Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019देवघर रोपवे हादसाः बचे लोगों की मार्मिक कहानी-हमने प्यास बुझाने को पेशाब इकट्ठा कर रखा था

देवघर रोपवे हादसाः बचे लोगों की मार्मिक कहानी-हमने प्यास बुझाने को पेशाब इकट्ठा कर रखा था

रोपवे हादसे में बचे लोगों की मार्मिक कहानी, हमने प्यास बुझाने को बोतलों में पेशाब इकट्ठा कर रखा था

IANS
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>रोपवे हादसे में बचे लोगों की मार्मिक कहानी, हमने प्यास बुझाने को बोतलों में पेशाब इकट्ठा कर रखा था</p></div>
i

रोपवे हादसे में बचे लोगों की मार्मिक कहानी, हमने प्यास बुझाने को बोतलों में पेशाब इकट्ठा कर रखा था

फोटो- ians

advertisement

देवघर, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। मैं और मेरे परिवार के पांच लोग 24 घंटे तक ट्राली में फंसे रहे। हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था। रोपवे पर चढ़ते वक्त हमारे पास पानी के तीन बोतल थे। शाम पांच बजे अचानक झटके के साथ रोपवे रुका। ट्रॉली हवा में झूलने लगी। अगल-बगल की ट्रॉलियों पर सवार लोग चिल्लाने लगे। नीचे गहरी खाई थी। हवा के साथ जब ट्रॉली हिलती थी तो लगता था कि हम सभी खाई में जा गिरेंगे। थोड़ी ही देर में हमारा पानी खत्म हो गया और अंधेरा घिर आया। ऐसा लग रहा था कि अब हमारा आखिरी वक्त आ गया है। खाई में गिरे तो शायद हमारी हड्डी-पसली का भी पता न चले। पूरी रात हमने भगवान का नाम जपते हुए काटी। सुबह हुई तो आसमान में हेलिकॉप्टर देखकर उम्मीद जगी कि शायद हमें बचा लिया जायेगा। इंतजार करते दोपहर 12 बज गये तो प्यास से हम सभी का गला सूखने लगा। हमने खाली बोतलों में अपना ही पेशाब इकट्ठा कर लिया। सोचा कि अगर पानी नहीं मिला तो मजबूरी में यही पीना पड़ेगा।
यह सब बताते हुए विनय कुमार दास फफक-फफक कर रोने लगते हैं। पश्चिम बंगाल के मालदा निवासी विनय कुमार उन 46 लोगों में एक हैं, जिन्हें देवघर रोपवे हादसे के लगभग 24 घंटे बाद रेस्क्यू किया गया था। हादसे के बाद नई जिंदगियां पाने वाले हर शख्स के पास भूख-प्यास, खौफ और डरावनी यादों की ऐसी ही कहानियां हैं।

दुमका की अनिता दास अपने परिवार के चार लोगों के साथ देवघर में बाबा वैद्यनाथ के मंदिर में दर्शन करने आई थीं। घर लौटते वक्त त्रिकूल पर्वत के दर्शन के लिए वे लोग शाम चार बजे रोपवे का टिकट लेकर एक ट्रॉली पर सवार हुए। अनिता बताती हैं कि रोपवे स्टार्ट हुए पांच-छह मिनट ही हुए थे कि अचानक तेज झटके के साथ खड़-खड़ की आवाज होने लगी। अनहोनी के डर से हम सभी चिल्लाने लगे। मैं डर के मारे आंखें बंद कर भोलेनाथ-बजरंग बली का नाम जोर-जोर से जपने लगी। ट्रॉली से टकराने की वजह से मेरे सिर में चोट लगी थी। रात भर परिवार के चारों लोग ट्रॉली पर बगैर हिले-डुले जगे रहे। लगता था कि अगर थोड़ा भी हिले-डुले तो कहीं ट्रॉली टूटकर नीचे न जा गिरे। सोमवार को जब धूप तेज हुई तो लगा या तो दम घुट जायेगा या फिर भूख-प्यास से यहीं जान चली जायेगी। तीन बजे ड्रोन के जरिए दो बोतल पानी हमारी ट्रॉली में आया। हम चारों लोगों ने थोड़ा-थोड़ा पानी पीया तो जान में जान आई। शाम चार बजे हेलिकॉप्टर से रस्सी के सहारे आये एक जवान ने हमारी ट्रॉली का दरवाजा खोला। उन्होंने हिम्मत बंधाई और फिर एक-एक कर हम सभी को नीचे उतारा तो लगा जैसे साक्षात भगवान ने हमारी रक्षा कर ली। यह सब बताते हुए अनिता देवी की आवाज भर्रा गयी।

मुजफ्फरपुर की रहने वालीसिया देवी अपने परिवार के 8 लोगों के साथ देवघर आई थीं। उन्होंने उनके नाती का मुंडन होना था। मुंडन के बाद सभी लोग त्रिकुट पहाड़ी देखने पहुंचे। वह बताती हैं कि मुझे सोमवार शाम करीब चार बजे सेना के जवान ने हेलिकॉप्टर के जरिए उतारा, लेकिन वहीं परिवार के बाकी लोगों को अंधेरा होने की वजह से नहीं उतारा जा सका। मंगलवार सुबह 36 घंटे बाद जब परिवार के सारे लोग एक-एक कर नीचे उतारे गये। सेना के जवानों ने देवदूत बनकर हमारी जान बचाई।

गिरिडीह के करमाटांड़ की रहने वाली सोनिया देवी और उनके परिवार के सात लोग उस ट्रॉली पर सवार थे, जो हादसे के बाद नीचे जमीन से आकर टकराई थी। सोनिया देवी को कमर और माथे में चोट है, जबकि उनकी मां सुमंति देवी की मौत ट्रॉली के गिरने से हो गई थी। उनके पति गोविंद भोक्ता और बेटे आनंद कुमार को भी काफी चोट लगी है। तीनों का देवघर अस्पताल में इलाज चल रहा है। सोनिया देवी ने बताया कि हम सभी नीचे गिरे तोलगा था कि शायद हममें से कोई नहीं बचेगा।

--आईएएनएस

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT