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UP: कानपुर में 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाने के मामले को GSVM कॉलेज ने बताया गलत

GSVM कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला ने कहा, "हम उस प्रकाशित खबर का पूरी तरह से खंडन करते हैं.

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<div class="paragraphs"><p>बाल रोग हॉस्पिटल, कानपुर</p></div>
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बाल रोग हॉस्पिटल, कानपुर

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

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उत्तर प्रदेश के कानपुर (Kanpur) जिले से पिछले दिनों लाला लाजपत राय चिकित्सालय में 14 बच्चों को कथित रूप से संक्रमित ब्लड चढ़ाने का मामला सामने आया था, जिसे अब गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज ने गलत बताया है. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला ने कहा कि डॉक्टर अरुण कुमार का स्टेटमेंट पूर्ण रूप से अनाधिकृत है और GSVM उसका कठोरता से खंडन करता है.

GSVM कॉलेज ने अपने बयान में क्या कहा?

"डॉ. अरुण कुमार ने जो बयान दिया था वह पूर्ण रूप से अनाधिकृत, आधारविहीन एवं त्रुटिपूर्ण है. जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज आर्या के बयान का कठोरता से खंडन करता है."

तस्वीर में GSVM कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला के साथ डॉक्टर अरुण कुमार भी मौजूद हैं.

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

कानपुर में जो भी थैलीसीमिया के लिये आता है, उसकी सर्वप्रथम स्क्रीनिंग की GSVM कॉलेज में की जाती है. साल 2019 के बाद से अभी तक कोई भी HIV, HBsAg या हेपेटाइटिस बी का थैलीसीमिया का कोई भी संक्रमित मरीज नहीं पाया गया है.
GSVM कॉलेज, प्रेस रिलीज

बता दें कि थैलीसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला ब्लड डिसऑर्डर है. इस रोग की वजह से शरीर की हीमोग्लोबिन बनाने की प्रक्रिया में बाधित होती है. इसमें रोगी के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहर से खून की आवश्यकता पड़ती है.

"2014 और 2019 में HIV के एक-एक केस मिले"

कॉलेज ने अपने बयान में आगे बताया कि "HIV का एक मरीज वर्ष 2014 और एक मरीज वर्ष 2019 में स्क्रीनिंग में पॉजिटिव पाया गया था, जिनका कहीं और ब्लड ट्रांसफ्यूजन हुआ था. इसके आलावा वर्ष 2016 में हेपाटाइटिस (बी) के दो मरीज स्क्रीनिंग में पॉजिटिव पाये गये थे".

GSVM कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला.

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

हैपाटाइटिस (सी) के वर्ष 2014 में 2, वर्ष 2016 में 2, वर्ष 2019 में 1 पॉजिटिव पाये गये जिसमें HIV के 1 प्रतिशत, HCV के 2.5 प्रतिशत, हेपेटाइटिस बी के 1 प्रतिशत है, जिनकी वैश्विक दर 20 प्रतिशत तक है. उपरोक्त पॉजिटीविटी ग्लोबल मानकों में न्यूनतम है.
GSVM कालेज, प्रेस रिलीज

"कोई भी थैलीसीमिया का मरीज संक्रमित नहीं हुआ"

GSVM कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला ने कहा, "हम उस प्रकाशित खबर का पूरी तरह से खंडन करते हैं. अभी तक मेडिकल कालेज में ट्रांसफ्यूजन से कोई भी थैलीसीमिया का मरीज संक्रमित नहीं हुआ है. GSVM कालेज, कानपुर में मरीजों की सुविधा के लिए एलाइजा के साथ-साथ नेट (NAT) टेस्टिंग भी की जाती है जोकि विश्व का सर्वोच्च टेस्ट है और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार है."

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बाल रोग विभाग के HOD पर होगी कार्रवाई?

डॉक्टर संजय काला ने कहा, "डॉक्टर अरुण कुमार आर्या के बयान को लेकर मेरी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से बात हुई है. उन्होंने एक पत्र लिखने को कहा है, जिसमें हम आर्या के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहेंगे."

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, कानपुर के लाला लाजपत राय चिकित्सालय में ब्लड चढ़ाने के बाद 14 बच्चों में हेपेटाइटिस बी, सी और एचआईवी (HIV) जैसे संक्रमण की पुष्टि हुई थी. हालांकि, ये आकंड़ा पिछले दस सालों का है.

बताया गया था कि सभी बच्चे थैलीसीमिया से पीड़ित थे और उनकी उम्र 6 से 16 वर्ष के बीच थी.

कानपुर का लाला लाजपत राय चिकित्सालय

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

डॉ.अरुण आर्य ने क्या कहा था?

इस पूरे मामले पर लाला लाजपत राय चिकित्सालय (LLRH) में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ.अरुण आर्य ने कहा, "यह सरकारी अस्पताल के लिए चिंता का कारण है क्योंकि ये ब्लड डोनेशन और उसके बगैर संक्रमण के रोगियों तक चढ़ाने की प्रक्रिया में खामियों को दर्शाता है."

बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ.अरुण आर्य

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

हमारे यहां थैलीसीमिया डे सेंटर चल रहे हैं, उनको आठ से दस साल हो गये हैं. थैलीसीमिया पीड़ित बच्चों को प्रति तीन से चार सप्ताह में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता होती है. ऐसे में इन बच्चों को एक साल में 16 से 24 बार खून चढ़ाना पड़ता है.
डॉ.अरुण आर्य, हेड, बाल रोग विभाग, LLR हॉस्पिटल

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि खून चढ़ाने के वक्त इससे संबंधित संक्रमण, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी और मेलेरिया, का खतरा रहता है. हमारे पास जो अब तक पिछले आठ से दस साल का डेटा है, उसके मुताबिक दो में हेपेटाइटिस बी, आठ में हेपेटाइटिस सी और दो में एचआईवी की पुष्टि हुई है. ऐसा नहीं है कि ये बच्चे पिछले महीने में पीड़ित हुए हैं, बल्कि ये आंकड़े पिछले दस सालों के हैं."

बाल रोग विभाग

(फोटो: स्क्रीनशॉट फ्रॉम वीडियो)

डॉ.अरुण आर्य ने कहा, "हम तीन से छह महीने में रूटीन स्क्रीनिंग कराते हैं ताकि हमें संक्रमण के बारे में पता चल जाए." उन्होंने कहा कि ट्रांसफ्यूजन के समय, डॉक्टरों को बच्चों को हेपेटाइटिस बी का टीका भी लगाना चाहिए था.

कांग्रेस अध्यक्ष ने उठाया था मामला?

इस मामले को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी उठाया था. उन्होंने 'X' पर लिखा, "डबल इंजन सरकार ने हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को डबल बीमार कर दिया है. यूपी के कानपुर में एक सरकारी अस्पताल में थैलीसीमिया के 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ा दिया गया, जिससे इन बच्चों को HIV AIDS और हेपेटाइटिस B, C जैसी चिंताजनक बीमारियां हो गई हैं. ये गंभीर लापरवाही शर्मनाक है."

उन्होंने आगे लिखा, "मासूम बच्चों को बीजेपी सरकार के इस अक्षम्य अपराध की सजा भुगतनी पड़ रही है. मोदी जी कल हमें 10 संकल्प लेने की बड़ी-बड़ी बातें सिखा रहे थे, क्या उन्होंने कभी अपनी बीजेपी सरकारों की रत्ती भर भी जवाबदेही तय की है?"

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