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रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) के त्योहार पर देशभर में बहने अपने-अपने भाइयों की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांध रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के संभल जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां भाई, बहनों से राखी नहीं बंधवाते हैं. भाइयों को डर रहता है कि राखी बांधने के बदले बहने उनसे उनकी संपत्ति न मांग ले. ऐसी ही कुछ मान्यता के चलते संभल तहसील के गांव बेनीपुर के भाइयों की कलाइयां रक्षा बंधन के इस पर्व पर आज भी सूनी रहती हैं. गांव की ये मान्यता 300 साल पुरानी है, और ग्रामीण इसको कायम रखना चाहते हैं.
संभल से आदमपुर मार्ग पर लगभग 5 किमी दूरी पर स्थित गांव बेनीपुर चक गांव बदलते वक्त के साथ आधुनिकता के ढांचे में चल रहा है. कच्चे मकानों की जगह पक्की कोठियां बन गई हैं, और डिबिया की जगह बिजली के लट्टू चमकते हैं. रहन-सहन बदल रहा है, लेकिन रक्षा बंधन न मनाने की 300 साल पुरानी परंपरा अभी भी कायम है. गांव के लोग राखी देखकर ही दूर भागते हैं. गांव के लोग, सौरान सिंह (75), विजेंद्र सिंह (60) और जबर सिंह (43) इसकी वजह भी बताते हैं.
वो कहते हैं कि उनके बुजुर्ग अलीगढ़ की तहसील अतरौली स्थित गांव सेमरा में रहते थे. गांव यादव और ठाकुर बाहुल्य था, लेकिन जमीदारी यादव परिवार की ही थी. हालांकि, दोनों जाति के लोगों में घनिष्ठता थी. ठाकुर परिवार ने बेटे को यादव की बेटी से राखी बंधवाई थी. बेटी ने उपहार में भैंस मांगी थी, जो दी गई, फिर ठाकुर की बेटी ने यादव के बेटे को राखी बांधी. यादव परिवार ने सोचा कि उपहार में कोई सामान मांगेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ठाकुर की बेटी ने गांव की जमींदारी मांग ली. बेटी को राखी के बदले जमींदारी देने के बाद पूर्वजों ने गांव छोड़ना ही उचित समझा.
गांव के 60 वर्षीय बुजुर्ग रामकरन कहते हैं, "करीब दो सौ साल इस परंपरा को छोड़े हुए हो चुके हैं." गांव के दूसरे निवासी, राजवीर ने कहा, "जब पहले राखी बांधने के बदले उपहार में हम ठाकुर समाज की बेटी को राखी के बदले सारी जायदाद दे चुके हैं और महादान के बाद छोटा दान करना हमारी तोहीन होगी, क्योंकि आज के समय में हम उस महादान से बढ़कर दान कर नहीं सकते. इसलिए अपने बुजुर्गों की मर्यादा तोड़ना हमारे लिए तौहीन होगी. इसलिए उसी समय बुजुर्गों ने फैसला लिया कि हम राखी का त्यौहार नहीं मनाएंगे."
सालों की परंपरा को ध्यान में रखते हुए लोग त्योहार तो नहीं मनाते, लेकिन युवाओं में इसका मलाल है. 18 साल की नीतिशा ने बताया, "घर मे दो भाई हैं और त्योहार की खुशी मनाने का मन तो काफी करता है, लेकिन जब घर के किसी बुजुर्गों ने तोहार को नहीं मनाया, तो घर में कोई नया काम कर अनहोनी होने का डर सताता है. इसलिए हम कोई नई शुरुआत अपनी तरफ से नहीं करते है."
25 साल पहले शादी करके गांव में आयीं 45 साल की धारा का भी यही कहना है. वो कहती हैं कि हमने भी कभी गांव में रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया है. "भाइयों के राखी बांधने को लेकर खुश होती है, लेकिन कभी बुजुर्गों ने इसे नहीं मनाया तो हम भी नहीं मनाते."
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