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सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई निर्धारित की है, जिसमें कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा के कारण लोगों के कथित पलायन को रोकने के लिए केंद्र और बंगाल सरकार को निर्देश जारी किया जाए.
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद भी हिंसा देखने को मिली है. दावा किया जा रहा है कि लगातार हो रही हिंसा के चलते राज्य में लोग पलायन को मजबूर हो रहे हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद होने वाली हिंसा के कारण लोगों का सामूहिक पलायन हुआ है और पुलिस और राज्य प्रायोजित गुंडे आपस में मिले हुए हैं. यही वजह है कि पुलिस मामलों की जांच नहीं कर रही और उन लोगों को सुरक्षा देने में विफल रही, जो जान का खतरा महसूस कर रहे हैं.
अब मामले से संबंधित याचिका पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है.
वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एक पीठ के समक्ष कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से जुड़ी हिंसा के कारण राज्य से एक लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
याचिका में शीर्ष अदालत से एक एसआईटी गठित करने और राज्य में राजनीतिक हिंसा और लक्षित हत्याओं की घटनाओं की जांच करने और मामले दर्ज करने का आग्रह किया गया है.
दलील में कहा गया है, राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में लोगों के पलायन ने उनके अस्तित्व से संबंधित गंभीर मानवीय मुद्दों को जन्म दिया है, जहां वे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के साथ दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं.
आनंद ने पीठ के समक्ष दलील दी कि मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है, क्योंकि लोगों को उनके घरों से बाहर कर दिया गया है. इस पर पीठ ने जवाब दिया, ठीक है, हम अगले हफ्ते मामले की सुनवाई करेंगे.
इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता अरुण मुखर्जी और अन्य की ओर से याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में दो मई से हिंसा शुरू हुई है और लोग प्रभावित और प्रताड़ित हुए हैं.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि इन विषम परिस्थितियों में लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हो रहे हैं. लोग पश्चिम बंगाल राज्य में और राज्य के बाहर शेल्टर हाउस में रहने को मजबूर हैं. पश्चिम बंगाल में लोगों के इस तरह के पलायन से उनके जीवन के अधिकार का हनन हो रहा है. इनके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और ऐसे लोगों को पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है. इन पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की भी गुहार लगाई गई है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि जो भी हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें पुलिस और राज्य सरकार की शह मिली हुई है. इस कारण पुलिस पूरे मामले में चुप है. लोगों को इस बात के लिए धमकी दी जा रही है कि वह इस संबंध में कोई मामला दर्ज न कराएं.
राज्य में राजनीतिक हिंसा, टारगेटेड हत्या और दुष्कर्म आदि की घटनाओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने की मांग की गई है.
याचिका में यह भी कहा गया कि कि केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद-355 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए राज्य को आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए.
इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि इस मामले में तुरंत सुनवाई की दरकार है. लोग अपने घर को छोड़कर शेल्टर हाउस और अन्य शिविरों में रहने को मजबूर हो रहे हैं. इस मामले में दाखिल याचिका में केंद्र और राज्य सरकार को पलायन रोकने के लिए निर्देश जारी करने की गुहार लगाई गई है.
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