Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बुक लॉन्च पर बोले राघव बहल- फिर रचेंगे ‘नेटवर्क 18’ जैसा इतिहास

बुक लॉन्च पर बोले राघव बहल- फिर रचेंगे ‘नेटवर्क 18’ जैसा इतिहास

कैसे चंद लोगों का एकजुट प्रयास देश का सबसे बड़ा मीडिया एंपायर खड़ा कर देता है, जानें कहानी नेटवर्क 18 की

द क्विंट
न्यूज
Updated:


(फोटो: The Quint)
i
(फोटो: The Quint)
null

advertisement

सोमवार को इंडिया इंटरनेशलन सेंटर में ‘नेटवर्क-18: द ऑडेसियस स्टोरी अॉफ अ स्टार्टअप दैट बिकेम अ मीडिया एंपायर’ नाम की किताब लॉन्च की गई. इस किताब में नेटवर्क 18 का सफर और उससे जुड़े तमाम सवालों के जवाब है. साथ ही उन लोगों के संघर्ष की कहानी है जो इससे जुड़े और जिन्होंने नेटवर्क 18 को खड़ा किया.

इस किताब को इंदिरा कन्नन ने लिखा है. कन्नन नेटवर्क-18 के साथ करीब 15 साल से ज्यादा समय तक जुड़ी रही हैं.

साफ सुथरे अंत के लिए एक साफ सुथरी शुरुआत की जरूरत होती है. लेकिन जब आप शुरुआत करते हैं, तो आत्मविश्लेषण करना सबसे जरूरी होता है.क्विंट के जरिए हम एक बार फिर इतिहास रचने की कोशिश कर रहे हैं. युवा और नए सपनों के साथ काम करने वाली एक बेहतरीन टीम के साथ. आज जब आप क्विंट की एडिट मीटिंग देखेंगे, तो आप देखेंगे कि उस मीटिंग में वही एनर्जी होती है, जो नेटवर्क-18 की शुरुआत में हमारी टीम में हुआ करती थी.यह सच है कि मैं खुद को ‘अंग्रेजी ग्रामर का आयतुल्लाह’ मानता हूं.एक फाउंडर के लिए उसकी कंपनी का उससे अलग हो जाना, एक बच्चे का अपने मां-बाप से अलग हो जाने बराबर होता है.  
राघव बहल 
हर पत्रकार को खुद से यह सवाल हमेशा करना चाहिए कि अपने काम के जरिए वो क्या कहानी कहने वाला है. यह सवाल उसे हमेशा अपने काम के प्रति जिम्मेदार बनाए रखता है.मेरी किताब न सिर्फ किसी बिजनेसमैन की कहानी पर बेस्ड है. बल्कि एक शख्स की असमान्य कहानी है, जो अपने सपनों को लेकर दुस्साहसी रहा है.  
इंदिरा कन्नन
राघव जैसी महत्वकांक्षी लोगों के साथ काम करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वो क्रिएटिव लोगों पर कोई बंदिश नहीं रखते.रही बात मेरे वेब जर्नलिज्म में जाने की, तो मैं हमेशा से ही एक मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट बनना चाहता हूं. बशर्ते कोई दमदार प्लैटफॉर्म मिले.टीवी के स्वर्णिम दिन बीत चुके हैं. अब इसकी क्विलिटी पर बहुत काम किए जाने की गुंजाइश है.  
राजदीप सरदेसाई  
भारतीय ग्राहकों को समर्पित एक हिंदी टीवी चैनल बनाना जो उनकी इकोनॉमी के बारे में साफ सुथरी बात करे, निश्चित तौर पर राघव बहल का एक क्रांतिकारी फैसला था.कर्मचारियों को हमेशा अपना माना है नेटवर्क-18 ने. एक बड़ी कंपनी होते हुए भी, कर्मचारियों के छोटे से छोटे अधिकार को सुरक्षित करने की कोशिश की गई. क्योंकि यह माना गया कि एक कंपनी के लिए, खासतौर पर एक मीडिया कंपनी के लिए, उसके कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी होते हैं. कर्मचारी भी यह जानते थे. इसी ने संस्थान को इतना बड़ा बनने में मदद की.  
संजय पुगलिया
नेटवर्क-18 में काम करते वक्त हमने कई तरह की परिस्थितियां देखीं. अप भी. डाउन भी. लेकिन काम करने का जज्बा कभी कम नहीं हुआ. 
मेनका दोषी
50,000 रुपये लेकर हमने नेटवर्क-18 की नीव रखी थी. 10-15 लोगों की टीम से हम 6,500 लोगों की टीम तैयार कर पाए. लेकिन नेटवर्क-18 कैसे एक मीडिया एंपायर बन गया, इसकी पूरी कहानी इंदिरा ने अपनी किताब में दर्ज की है. 
संजय रॉय चौधरी
नेटवर्क-18 में माना जाता था कि राघव बहल ने रितु कपूर के अलावा संजय रॉय चौधरी से शादी कर रखी है.कल्पना करना आपकी सबसे बड़ा शक्ति है. अगर आप कल्पना कर सकते हैं, तो आप वह काम करने की शक्ति रखते हैं. नेटवर्क-18 में हमारी टीम इसी ख्याल के साथ बननी शुरू हुई थी.  
रोहित खन्ना

ये हैं बुक लॉन्च की कुछ झलकियां

FB लाइव में सुनिए पूरा किस्सा: एक स्टार्ट-अप से ‘नेटवर्क-18’ बनने तक

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कुछ देर में शुरू होगा बुक लॉन्च

कैसे कुछ लोगों का एकजुट प्रयास भारत का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एम्पायर खड़ा कर देता है?, कैसे सफदरजंग के एक कमरे में शुरू हुआ अॉफिस कई मंजिला इमारत में तब्दील होता है? कैसे एक पत्रकार उसूलों पर चलकर हजारों करोड़ की कंपनी खड़ी कर देता है? इन सारे सवालों के जवाब आपको मिलेंगे ‘नेटवर्क-18: द ऑडेसियस स्टोरी अॉफ अ स्टार्टअप दैट बिकेम अ मीडिया एंपायर‘ नाम की किताब में.

इसे लिखा है इंदिरा कन्नन ने. ये किताब सोमवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लॉन्च हो रही है.

इंदिरा कन्नन नेटवर्क-18 के साथ करीब 15 साल से ज्यादा समय तक जुड़ी रही हैं. किताब की लॉन्च में नेटवर्क 18 के फाउंडर राघव बहल, को-फाउंडर संजय रॉय चौधरी और वंदना मलिक के अलावा राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया, रोहित खन्ना आदि शामिल हो रहे हैं.

किताब पर बड़ी हस्तियों के रिएक्शन...

नेटवर्क-18 की कहानी बड़ी दिलचस्प है. कैसे एक बेहतरीन उद्यमी राघव बहल ने एक मीडिया अंपायर खड़ा किया, फिर उसे खो भी दिया. स्टार्ट-अप शुरू करने वाले सभी युवाओं को किताब जरूर पढ़नी चाहिए. 
<b> अरुण पुरी, इंडिया टुडे ग्रुप के मालिक</b>
मैं राघव बहल द्वारा बनाए गए <b>द क्विंट</b> का पहले ही फैन हो चुका हूं. मुझे किताब पढ़कर महसूस हुआ कि इसकी कहानी में हिट, फ्लॉप, महत्वाकांक्षा, रोमांच जैसी वही बातें हैं, जिन्हें मैं अपनी जिंदगी में महसूस करता हूं.&nbsp;
<b>अनिल कपूर, फिल्मस्टार</b>
उदारीकरण के बाद उस नए स्टार्टअप की यह एक बेहतरीन कहानी है, जो आगे चलकर देश के सबसे बड़े मीडिया घरानों में शुमार हुआ.
<b>सुनील मित्तल, बिजनेसमैन</b>

‘18’ से राघव बहल का खास लगाव क्यों रहा?

क्या आपने कभी सोचा है कि नेटवर्क-18 नाम में आखिर ‘18’ संख्या ही क्यों चुनी गई?

इस ‘18’ को लेकर मीडिया के पंडित अब तक काफी चर्चा कर चुके हैं. इस बारे में नेटवर्क-18 के संस्थापक राघव बहल ने खुलासा किया है.

जब राघव बहल ने 1991 में अपनी कंपनी शुरू की, तो उन्होंने को-फॉउंडर्स संजय रॉय चौधरी और सीबी अरुण कुमार से कंपनी का नाम सुझाने को कहा. ये दोनों जब तक कुछ नाम लेकर राघव बहल के पास आते, तब तक राघव ये तय कर चुके थे कि कंपनी का नाम टीवी-18 होगा. उन्होंने बताया कि ‘18’ ही क्यों?

राजदीप सरदेसाई की जुबानी: CNN-IBN के 9 साल और राघव बहल की कहानी

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 19 Sep 2016,04:41 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT