Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उमर खालिद की बेल याचिका रद्द होने पर वकील बोले- अन्यायपूर्ण फैसला

उमर खालिद की बेल याचिका रद्द होने पर वकील बोले- अन्यायपूर्ण फैसला

Umar Khalid Bail: पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने जमानत खारिज करने के फैसले को 'परेशान करने वाला' बताया.

रोहिणी रॉय
न्यूज
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<div class="paragraphs"><p>अन्यायपूर्ण, बेहूदा: उमर खालिद पर कोर्ट के फैसले को कैसे देख रहे हैं देश के वकील</p></div>
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अन्यायपूर्ण, बेहूदा: उमर खालिद पर कोर्ट के फैसले को कैसे देख रहे हैं देश के वकील

फोटो- क्विंट

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दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 18 अक्टूबर को जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत याचिका रद्द कर दी गई, कानून के जानकारों ने इस फैसले पर अफसोस जताया है. खालिद यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए थे. मामला दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़ा है

द क्विंट से बातचीत में पटना हाई कोर्ट की पूर्व जज और सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाश ने जमानत खारिज करने के फैसले को 'परेशान करने वाला' बताया और यूएपीए की आलोचना की.

"यह वास्तव में परेशान करने वाला और बेहूदा है. यूएपीए मामलों में अपनी बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर ही होती है. यह एक बेहूदा स्थिति है. "प्री-ट्रायल स्टेज में कोई कैसे अपनी बेगुनाही साबित करेगा?"

उन्होंने कहा कि, "जमानत नियम है, जेल हमेशा अपवाद है, लेकिन यूएपीए मामलों में ये बात उल्टी हो जाती है."

जमानत याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच ने कहा: "हमें जमानत अपील में कोई योग्यता नहीं दिखती." खालिद पर कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं और वह अब तक 700 से अधिक दिन जेल में बिता चुके हैं.

यह आदेश बेंच द्वारा 9 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखने के एक महीने बाद आया है.

लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने खालिद द्वारा अपने भाषणों में क्रांति शब्द के इस्तेमाल का जिक्र करते हुए कहा कि,

"जब भी हम क्रांति शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो जरूरी नहीं है कि रक्तहीन ही हो. लेकिन क्रांति मैक्सीमिलियन रॉब्सपियर (फ्रांस के क्रांतिकारी जो हमेशा हिंसा की वकालत करते थे) और पंडित नेहरू दोनों के लिए अलग अलग है."

क्रांति को लेकर अदालत की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने द क्विंट को बताया कि, "यूएपीए कानून की कठोरता को देखते हुए जमानत से इनकार करना आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन अदालत क्रांति पर अपनी टिप्पणियों से आगे निकल गई. वे टिप्पणियां मामले की योग्यता से परे थीं."

"अगर दिल्ली हाईकोर्ट के तर्क के साथ जाएं तो स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हस्ताक मोहनी जिन्होंने 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा दिया वे इस कठोर कानून के तहत सलाखों के पीछे हो सकते हैं."
संजय हेगड़े, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता
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उमर के खिलाफ कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है- प्रशांत भूषण

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया कि, उमर खालिद की जमानत खारिज करना "अन्यायपूर्ण" है. "उमर के खिलाफ किसी भी साजिश या हिंसक गतिविधि में शामिल होने के बारे में कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है. इसके विपरीत उनके सभी भाषणों के वीडियो को देखे तो उसमें वे अहिंसा का उपदेश देते हुए दिख रहे हैं.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि, "नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) और 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन प्रथम दृष्टया प्रतीत होते हैं कि दिसंबर 2019 और फरवरी 2020 के बीच "षड्यंत्रकारी बैठकों" के आयोजित की गई थी- जिनमें से कुछ बैठकों में कथित तौर पर खालिद ने भाग लिया था. निश्चित रूप से ये विरोध फरवरी 2020 में हिंसक दंगों में बदल गए."

इस बीच, दिल्ली हाईकोर्ट के वकील अरीब उद्दीन ने ट्वीट किया कि, खालिद 765 दिनों के बाद भी सलाखों के पीछे है और उनकी जमानत की सुनवाई "एक मिनी ट्रायल की तरह है".

प्रस्तावना सलाहकारों के वकील और पार्टर्न दुष्यंत ए ने ट्वीट किया कि, गैंगरेप और हत्या के दोषियों (बिलकिस बानो मामले में) को अच्छे व्यवहार के लिए रिहा कर दिया गया है और जिसका मामला विचाराधीन (उमर खालिद) है वह जेल में है.

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