advertisement
"27 (फरवरी) को शाम 5 बजे उप जिलाधिकारी अमन देवल भारी पुलिस और कुर्मी समाज के उपद्रवी लोगों को साथ लेकर गांव पहुंच गए. वे बाबा साहब की बोर्ड जेसीबी और पुलिस के साथ हटाने लगे जिसका विरोध गांव की महिलाओं व बच्चों ने शांतिपूर्वक तरीके से किया. इसी दौरान उच्च अधिकारी के आदेश पर शांतिपूर्ण निहत्थी महिलाओं व बच्चों पर लाठी चार्ज कर दिया गया जिससे भगदड़ मच गई."
यह आरोप उत्तर प्रदेश के रामपुर (Rampur) जिले के सिलाईबड़ा गांव में रहने वाले गेदनलाल का है जिन्होंने अपना 17 साल का बेटा इस हिंसा में खो दिया. ग्राम समाज की जमीन पर भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का बोर्ड लगाने को लेकर हुए विवाद के बाद हिंसा भड़क गई. गांव के दलित समाज के लोगों ने पुलिस और एक दूसरी जाति के लोगों के ऊपर पत्थरबाजी और फायरिंग का आरोप लगाया है.
पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए मृतक परिवार के एक युवक ने कहा, "दो पुलिसकर्मी, आदेश चौहान और ऋषि पाल ऊपर चढ़े. उन्होंने दूसरी जाति के कहने पर बेहिसाब फायरिंग शुरू कर दी. इसमें मेरे एक भाई की मौत हो गई."
पीड़ित परिवार की तहरीर पर सुसंगत धाराओं में चार पुलिसकर्मियों समेत 25 नामजद लोगों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. इसके अलावा पीड़ित परिवार ने एक करोड़ रुपए और घायलों के परिवार के लिए 10-10 लाख मुआवजे सहित ग्राम समाज की जमीन पर बाबा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है.
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के सिलाईबड़ा गांव में ग्राम समाज की जमीन पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का बोर्ड लगने के बाद से ही तनाव फैला था. गांव के दलित पक्ष के लोग वहां अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करवाना चाहते थे जिसका विरोध दूसरी जाति के लोग कर रहे थे. मामले ने तूल तब पड़ा जब 27 फरवरी को जेसीबी और भारी पुलिस बल के साथ स्थानीय एसडीएम अमन देवल अतिक्रमण हटाने के लिए मौके पर पहुंचे.
इसका विरोध वहां पर मौजूद दलित समाज के लोगों ने करना शुरू कर दिया. बढ़ते विरोध ने हिंसा का रूप ले लिया. आरोप है कि गांववालों ने वहां मौजूद सरकारी कर्मचारी और उनकी गाड़ियों पर पथराव शुरू कर दिया. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में पुलिसकर्मी भी पथराव करते हुए देखे जा सकते हैं. कुछ देर बाद वीडियो में फायरिंग की आवाज भी सुनाई दे रही है.
प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि हिंसा के बीच फायरिंग भी शुरू हो गई जिसमें दलित पक्ष के तीन लोगों को गोली लगी. आरोप है कि घटनास्थल पर खड़े 17 वर्षीय सुमेश को सिर में गोली लगी और उसकी वहीं मौत हो गई.
गांव के ही एक युवक, ब्रजकिशोर का आरोप था कि गांव की दूसरी जाति के लोगों के कहने पर चौकी के पुलिसकर्मियों ने फायरिंग की.
बढ़ते तनाव के बीच मृतक सुमेश का शव रखकर गांव के लोग प्रदर्शन करने लगे. उनका आरोप था पुलिस कर्मियों की तरफ से हुई फायरिंग में सुमेश की मौत हुई.
17 वर्षीय मृतक सुमेश के पिता गेदनलाल की तरफ से दर्ज मुकदमे में यह आरोप लगाया गया है चार पुलिसकर्मियों समेत गांव की दूसरी जाति के दो दर्जन से अधिक लोगों द्वारा शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज और फायरिंग की गई. इसमें सुमेश की सर में गोली लगने से मौत हो गई वहीं दो अन्य लोग घायल हैं.
पीड़ित ने अपनी शिकायत में लिखा, "गांव में खाद के गढ्ढे की जमीन है जिससे बदबू और संक्रमण फैल रहा था. इसलिए समाज के लोगों ने इसे पटवा दिया था तथा भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी का बोर्ड लगा दिया था. इसका विरोध कुछ उपद्रवी और दबंग लोग कर रहे थे. तहसील और पुलिस के लोग आज दिनांक 27.2.2024 को शाम 5 बजे उप जिलाधिकारी अमन देवल भारी पुलिस और कुर्मी समाज के उपद्रवी लोगों को साथ लेकर गांव पहुंच गए एवं बाबा साहब की बोर्ड जेसीबी और पुलिस के साथ हटने लगे. इसका विरोध गांव की महिलाओं और बच्चों ने शांतिपूर्वक तरीके से किया. इसी दौरान उच्च अधिकारी के आदेश पर शांतिपूर्ण निहत्थी महिलाओं व बच्चों पर लाठी चार्ज कर दिया गया जिससे भगदड़ मच गई."
पीड़ित की तरफ से दर्ज मुकदमे में जिन 25 लोगों को नामजद किया गया है, उनमें बड़गांव पुलिस चौकी इंचार्ज सुरेंद्र सिंह, आदेश चौहान, वीरेंद्र और मुमतीरीन शामिल हैं. इन सब के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 323, 302 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 की धारा 3(2)(v) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है.
आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए रामपुर जाने वाले थे हालांकि उन्हें संभल में ही उन्हें नजर बंद रखा गया. स्थानीय मीडिया से बातचीत करते हुए चंद्रशेखर ने पुलिस पर हत्या का इल्जाम लगाते हुए प्रदेश सरकार पर निशाना साधा.
उन्होंने कहा, "रामपुर में कुछ गज जमीन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस ने दलित युवक की हत्या कर दी और कई लोग घायल हैं. मैं उन परिवारों से मिलना चाहता हूं लेकिन पुलिस की तानाशाही ऐसी है कि मैं उन परिवारों से मिल नही सकता. मैं पुलिस से नहीं लड़ना चाहता क्योंकि यह भी किसान परिवार के लोग हैं लेकिन मैं सरकार से पूछना चाहता हूं."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)