Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मीराबाई चानू के वेटलिफ्टर बनने से लेकर ओलंपिक मेडल तक का सफर

मीराबाई चानू के वेटलिफ्टर बनने से लेकर ओलंपिक मेडल तक का सफर

मीराबाई ने अकसमात भारोत्तोलक बनने से लेकर ओलंपिक मेडलिस्ट तक का सफर तय किया

IANS
न्यूज
Published:
i
null
null

advertisement

टोक्यो ओलंपिक में ऐतिहासिक प्रदर्शन कर रजत पदक जीतने वाली वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने अचानक वेटलिफ्टर से ओलंपिक मेडलिस्ट बनने का सफर तय किया है।

मणिपुर की रहने वाली 26 वर्षीय मीराबाई ने वेटलिफ्टिंग में 202 किलो के साथ दूसरे स्थान पर रहकर रजत पदक जीता। इस इवेंट में चीन की होउ जिहुई ने 210 किलो के साथ स्वर्ण जीता।

मीराबाई ने इसके साथ ही टोक्यो में भारत का पहला पदक जीता और वह देश की दूसरी वेटलिफ्टर बनीं जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता है। उनसे पहले 2000 सिडनी ओलंपिक में करनाम मालेश्वरी ने इस इवेंट में देश के लिए पहला पदक जीता था।

मीराबाई ने इसके साथ ही वेटलिफ्टिंग पदक जीतने का भारत का करीब दो दशक का सूखा खत्म किया।

तीरंदाजी के लिए गईं, वेटलिफ्टर बन गईं

भारतीय रेलवे की कर्मचारी मीराबाई अक्समात वेटलिफ्टिंग में आई थीं। 12 साल की उम्र में वह इम्फाल के खुमान लमपाक स्टेडियम में तीरंदाजी के लिए खुद को इनरोल कराने गई थीं।

तीरंदाजी सेंटर बंद था और मीराबाई इसके बारे में खबर लेने के लिए पास में स्थित वेटलिफ्टिंग एरिना में गईं। वहां उन्हें इसमें दिलचस्पी दिखाई दी। उनका मानना था कि वेटलिफ्टिंग उनके लिए आसान होगा।

मीराबाई राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के बाद दिल्ली गईं और उन्होंने जल्द ही राष्ट्रीय शिविर में जगह बनाई।

मीराबाई का पहला ब्रेकथ्रू 2014 ग्लासगोव राष्ट्रमंडल खेल रहा जहां उन्होंने 48 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक जीता।

भारत को विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक सहित कुल 50 अंतरराष्ट्रीय पदक दिलवा चुकीं भारत की लेजेंड महिला वेटलिफ्टर एन. कुंजारानी देवी ने कहा, मीराबाई काफी मेहनती हैं और उनकी इच्छाशक्ति काफी मजबूत है जिसने उन्हें 2016 रियो ओलंपिक की निराशा के बाद वापसी करने में मदद की।

कुंजारानी ने कहा कि मीराबाई बहुत संघर्ष कर यहां तक पहुंची है और उन्होंने वर्षो घर से दूर सीमित संशाधनों के साथ काम किया है।

दिल्ली में सीआरपीएफ सीनियर अधिकारी के रूप में तैनात कुंजारानी ने कहा, मणिपुर एक छोटा सा राज्य है और वित्तीय रूप से इतना मजबूत नहीं है। मीराबाई मध्य वर्गीय परिवार से आती हैं और उन्होंने वेटलिफ्टर बनने के लिए काफी संघर्ष किया है। उनके माता-पिता और परिवार ने उनका साथ दिया और जब मीराबाई को रेलवे की नौकरी मिली तो उन्होंने भी अपने परिवार का ख्याल रखा।

उन्होंने कहा, मीराबाई को राष्ट्रमंडल और एशिया खेलों में पदक जीतने पर पुरस्कार राशि भी मिली। मणिपुर की निवासी के तौर पर मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि मेरे गृह राज्य की लड़की ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए पहल पदक जीता है।

पिछले पांच वर्षो में मीराबाई ने कई पुरस्कार जीते। उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और 2018 में राजीव गांधी खेल रत्न तथा पद्यश्री भी मिला।

2017 मे मीराबाई करनाम मालेवरी (1994) के बाद भारत की पहली महिला बनीं जिन्होंने विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।

2018 में उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। लेकिन मीराबाई के जीवन में एक समय ऐसा आया जहां उन्हें चोट के कारण संघर्ष करना पड़ा।

2019 में वह रिहेबिलिटेशन और ट्रेनिंग शिविर के लिए अमेरिका गईं। ओलंपिक शुरू होने से पहले भी वह अमेरिका गईं जहां उन्होंने डॉ आरोन होर्सचिग अकादमी में दो सप्ताह बिताए थे।

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT