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''न तो मेरी बेटी माओवादी थी और न ही उसने सरेंडर किया था. पुलिस ने उसे घर से हिरासत में लिया था और सरेंडर करने के लिए टॉर्चर किया था.'', यह आरोप है, सोमडी का, जो 20 साल की उस संदिग्ध माओवादी की मां हैं, जिसने 23 फरवरी को, 'सरेंडर' के 4 दिन बाद छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा स्थित पुलिस लाइन में कथित तौर पर खुद की जान ले ली.
वह गुडसे गांव की रहने वाली हैं, जो दंतेवाड़ा के कतेकल्यां पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता है.
दंतेवाड़ा पुलिस के आधिकारिक बयान के मुताबिक, पांडे चेतना नाट्य मंडली का हिस्सा थी, जो प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का एक सांस्कृतिक संगठन है और उसने 19 फरवरी को पांच अन्य माओवादियों के साथ अपनी मर्जी से सरेंडर किया था. पांडे को छोड़कर, उनमें से पांच पर 15 लाख रुपये का संयुक्त इनाम था.
लोन-वर्राटू योजना के तहत, सरेंडर के बाद उन्हें (माओवादियों को) पुलिस लाइन में रखा जाता है और फिर उन्हें काउंसलिंग से गुजरना होता है. एक बार जब वे सामान्य जीवन में लौट आते हैं, तो पुलिस उन्हें परिवार की सहमति के साथ रिहा कर देती है या उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करती है.
दंतेवाड़ा के एसपी पल्लव ने पांडे की मौत के पीछे की वजह बताते हुए कहा, “मैं उससे नियमित रूप से बात करता था. घर लौटने के लिए उस पर परिवार की तरफ से लगातार दबाव था, उसे इस बात का भी डर था कि सरेंडर के बाद नक्सली उसके परिवार पर हमला कर सकते हैं. वह उम्र में बहुत छोटी थी और यह दबाव नहीं झेल सकती थी, यही उसकी खुदकुशी की वजह बन गई.''
गुडसे गांव में सरपंच भी पांडे की मां के आरोप के समर्थन में हैं. सरपंच हेमवता कवासी ने क्विंट से कहा, ''पांडे किसी भी नक्सली संगठन की सदस्य नहीं थी. उसका नाम दंतेवाड़ा पुलिस की ओर से लोन-वर्राटू के तहत जारी किए गए 1600 लोगों की लिस्ट में भी नहीं था.''
पांडे के मृत पाए जाने के एक दिन बाद, एक आदिवासी संगठन छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने दंतेवाड़ा कलेक्टर से मुलाकात की और उसकी मौत के बारे में स्पष्टीकरण मांगा. इस मामले पर बढ़ते विवाद के बीच दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी ने एसडीएम दंतेवाड़ा की अगुवाई में एक मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया है, जो संभवत: एक हफ्ते में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.
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