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वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लगभग दो घंटे चली बहस के बाद, जम्मू-कश्मीर में 4G मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में दलील दी कि इंटरनेट पर प्रतिबंध शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को कैसे प्रभावित कर रहे हैं और बताया कि जम्मू-कश्मीर में कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ, लोगों को आवश्यक जानकारी हासिल करने के लिए 4G इंटरनेट का उपयोग करने की जरूरत है.
मीडिया प्रोफेशनल का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने बताया कि, हालांकि ब्रॉडबैंड इंटरनेट पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में केवल एक प्रतिशत इंटरनेट यूजर्स के पास ब्रॉडबैंड कनेक्शन है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि इंटरनेट पर पाबंदी संविधान के अनुच्छेद 19 (फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन) का उल्लंघन है. वहीं कोरोनोवायरस महामारी के समय लोगों तक सही जानकारी न पहुंचना राइट तो लाइफ (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है.
केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि 4G इंटरनेट को शुरू नहीं किया जा सकता. ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है. इसकी वजह से सेना की मूवमेंट का आसानी से पता चलेगा और प्रदेश में हिंसा भड़काने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने हंदवाड़ा आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे ऊपर है, जिसमें अदालत को दखल नही देना चाहिए.
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