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कश्मीर के सबसे पुराने चर्चों में से एक, 125 साल पुराने सेंट ल्यूक चर्च को क्रिसमस की पूर्व संध्या से पहले रिस्टोर किया गया है. 1990 के दशक से घाटी में उग्रवाद के बढ़ने के बाद से ये चर्च बंद था.
श्रीनगर के डलगेट इलाके में स्थित सेंट ल्यूक चर्च की आधारशिला 12 सितंबर 1896 को अर्नेस्ट नेवे और डॉ आर्थर नेवे ने रखी थी.
डॉ आर्थर ने तीन दशकों से अधिक समय तक कश्मीर में एक मेडिकल मिशनरी के रूप में काम किया था, और हैजा की महामारी के इलाज में अहम भूमिका निभाई थी. चर्च, उत्तर भारत के चर्च और अमृतसर के diocese का एक हिस्सा है.
चर्च की आधारशिला पर लिखा है, "टू द ग्लोरी ऑफ गॉड," "एज ए विटनेस टू कश्मीर" जो "द बिशप ऑफ लाहौर" द्वारा समर्पित है.
जम्मू और कश्मीर के पर्यटन विभाग ने अपने 'स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट' के तहत चर्च का रेनोवेशन किया है. स्थानीय ईसाई समुदाय के सरकार से संपर्क करने और 2016 में इसकी बहाली की मांग के बाद, सरकार ने इसके रेनोवेशन के लिए लगभग 60 लाख रुपये आवंटित किए थे.
22 दिसंबर को, इसके आधिकारिक तौर पर फिर से खुलने से एक दिन पहले, भक्तों का एक छोटा समूह चर्च में प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुआ.
डलगेट में शंकराचार्य पहाड़ी की तलहटी में स्थित चर्च का 23 दिसंबर को उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने आधिकारिक रूप से उद्घाटन किया.
1990 में बंद होने के बाद, चर्च काफी खस्ता हालत में था. एक कर्मचारी ने कहा, "यहां चर्च की मूल संरचना या डिजाइन में कोई बदलाव नहीं किया गया है. हम केवल इसके खोए हुए गौरव को बहाल करने के लिए इसका रेनोवेशन कर रहे हैं."
कश्मीर में ईसाई समुदाय चर्च के रेनोवेशन के लिए प्रशासन के प्रयासों की सराहना कर रहा है. वो चर्च की बेजान घंटियों को दशकों बाद फिर से चलता देखकर खुश हैं.
इलाके के स्थानीय लोग, चर्च के रेनोवेशन से खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे एकता और भाईचारे की जड़ें मजबूत होंगी, और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
घाटी की छोटी ईसाई आबादी आमतौर पर होली फैमिली कैथोलिक चर्च, एमए रोड पर रोमन कैथोलिक चर्च, और एक सोनवर में चर्च लेन में प्रार्थना के लिए इकट्ठा होती थी. अब, रेनोवेट हो चुका ये चर्च भी प्रार्थना और सभा आयोजित करेगा.
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