advertisement
"सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए."
ये शब्द हैं युवाओं के मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के जिनके विचार आज भी युवाओं (Youngsters) के लिए मार्गदर्शन का काम करतें हैं. आज 4 जुलाई को विश्व भर में उनकी पुण्यतिथि (death anniversary) मनाई जा रही है.
4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई थी. आज इस लेख में हम उन्ही से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में बात करेंगे.
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में हुआ था. उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था. बचपन से ही स्वामी पढ़ने में काफी तेज थे उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक बार पढ़कर ही पुस्तक याद कर लिया करते थे.
बचपन से ही उनमें ईश्वर को जानने की जिज्ञासा थी. इस जिज्ञासा को दूर करने के लिए विवेकानंद ने महा ऋषि देवेंद्र नाथ से सवाल किया "क्या आपने कभी भगवान को देखा है"? ये सवाल सुनकर महा ऋषि देवेंद्र सोच में पड़ गए और इसके जवाब की तलाश के लिए उन्होंने स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की राय दी. बाद में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु चुन लिया और महज 25 साल की उमर में ही संसार की मोहमाया को त्याग करके सन्यासी धर्म अपना लिया था.
युवाओं को किसी भी देश के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है जैसे शरीर की रीढ़ खराब हो जाए तो शरीर का सीधे खड़ा नहीं हो सकता ठीक उसी तरह अगर देश के युवा गलत रास्ते पर चलने लगे तो देश के विकास में कई रोकावटें आ जाती है. देश के विकास के लिए युवा वर्ग की मानसिकता का अच्छा होना बेहद जरूरी है.
स्वामी विवेकानंद युवा शक्ति के प्रतीक के रूप में बड़े हुए, जिन्होंने विदेशों में भारतीय संस्कृति का पताका फहराया.
अमेरिका के शिकागो में 1893 में स्वामी विवेकानंद ने ऐसा भाषण दिया था जिसके बाद कम्युनिटी हॉल कई मिन्टों तक तालियों से गूंज रहा था. BBC हिंदी में छपें उनके भाषण के कुछ अंश हम आपको बताते है.
मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.
यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.
विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था. विवेकानंद नाम उन्हें राजस्थान के शेखावटी अंचल स्थित खेतड़ी के राजा अजित सिंह ने दिया था.
बांग्ला की मशहूर लेखक शंकर की पुस्तक ‘द मॉन्क एज मैन’ में कहा गया है कि मलेरिया, माइग्रेन, डायबिटीज व दिल सहित 31 बीमारियों से स्वामी विवेकानंद जूंझ रहे थे. कहा जाता है उनको मृत्यु का पहले ही अहसास हो गया था वो अक्सर कहा करते थे की वह 40 साल से ज्यादा जीवित नहीं रह सकते है. 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)