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यूपी पंचायत चुनाव सियासी पार्टी के प्रतीकों पर नहीं लड़े जाते लेकिन पार्टियां अपने-अपने समर्थित उम्मीदवारों के नाम घोषित कर देती हैं. इस चुनाव की अहमियत इतनी है कि इसे अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल बताया जा रहा है. ऐसे में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए ये चुनावी नतीजे आशंका लेकर आ सकते हैं. राज्य के 75 जिलों के 3051 पंचायत सीटों के लिए अभी कई जगहों पर मतगणना जारी है इस बीच जो नतीजे और रुझान सामने आ रहे हैं उनमें बीजेपी और एसपी के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है. कई अहम माने जाने वाले जिलों में बीजेपी पिछड़ती दिख रही है. जिस तरह का बहुमत बीजेपी को पिछले विधानसभा, लोकसभा चुनाव में मिला था, उसे देखकर ये नतीजे पार्टी के लिए उत्साहजनक नहीं दिखते.
शुरुआत अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ यानी गोरखपुर से करें तो यहां की 68 सीटों में से बीजेपी-एसपी के 20-20 सीटों पर जीतने के अनुमान हैं. पहली बार पंचायत चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी की यहां एंट्री हुई है, पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब रही है. बीएसपी को यहां 2 सीटें मिल सकती हैं. कांग्रेस का खाता भी खुलता नहीं दिख रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाले वाराणसी जिले की बात करें तो यहां की 40 सीटों में ज्यादातर पर समाजवादी पार्टी पर आगे हैं. एसपी यहां 15 सीटों पर वहीं बीजेपी सात सीटों पर आगे है. बीएसपी-कांग्रेस को यहां 5-5 सीट मिल सकती हैं. अन्य के खाते में 8 सीटें जा सकती हैं.
अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र वाले जिले आजमगढ़ की बात करें तो यहां पर भी समाजवादी पार्टी 16 सीटों पर आगे है वहीं बीजेपी को 8 सीटें मिलती दिख रही हैं. यहां बीएसपी का खाता खुलते नहीं दिख रहा है. कांग्रेस को 1 और अन्य को 5 सीटें मिल सकती हैं.
ये दोनों जिले यूं तो प्रदेश के दो अलग-अलग क्षेत्रों में आते हैं. लेकिन इनमें सांस्कृतिक समानताएं हैं. इन दोनों ही जिलों में बीजेपी पिछड़ती दिख रही है. अयोध्या में तो बीजेपी को 40 में से महज 6 सीटें मिलती दिख रही हैं, वहीं एसपी 24 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रह सकती है. कांग्रेस का खाता यहां खुलता नहीं दिख रहा है. बीएसपी और अन्य के खाते में 5-5 सीटें जाती दिख रही हैं.
मथुरा में आईएनएलडी और बीएसपी की धमक दिखती है यहां कि 33 सीटों में से 12 सीटें बीएसपी के खाते में जा सकती हैं. बीजेपी को 9 सीटें मिलती दिख रही हैं. अन्य जिसमें आईएनएलडी भी शामिल है, उसे कुल मिलाकर 12 सीट मिल सकती है.
इटावा, मैनपुरी, एटा इन जिलों में समाजवादी पार्टी दूसरी पार्टियों से आगे है. कुछ सीटों पर शिवपाल सिंह यादव के कैंडिडेट जीतने की वजह से एसपी को धक्का लगा है. लेकिन अगर कुल मिलाकर बात करें तो यहां अब भी समाजवादी पार्टी, बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस से आगे नजर आती है.
रायबरेली में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच टक्कर दिखती है. दोनों ही पार्टियों को 11-11 सीटें मिल सकती हैं. वहीं बीजेपी को 7 सीटें मिलती दिख रही हैं. बीएसपी यहां चौथे नंबर की पार्टी है, सबसे ज्यादा सीट 23 सीट निर्दलीयों के खाते में जा सकती है. अमेठी में बीजेपी को 11 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं एसपी को 9 और बीएसपी-कांग्रेस के खाते में दो-दो सीटें जा सकती हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की बात करें तो यहां कि 43 सीटों में सबसे ज्यादा 26 सीटें निर्दलीयों के खाते में जा सकती हैं. इसके बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा 13 सीटें मिल सकती हैं. बीएसपी 4 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है.
राजधानी लखनऊ में भी समाजवादी पार्टी आगे है. यहां की 40 सीटों में से 10 समाजवादी पार्टी जीत सकती है. बीएसपी को 5 सीटें मिलने का अनुमान है, तीसरे नंबर पर बीजेपी है जिसे तीन सीटें मिली हैं. कांग्रेस का खाता खुलते नहीं दिख रहा है. निर्दलीयों के खाते में 7 सीटें जा सकती हैं.
वहीं कानपुर नगर में बीजेपी-एसपी के बीच टक्कर है. दोनों को 8-8 सीटों आगे हैं. बीएसपी को 4 सीटों पर जीत का अनुमान है. कांग्रेस यहां भी चौथे नंबर की पार्टी साबित हो सकती है.
इस बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि जो नतीजे सामने आ रहे हैं, उससे साबित हो रही है कि बीजेपी की नाव डूब रही है. अखिलेश यादव का दावा है कि समाजवादी पार्टी ही पंचायत चुनाव में लोगों की पहली प्राथमिकता वाली पार्टी रही है. वहीं बीजेपी को गोरखपुर, प्रयागराज से लेकर लखनऊ और इटावा तक लोगों ने नकार दिया है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष का ये भी कहना है कि जो नतीजे आए हैं वो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दिशासूचक साबित होंगे.
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