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प्रचंड बहुमत से विधानसभा और लोकसभा जीत कर आई बीजेपी को पंचायत चुनाव में हार मिली है. समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. ये अहम इसलिए भी हो जाता है कि ज्यादातर बार पंचायत चुनाव में उसी पार्टी का दबदबा होता है जो पार्टी सत्ता में होती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. कोरोना संक्रमण के बीच हुए इस चुनाव पर कई आपत्तियां आईं, हाईकोर्ट ने फटकार लगाई, कई संगठनों ने संक्रमण से सैकड़ों की मौत का दावा किया और अब जो नतीजे आए हैं वो यूपी सरकार के लिए संकेत के जैसे हैं. इन चुनाव को यूपी विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल बताया जा रहा है, ऐसे में जानते हैं जरा इन नतीजों से निकलने वाले 5 बड़े संकेत.
पूर्वांचल जो सीएम योगी का गढ़ माना जाता है, इसमें गोरखपुर और वाराणसी जैसे जिले हैं. पूर्वांचल के ज्यादातर जिलों में बीजेपी को समाजवादी पार्टी ने पीछे छोड़ा है. बनारस यानी पीएम के संसदीय क्षेत्र वाले जिले में 40 सीटों में सिर्फ 7 बीजेपी के खाते में जाती दिख रही है. समाजवादी पार्टी ने यहां 15 सीटें हासिल की हैं. गोरखपुर में बीजेपी-एसपी में कड़ी टक्कर देखने को मिली है. दोनों ही पार्टियों को 20-20 सीटें मिल रही हैं. यहां पर आम आदमी पार्टी की खाता भी खुला है.
अयोध्या मथुरा काशी ये ऐसे जिले हैं जो वैसे अलग-अलग क्षेत्रों में माने जा सकेत हैं लेकिन सांस्कृतिक पर ये जुड़े हुए हैं. इन तीनों ही जिलों में बीजेपी को हार मिली है. रामनगरी अयोध्या में 40 जिला पंचायत सीटें हैं, जिसमें 18 पर समाजवादी पार्टी को जीत हासिल हुई है, बाीजेपी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आईं हैं. मथुरा की 33 सीटों में से सबसे ज्यादा 13 बीजेपी को मिली हैं. यहां बीजेपी दूसरे नंबर पर है 8 सीटें मिली हैं, आरएलडी को भी यहां 8 सीटें मिली हैं. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि मथुरा से दो मंत्री श्रीकांत शर्मा और लक्ष्मी नारायण चौधरी भी आते हैं और इन दोनों के क्षेत्रों में बीजेपी को हार मिली है. काशी यानी वाराणसी के बारे में हम बात कर ही चुके हैं. कुल मिलाकर अयोध्या, मथुरा, काशी की जनता ने अपना फैसला दिया और उसकी प्राथमिकताओं को अब बीजेपी को समझ लेना चाहिए.
यूपी की राजनीति में 'किसान आंदोलन' का कितना असर होगा? ये सवाल लगातार पूछा जाता रहा है. इसे नापने का मीटर साबित हुए हैं ये पंचायत चुनाव. जो जाट-मुस्लिम समीकरण टूट गए थे, बीएसपी के किले जो पिछले चुनाव में ध्वस्त हुए थे. वो एक बार फिर जुड़ते दिख रहे हैं. जिस तरह से राष्ट्रीय लोक दल ने किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और समाजवादी पार्टी ने इसका साथ दिया. आरएलडी को यहां पर फायदा मिलता दिख रहा है. दावा है कि पार्टी को करीब 45 सीटों पर जीत मिली है. वहीं बीएसपी को भी यहां ठीक-ठाक सीटें मिलती दिख रही हैं, वो बीएसपी जिसने पिछले कुछ साल में अपना ये मजबूत गढ़ गंवा दिया है, एक बार फिर यहां से आस पार्टी को दिख सकती है.
अब एक और ट्रेंड की बात करें तो ये समझना चाहिए कि नतीजे देश के लिए और राज्य के लिए क्या संकेत दे रहे हैं. आप सुनते आए होंगे कि बीजेपी की मशीनरी रुरल एरिया में काफी बेहतर है और इसकी पकड़ भी मजबूत है. फिर भी नतीजे बीजेपी के लिए हैरान करने वाले क्यों रहे, जबकि कैबिनेट, राज्य मंत्री और स्वतंत्र प्रभार सब मिलाकर कुल 50 से ज्यादा मंत्री तक इस चुनाव में लगे हुए थे. जिस तरीके से कोरोना काल में बड़े-बड़े शहरों से लाखों प्रवासियों का आना हुआ है, जो मजबूरी उन्होंने देखी है, ये उसका भी नतीजा हो सकता है. सिर्फ राज्य के स्तर पर ही नहीं केंद्र के स्तर पर भी सत्ता के लिए नाराजगी के कुछ संकेत इन चुनाव में देखे जा सकते हैं.
मतलब चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले चरण के चुनाव में प्रदेश ने वो दर्द भी देखा, जब उनके अपने बेड, ऑक्सीजन और अस्पताल में भर्ती होने के लिए दर-दर मिन्नतें मांग रहे थे. लखनऊ में बीजेपी को पंचायत चुनाव में महज 3 सीट मिलें हैं, ये वही लखनऊ है जहां पिछले तकरीबन एक महीने से लगातार ऑक्सीजन की कमी तो बेड की कमी से मौत की खबरें सामने आ रही हैं.
विपक्ष के लिए भी यहां से एक बड़ा संकेत मिला है. समाजवादी पार्टी के अच्छे प्रदर्शन और बीएसपी तीसरे नंबर पर रही है. इसी बीच कांग्रेस, आप, आजाद समाज पार्टी समेत कई छोटी-बड़ी पार्टियों को भी यहां सीटे मिली हैं. विधानसभा चुनाव में भी अगर इतना ही छितरा हुआ विपक्ष दिखता है और बीजेपी ये साबित कर देती है कि लड़ाई बीजेपी VS विपक्ष की है तो सीटों का बंटना तय है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा. दूसरी तरफ विपक्ष के लिए ये भी संकेत है कि जिस विपक्ष के बारे में ये कहा जा रहा था कि ये तो बस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हैं, अपनी जमीन खोते दिख रहे हैं, ऐसे विपक्ष पर अब भी एक बड़ी आबादी भरोसा दिखाती है.
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