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कोरोना वायरस से सबसे प्रभावित जिलों में से एक है कानपुर. कानपुर, वो जिला जहां से राज्य में कुछ मंत्री भी हैं लेकिन कोरोना का समाधान निकालने में कोई बड़ी पहल नहीं दिख रही. कानपुर से बीजेपी सांसद सत्यदेव पचौरी खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को खत लिखकर बता रहे हैं कि बड़ी संख्या में कानपुर में मौतें हो रही हैं. पचौरी का कहना है कि मरने वालों में से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्हें सही से इलाज तक नहीं मिल पाया है. ऐसे लोग हॉस्पिटल के बाहर तो कभी एंबुलेंस या घर में दम तोड़ दे रहे हैं.
सत्यदेव पचौरी का ये दर्द और ये अपील कानपुर में मौजूदा स्थिति की हालत बयां कर रहा है. ऐसे में क्विंट हिंदी ने भी ये जानने की कोशिश की है कि सरकारी आंकड़ों में जो मौत के आंकड़े दिखाए जा रहे हैं उससे जमीनी हकीकत कितनी अलग है.
पिछले 14 महीनों में संक्रमितों की मौत के आकड़ों और अप्रैल महीने में सिर्फ विद्युत शवदाह के आकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं. दोनों विद्युत शवदाह गृह में 1300 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है.
कोविड-19 की दूसरी लहर में श्मशान घाटों पर बड़ी संख्या में शव अंतिम संस्कार के लिए पहुंच रहे थे. मृतकों के परिजनों को अंत्येष्टी स्थल पर चिता लगाने की जगह नहीं मिल रही थी.सूर्यास्त के बाद देररात तक शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था.फिलहाल यह सिलसिला पहले की अपेक्षा थोड़ा कम है.लेकिन श्मशाम घाटों पर हुए अंतिम संस्कारों की कहीं कोई गिनती नहीं है.
कानपुर के भैरव घाट में दाह संस्कार के नॉन कोविड के प्रमाण पत्र बनाने वाले राजू पंडा त्रिपाठी कहते हैं कि पूरे अप्रैल के महीने में हर रोज करीब-करीब 90 से 100 शव आते थे. किसी-किसी दिन 100 से भी ज्यादा 105 शव आए.
जब हमने भैरव घाट में स्थित अंतिम संस्कार की सामग्री बेचने वाले एक दुकानदार से बात की तो कमोबेश यही बात वो भी कहते नजर आए. वो ये जरूरत बताते हैं कि पिछले 1-2 से हालत कुछ बेहतर है.
अपने तमाम रिपोर्ट्स में सरकारी आंकड़ों और जमीनी आंकड़ों के बीच अंतर देखा-सुना होगा. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि कई लोगों को अस्पताल में दाखिल होने यहां तक टेस्ट कराने को भी नहीं मिला और उनकी मौत हो गई. ऐसे में ये नाम आंकड़ों में तो नहीं आ पाते लेकिन उनके परिरवारवाले जरूर एक अपने को खो देते हैं.
श्मशान घाट पर दाह संस्कार का प्रमाण पत्र बनाने वाले राजू पंडा कहते हैं कि कोविड और नॉन कोविड वाले शरीर में यहां कई बार अंतर समझ ही नहीं आता.
इस व्यवस्था का एक उदाहरण देखिए सबसे बड़े अस्पतालों में नाम दर्ज कराने वाला कानपुर के हैलट हॉस्पिटल की प्रमुख अधीक्षक का हाल ही में एक वीडियो सामने आया, जिसमें डॉ ज्योति सक्सेना बताती दिख रही हैं कि हैलट हॉस्पिटल में 120 वेंटिलेटर हैं जिसमें 34 खराब हैं,86 चालू हैं. अगर बेड बढ़ा भी दे तो ऑक्सीजन नहीं पहुंच सकती है, वहां तक. उसके लिए सिलेंडर चाहिए लेकिन वह भी उपलब्ध नही है..ऐसे में डॉक्टर और जो कर्मचारी काम मे लगे हैं वह भी क्या करें.
ये महज कुछ उदाहरण हैं, कानपुर से कई ऐसे केस सामने आए, जिसने बता दिया कि जिले में हेल्थ सिस्टम को इलाज की जरूरत है, जिससे लोगों का बेहतर तरीके से इलाज हो सके.
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