भी ज्यादा यह हमारे लिए लिए विनाश का सबब है क्योंकि हमें अपने सेबों को पैदा करने पर बहुत सारा पैसा खर्च करना पड़ता है। हर साल कम से कम पांच कवकनाशी/कीटनाशक स्प्रे के अलावा इसमें खाद, इनकी निगरानी आदि की लागत जोड़ें तो अच्छी गुणवत्ता वाले सेब की हमारी प्रति बॉक्स लागत लगभग 200 रुपये प्रति बॉक्स आती है। फिर इनके परिवहन पर अलग से खर्च आता है। साफ्टा के तहत शुल्क से छूट प्राप्त ईरानी सेब के साथ हमारी गुणवत्ता वाले सेब का इस प्रकार प्रतिस्पर्धा करने का कोई तरीका नहीं है।
घाटी के अलावा, सेब हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में भी सेबों का उत्पादन होता हैं। उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले के एक अन्य सेब उत्पादक मोहम्मद शफी भट का कहना है कि हमारे बाजारों में ईरानी सेब के अवैध प्रवेश के कारण भी इन राज्यों को नुकसान होता है।
शफी का कहना है कि ईरानी सेब कम दरों के कारण बहुत तेजी से बिकते हैं और इससे हमारे सेबों की मांग में कमी आई है।
कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह डीलर यूनियन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर कहते हैं कि अगर ईरानी सेब पर कानूनी रूप से कर नहीं लगाया जाता है, तो कश्मीर के सेब को बाजारों से गायब होने में दो से तीन साल से अधिक का समय नही लगेगा।
दिलचस्प बात यह है कि कई लोगो की धारणा के विपरीत पर्यटन कश्मीर का सबसे बड़ा उद्योग नहीं है। यहां बागवानी और यह उद्योग जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका सालाना कारोबार 1,200 करोड़ रुपये है। यह लगभग 23 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है।
ईरानी सेब की शून्य शुल्क स्थिति की वास्तविकता के बारे में आधिकारिक स्तर पर जम्मू-कश्मीर में कुछ भ्रम प्रतीत होता है।
एजाज अहमद भट, महानिदेशक बागवानी (कश्मीर), कहते हैं, आप एक अंतरराष्ट्रीय संधि और व्यापार को रोक नहीं सकते। लेकिन फल उत्पादक इस तर्क को खारिज करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ईरानी सेब आयात पर शून्य शुल्क न तो किसी वास्तविक व्यापार का हिस्सा है और न ही यह साफ्टा समझौते के अंतर्गत आता है।
--आईएएनएस
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